औद्योगिक विकास के लिए नई सरकार से बड़ी अपेक्षाएं
उत्तराखंड में 10 मार्च को चुनाव परिणाम सामने आने के बाद नई सरकार के गठन का रास्ता साफ हो जाएगा। प्रदेश में नई सरकार के गठन को अभी थोड़ा समय बाकी है। सरकार कौन बनाएगा, इस पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। कोरोना काल से उबर रहे प्रदेश के उद्योग जगत को भी आने वाली सरकार से औद्योगिक विकास के लिए अहम कदम उठाने की अपेक्षा है। उद्योग जगत को उम्मीद है कि नई सरकार प्रदेश में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए उद्योगपतियों व निवेशकों के सामने आने वाली दिक्कतों को दूर करने के लिए ठोस व व्यवहारिक कदम उठाएगी प्रदेश के विकास में उद्योग अहम भूमिका निभाते हैं। राज्य गठन के बाद प्रदेश में उद्योगों का तेजी से विकास हुआ है। इसका एक मुख्य कारण वर्ष 2003 में केंद्र की तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा उत्तराखंड को दिया गया विशेष औद्योगिक पैकेज है। इस समय प्रदेश में 330 बड़े और 68888 सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग हैं। इनमें कार्यरत कार्मिकों की संख्या 4.66 लाख से अधिक है। ये सभी उद्योग राज्य में 52 हजार करोड़ से अधिक का पूंजी निवेश कर रहे हैं। यह पूंजी निवेश प्रदेश के विकास में सहायक बन रहा है। साथ ही उद्योग रोजगार की समस्या को दूर करने में भी सहयोग कर रहे हैं।। बावजूद इसके प्रदेश में आने वाली सरकारों के लिए पर्वतीय क्षेत्र में उद्योग चढ़ाना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। ऐसा नहीं है कि इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ। भाजपा की पूर्ववर्ती भुवन चंद्र खंडूड़ी सरकार ने पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए नीति भी जारी की। इस नीति में पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग लगाने के लिए भूमि क्रय से लेकर उद्योगों पर लगने वाले कर और बिजली बिलों की दर पर भी रियायत दी गई। बावजूद इसके विभिन्न कारणों से यह नीति प्रभावी साबित नहीं हो पाई। प्रदेश में आने वाले निवेशकों का मुख्य फोकस भी तीन मैदानी जिलों पर ही रहा। इनमें देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर शामिल हैं। इसका एक कारण यहां संसाधनों की उपलब्धता व सीधा संपर्क होना है। पौड़ी जिले का कोटद्वार एक अपवाद है, लेकिन भौगोलिक स्थिति के हिसाब से यह मैदानी क्षेत्र है। अभी भी इन्हीं क्षेत्रों में सिडकुल को विस्तार दिया जा रहा है।कोरोना काल के कारण प्रदेश में नए उद्योग लगने की रफ्तार कुछ कम हुई है। अब नई सरकार का गठन जल्द होने वाला है। ऐसे में उद्योग जगत भी नई सरकार पर नजरें टिकाए हुए है। उद्यमियों को उम्मीद है कि जिस भी पार्टी की सरकार आए, वह उद्योगों को बढ़ावा दे और उन्हें आगे बढ़ने के लिए उचित सुविधाएं उपलब्ध कराए। प्रदेश के सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्योग क्षेत्र में बीते दो वर्षों में काफी गिरावट दर्ज की गई है। नई सरकार को इस क्षेत्र को सहारा देने के लिए कदम उठाने होंगे। पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग लगाना बहुत जरूरी है। इससे पलायन रोकने में भी मदद मिलेगी। सरकार जो भी नीति बनाए यह सुनिश्चित करे की वह धरातल पर उतरे। यह बात उत्तराखंड गठन के दौरान केंद्र की तत्कालीन एनडीए सरकार ने भी समझी और इसकी परिणति उत्तराखंड को विशेष औद्योगिक प्रोत्साहन पैकेज के रूप में हुई। इस पैकेज के तहत प्रदेश में उद्योग लगाने को टैक्स में छूट समेत विभिन्न सुविधाएं दी गईं। नतीजतन हरिद्वार, देहरादून और ऊधमसिंह नगर में उद्योग तेजी से आए। इसी दौरान टाटा, हीरो, मङ्क्षहद्रा एंड मंहिद्रा जैसी नामी कंपनियां उत्तराखंड में आई। केंद्र की सरकार के समय वर्ष 2013 में यह पैकेज समाप्त हो गया। जब पैकेज समाप्त हो रहा था उस समय प्रदेश की भाजपा और फिर कांग्रेस सरकार ने केंद्र की यूपीए सरकार से इसे बढ़ाने का अनुरोध किया। केंद्र ने इस पैकेज को 2017 तक के लिए बढ़ाने की मंजूरी तो दी लेकिन इसका लाभ केवल उन्हीं को मिला, जिन्होंने 2013 तक अपने उद्योग लगाए थे। परिणामस्वरूप राज्य में बड़े उद्योगों की आमद कम होने लगी। प्रदेश में निर्यात की स्थिति लगातार सुधर रही है। बीते 10 वर्ष के आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2011-12 में जहां निर्यात 3530 करोड़ था, वहीं 2019-20 में यह 16871 करोड़ पहुंच गया। हालांकि 1920-21 में कोरोना के कारण इस पर थोड़ा ब्रेक लगा। अब प्रदेश सरकार ने नई निर्यात बनाई है। इसमें स्थानीय उत्पादों के निर्यात पर जोर दिया गया है। नई सरकार इस समस्या का समाधान कर आम जन के साथ ही जन प्रतिनिधियों को राहत देगी, इसकी प्रतीक्षा की जा रही है।लेखक डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।