अनजान पहाड़ी पर झील बनते ही पानी से लबालब हुआ सूखा जलस्रोत
अनजान पहाड़ी पर झील बनते ही पानी से लबालब हुआ सूखा जलस्रोत
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड
मां गंगा भगवान शिव की जटाओं से निकलती हैं, मगर पिथौरागढ़ के ‘शिवजी’ ने तो आसमान से बरसती बूंदों को सहेजकर पहाड़ी की चोटी पर ही सुशोभित कर दिया। बारिश के जल संरक्षण के प्रति एक सोच कितनी कारगर साबित हो सकती है, इसका जीता-जागता उदाहरण विकास खंड गंगोलीहाट की लमकेश्वर पहाड़ी है।यहां के राजेंद्र सिंह ‘शिवजी’ ने दो हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित इस पहाड़ी पर वर्षा जल का संचयन कर इसे लमकेश्वर महादेव झील का रूप दे दिया है। यह झील आज न केवल पेयजल का बड़ा माध्यम है, बल्कि इसके बनने से पर्यटन क्षेत्र भी विकसित हो गया है। करीब एक करोड़ लीटर क्षमता वाली इस झील ने क्षेत्र में सूख चुके स्नोतों को भी लबालब कर दिया है। यह झील सिंचाई के साथ जंगली व पालतू जानवरों के लिए भी वरदान साबित हो रही है।लमकेश्वर क्षेत्र में 15-20 वर्ष से पानी का संकट बढ़ता जा रहा था। स्नोत सूख रहे थे या फिर जलस्तर लगातार गिर रहा था। समीप ही झलतोला के घने जंगल में एक छोटा पोखर था। 2016-17 में इस क्षेत्र के जिला पंचायत सदस्य राजेंद्र सिंह बोरा उर्फ शिवजी थे। सदस्य बनने के बाद उनके मन में इस पोखर को बरसाती जल संरक्षण से बड़ा तालाब बनाने का विचार आया। उद्देश्य था कि इससे भूमिगत जल स्तर को बढ़ाकर आसपास के जल स्नोतों को भी रिचार्ज किया जाए। राजेंद्र ने अपना प्रस्ताव मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) को दिया। सीडीओ ने इसकी स्वीकृति भी दे दी। कार्य प्रारंभ होने से पहले सीडीओ का तबादला हो गया। उनके स्थान पर 2018 में आईं वंदना ने भी इस प्रस्ताव को गंभीरता से लिया और मनरेगा के तहत झील निर्माण की मंजूरी दे दी। 15.84 लाख रुपये की लागत से गंगोलीहाट ब्लाक में यह कार्य शुरू कराया। एक साल के भीतर 2019 में करीब एक करोड़ लीटर की क्षमता वाली बरसाती झील बनकर तैयार हो गई। इस झील के बनते ही निचले क्षेत्र के दो पेयजल स्रोत रिचार्ज हो गए हैं। एक स्नोत से एक गांव के लिए पेयजल योजना भी बन चुकी है। इतना ही नहीं, पास के राम मंदिर और इसके अलावा कई गांवों की सिंचाई की जरूरत भी पूरी की जा रही है। चारों तरफ घने जंगल के बीच बनाई गई झील अब आकर्षण का केंद्र बन गई है। खास बात यह रही कि 2020 में डीएम ने इस स्थल के सुंदरीकरण के लिए जिला खनिज न्यास निधि से 15 लाख रुपये से अधिक धनराशि प्रदान की। अब दूर-दराज से पर्यटकों के पहुंचने से एक नया पर्यटन क्षेत्र तैयार हो गया है। सबसे बड़ी उपलब्धि क्षेत्र के 125 जल स्रोतों का पुनर्जीवन है। इन स्रोतों के पुनर्जीवन से अब क्षेत्र में पेयजल संकट नहीं रहेगा। भविष्य में पर्यटन विकास को भी इससे मदद मिलेगी। जल संरक्षण दैनिक जागरण के सात सरोकारों में शुमार है। इसी क्रम में हम जल प्रहरियों के प्रेरक कार्यों को पाठकों तक पहुंचा रहे हैं। हमारी कोशिश है कि इन प्रहरियों से प्रेरणा ले ज्यादा से ज्यादा लोग जल संरक्षण के काम में सहभागी बनें।राजेंद्र बोरा ने बरसाती पानी के संग्रह पर उल्लेखनीय कार्य कर चुके हिमालयन ग्राम विकास समिति के अध्यक्ष और जल पुरुष के नाम से प्रसिद्ध राजेंद्र बिष्ट का सहयोग लिया। जल पुरुष ने उन्हें प्रस्ताव तैयार कराने में पूरी मदद की। इस कटोरीनुमा पहाड़ी में जंगल से आने वाले छोटे नालों का प्रवाह भी झील की ओर मोड़ा गया है। मनरेगा के तहत पोखर की मिट्टी निकालकर गहराई भी बढ़ाई गई है। जल संरक्षण की इस पहल का लाभ सभी को मिल रहा है
लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर का अनुभव प्राप्त हैं, वर्तमान में दून विश्वविद्यालय है.