पहाड़ों को दुखों से लड़ने की हिम्मत देने वाले लोक गायक हीरा सिंह राणा

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अनगिनत यादगार नग्में और फोक सांग देने वाले हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितम्बर
1942 को अल्मोड़ा जिले के गांव मानिला डंढोली में उनका जन्म हुआ था। उनकी माता का
नाम नारंगी देवी और पिता का नाम मोहन सिंह था। प्राथमिक शिक्षा मानिला में ग्रहण करने
के बाद वे गीत संगीत की साधना में लीन हो गए लेकिन रोजी रोटी का संकट उन्हें दिल्ली
ले आया। दिल्ली में उन्होंने सेल्समैन की नौकरी की लेकिन लोक संगीत में मं लगाने वाले
हिरदा जल्द में ही संगीत की स्कालरशिप ले कोलकाता चले गए। वहां से लौटने के बाद
उन्होंने 1971 में ज्योली बुरुंश, 1974 में नवयुवक केन्द्र ताड़ीखेत, 1985 में मानिला डांडी,
1992 हिमांगन कला संगम दिल्ली, 1987 में मनख्यू पड्याव जैसे लोक सांस्कृतिक समूहों
का गठन कर लोक संगीत यात्रा का संगम जारी रखा।
अपने जन्मस्थान को याद करता उनका गीत यो मेरी मानिला डांडी तेरी बलाई ल्योंला, तू
भगवती छै तू ई भवानी, हम तेरी बलाई ल्योंला भी खूब लोकप्रिय हुआ। लोक में अपने
पशुओं के प्रति दुलार दर्शाता उनका गीत ‘आ ली ली बाकरी ली ली छु छु’ भी दिलों को छू
जाता है। कुमाऊंनी लोकगीतों के छह केसेट भी उन्होंने निकाले, जिनमे रंगीली बिंदी, रंगदार
मुखड़ी, सौ मनों की चोरा, ढाई बीसी बरस हाई कमाला, आहा रे जमाना जैसे केसेट शामिल
हैं। आकाशवाणी नजीबाबाद, लखनऊ और दिल्ली से भी उनके गीतों का प्रसारण हुआ। उनकाबहुत प्रसिद्ध गीत रंगीली बिंदी, घाघर काई-हाई रे मिजाता भी पहाड़ी समाज में खूब सराहागया। महज 15 साल की उम्र से लोकगीतों के रचना साधना में लीं रहे हीरा सिंह राणा को
दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने गढ़वाली कुमाऊंनी जौनसारी भाषा अकादमी का
का पहला उपाध्यक्ष बनाकर उनकी प्रतिभा को सम्मान दिया था। हिरदा के नाम से उत्तराखंडी
समाज में लोकप्रिय हीरा सिंह राणा ने अपने समाज के हितों से जुड़े गीतों के लिए खासी
प्रसिद्धि पाई। पहाड़ी रंगमंच में उनका स्थान अलग और विशेष यादगार रहेगा। त्यर पहाड़उत्तराखंड के लोकप्रिय लोकगायक, जनकवि और महान गीतकार स्व. हीरा सिंह राणा के रचे कई गीत अभी भी रिकार्ड नहीं किए गए हैं। ऐसे ही एक गीत को आज उनकी पहली पुण्यतिथि पर उनके परम शिष्य लोकगायक और वरिष्ठ पत्रकार डॉ. अजय ढौंडियाल के स्वरों में आज यूट्यूब पर रिलीज किया गया है। इस गीत के बोल हैं ” हिरदी पीड़ कैले नि जाणि..। हिरदी पीड़ यानी हृदय की पीड़ा, लेकिन यह किसी एक इंसान के हृदय की पीड़ा नहीं है। यह पहाड़ के हृदय की पीड़ा है, पहाड़ आम जन के हृदय की पीड़ा है। यह पहाड़ की मनोदशा भी है जिसे पर स्व. राणा जी ने साठ के दशक में अपने शब्दों में उकेरा था। सन साठ के गीत को आज डॉ. अजय ढौंडियाल ने जनता के समक्ष पेश किया है। इस गीत को खुद स्व. राणा जी की धर्मपत्नी ने भी सराहा है। यह गीत पहली बार रिकार्ड किया गया है। सबसे बड़ी बात इस गीत की यह है कि यह गीत पहाड़ के सन्दर्भ में आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि तब था। पहाड़, उसकी पीड़ा, उसकी समस्याएं और उसके सरोकार आज भी वैसे ही हैं जैसे सन साठ में थे। यह महज एक गीत नहीं है उत्तराखंडी सरोकारों की सशक्त और सुरमय अभिव्यक्ति है जिसे अब जाकर जनता के समक्ष प्रस्तुत किया गया हैम्यर पहाड़, हय दुखों क ड्यर पहाड़। बुजुर्गोंल ज्वड पहाड़, राजनीतिल त्वड पहाड़।ठ्यकदारोंल फोड़ पहाड़, नान्तिनोंन छोड़ पहाड़।’ जैसे गीत रचकर पहाड़ों की वेदना को उकेरनेवाले हीरा सिंह राणा पहाड़ के हर छोटे-बड़े आंदोलन में भी सक्रिय रहा करते थे। पहाड़ोंकेहर सुख-दुःख में साथ रहने वाले हीरा सिंह राणा अपने गीत के जरिए पहाड़वासियों कोहरमुसीबत का सामना बहादुरी के साथ करने का भी हौसला देते रहे।

लस्का कमर बांधा , हिम्मत का साथा ,
फिर भुला उजालि होलि कां ले रोलि राता
लश्का कमर बांधा…..
य नि हूनो, ऊ नि होनो,कै बै के नि हूंनो,
माछी मन म डर नि हुनि चौमासै हिलै के
कै निबडैनि बाता धर बै हाथ म हाथा,
सीर पाणिक वै फुटैली जां मारुलो लातालश्का कमर…..
जब झड़नी पाता डाई हैं छ उदासा,
एक ऋतु बसंत ऐछ़ पतझडा़ का बादा
लश्का कमर बांधा…।’

से कुमाऊँ के सौन्दर्य और संघर्षों की झलक दिखाने वाले और कुमाउँनी, गढ़वाली, जौनसारीअकादमी दिल्ली के पहले उपाध्यक्ष हीरा सिंह राणा और स्वतंत्रता संग्राम में आजादहिन्दफौज के सिपाही के रूप में ब्रिटिश हुकूमत को नाकों चने चबवा देने वाले अमरशहीदवीरकेसरी चन्द्र के सम्मान में वेस्ट विनोद नगर वार्ड में रविवार को दो रोड कानामकरणकियागया राज्य बनने से पहले भी पहाड़ में यही कहा जाता था कि यहाँ अफसर एक लोहे का सन्दूक ले करआता था और तबादले के समय ट्रक भर कर ले जाता था.राज्य बनने के दो दशक होने पर भी तस्वीरलगभग वैसी ही है कि लुटेरे,तस्कर,भ्रष्ट नेता और नौकरशाह यही कर रहे हैं दरअसल, हीरा सिंह राणा जैसा कलाकार सदियों में पैदा होता है और हीरा सिंह राणा जैसा बनने के लिए भी सदियां लग जाती हैं.हीरा सिंह राणा कहा करते थे कि “हमारे नौनिहाल अपनी भाषा-बोली के प्रति जागरूक हों,अपने लोक संस्कृति को जानें समझें, और उन गीतों में उकेरी पीड़ा को जानने की कोशिश करें,जो लोकगीत आज बिखरे हुए हैं,उन्हें संकलित करने का प्रयास करे. सही अर्थों में यही हमारा सम्मान होगा.” राजनीति में उठापटक और वीरान होते पहाड़ के दर्द को उकेरने वाले लोकगायक हीरा सिंह राणा पहाड़ों की आवाज़ थे. उन्होंने पहाड़ की लोक संस्कृति को नयी पहचान ही नहीं दिलाई बल्कि विश्व सांस्कृतिक मंच पर उसे स्थापित भी किया.उनके साहित्यिक और लोकगायिकी से कुमाउँनी भाषा और संस्कृति को लोकप्रियता के नए आयाम मिले हैं, अपने जन्मस्थान को याद करता उनका गीत यो मेरी मानिला डांडी तेरी बलाई ल्योंला, तू भगवती छै तू ई भवानी, हम तेरी बलाई ल्योंला भी खूब लोकप्रिय हुआ। लोक में अपने पशुओं के प्रति दुलार दर्शाता उनका गीत ‘आ ली ली बाकरी ली ली छु छु’ भी दिलों को छू जाता है। कुमाऊंनी लोकगीतों के छह केसेट भी उन्होंने निकाले, जिनमे रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी, सौ मनों की चोरा, ढाई बीसी बरस हाई कमाला, आहा रे जमाना जैसे केसेट शामिल हैं। आकाशवाणी नजीबाबाद, लखनऊ और दिल्ली से भी उनके गीतों का प्रसारण हुआ। उनका बहुत प्रसिद्ध गीत रंगीली बिंदी, घाघर काई-हाई रे मिजाता भी पहाड़ी समाज में खूब सराहा गया। 13 जून 2020 को 78 वर्ष की अवस्था में हीरा सिंह राणा ने अपनी कर्मभूमि दिल्ली में ही अंतिम सांस ली और अपने हजारों लाखों प्रेमियों को निराश कर के अनन्त की यात्रा पर निकल पड़े.महानगरीय संस्कृति के प्रभाव से आज कुमाउँनी भाषा और संस्कृति अपनी पहचान खोने के दौर से गुजर रही है. ऐसे कठिन दौर में हमारे बीच से हीरा सिंह राणा जैसे लोककवि और दुदबोलि भाषा के उन्नायक लोक गायक का अचानक ही चला जाना बहुत ही दुःखद था. उनके साहित्यिक और लोकगायिकी से कुमाउँनी भाषा और संस्कृति को लोकप्रियता के नए आयाम मिले हैं,इसलिए यह पर्वतीय लोकसंस्कृति के लिए भी अपूरणीय क्षति थी. इसलिए हीरा सिंह राणा का आज नहीं रहना पर्वतीय लोक संस्कृति के लिए भी अपूरणीय क्षति है. आज भले ही हमारे बीच ये शानदार शख़्सियत जीवित नहीं है लेकिन इनके गए गीत लम्बे समय तक वादियों में गूंजते रहेंगे  आज हीरा सिंह राणा जी के पर उन्हें शत शत नमन!
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला (लेखक) के व्यक्तिगत विचार हैं दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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