बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पंत
बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पंत
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड
भारत रत्न से सम्मानित भारत रत्न, गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 10 सितम्बर 1887 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिला, के ग्राम खूंट, मे हुआ था। इनकी माँ का नाम गोविन्दी बाई और पिता का नाम मनोरथ पन्त था। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी परवरिश उनके नाना श्री बद्री दत्त जोशी ने की। प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और वरिष्ठ भारतीय राजनेता थे। वे उत्तर प्रदेश राज्य के प्रथम मुख्य मन्त्री और भारत के चौथे गृहमंत्री थे। सन 1957 में उन्हें भारतरत्न से सम्मानित किया गया। गृहमंत्री के रूप में उनका मुख्य योगदान भारत को भाषा के अनुसार राज्यों में विभक्त करना तथा हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करना था। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी परवरिश उनके नाना श्री बद्री दत्त जोशी ने की। 1905 में उन्होंने अल्मोड़ा छोड़ दिया और इलाहाबाद चले गये। म्योर सेन्ट्रल कॉलेज में वे गणित, साहित्य और राजनीति विषयों के अच्छे विद्यार्थियों में सबसे तेज थे। उत्तराखंड के प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी, उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री और भारत रत्न से सम्मानित पंडित गोविंद बल्लभ पंत जी का जब हम एक क्रांतिकारी स्वंत्रता सेनानी के रूप में और एक व्यवहार कुशल राजनेता के रूप में मूल्यांकन करते हैं तो उत्तराखंड के जन नायक होने के नाते भी विशेष आदर का भाव उमड़ने लगता है. पंडित पंत जी का राजनीतिक जीवन शुचिता, कर्मठता और व्यवहारिक कुशलता की दृष्टि से भी एक मिसाल के तौर पर आज याद किया जाता रहा है.स्वाधीनता के लिए इस उत्तराखंड के क्रांतिकारी योगदान को आसानी से भुलाया नहीं जा सकता है.अध्ययन के साथ-साथ वे कांग्रेस के स्वयंसेवक का कार्य भी करते थे। 1910 में उन्होंने अल्मोड़ा आकर वकालत शूरू कर दी। वकालत के सिलसिले में वे पहले रानीखेत गये फिर काशीपुर में जाकर प्रेम सभा नाम से एक संस्था का गठन किया जिसका उद्देश्य शिक्षा और साहित्य के प्रति जनता में जागरुकता उत्पन्न करना था। इस संस्था का कार्य इतना व्यापक था कि ब्रिटिश स्कूलों को काशीपुर से भागना पड़ा। 9 अगस्त,1924 को उत्तर प्रदेश में काकोरी कांड के नौजवानों को बचाने के लिए पंत जी ने जान की बाजी लगा दी. इनकी वकालत का सभी लोग लोहा मानते थे. अल्मोड़ा में एक बार मुकदमे में बहस के दौरान उनकी मजिस्ट्रेट से बहस हो गई.अंग्रेज मजिस्ट्रेट को इंडियन वकील का कानून की व्याख्या करना बर्दाश्त नहीं हुआ. मजिस्ट्रेट ने गुस्से में कहा, ”मैं तुम्हें अदालत के अन्दर नहीं घुसने दूंगा”. गोविन्द बल्लभ पंत ने कहा, ”मैं आज से तुम्हारी अदालत में कदम नहीं रखूंगा”.वैसे तो गोविंद बल्लभ पंत गांधी जी के समर्थकों में थे, लेकिन क्रांतिकारी विचारधारा वाले नौजवानों के साथ उनकी विशेष सहानुभूति रहा करती थी.1927 में राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ और उनके तीन अन्य साथियों को फांसी के फंदे से बचाने के लिए उन्होंने पंडित मदन मोहन मालवीय के साथ वायसराय को पत्र भी लिखा, लेकिन उस मिशन में कामयाब न हो सके. पंत जी ने साइमन कमीशन बहिष्कार और नमक सत्याग्रह आंदोलन में भी भाग लिया और इसी वजह से मई 1930 में देहरादून जेल की हवा भी खायी. पंत जी ने कुमाऊं में ‘राष्ट्रीय आन्दोलन’ को गांधी जी के ‘अंहिसा’ के सिद्धांतों के आधार पर संगठित किया. आरम्भ से ही कुमाऊं के राजनीतिक आन्दोलन का नेतृत्व पंत जी के हाथों में रहा. कुमाऊं में राष्ट्रीय आन्दोलन का आरम्भ कुली उतार, जंगलात आंदोलन, स्वदेशी प्रचार तथा विदेशी कपडों की होली व लगान-बंदी आदि से हुआ था. बाद में धीरे-धीरे कांग्रेस द्वारा घोषित असहयोग आन्दोलन की लहर कुमाऊं में छा गयी और 1926 के बाद यह कांग्रेस में मिल गयी. 17 जुलाई 1937से लेकर 2 नवम्बर 1939 तक वे ब्रिटिश भारत में संयुक्त प्रान्त अथवा यू०पी० के पहले मुख्य मन्त्री बने। इसके बाद दोबारा उन्हें यही दायित्व फिर सौंपा गया और वे 1अप्रैल 1966 से 15 अगस्त 1947 तक संयुक्त प्रान्त (यू०पी०) के मुख्य मन्त्री रहे। जब भारतवर्ष का अपना संविधान बन गया और संयुक्त प्रान्त का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश रखा गया तो फिर से तीसरी बार उन्हें ही इस पद के लिये सर्वसम्मति से उपयुक्त पाया गया। इस प्रकार स्वतन्त्र भारत के नवनिर्मित राज्य के भी वे 26 जनवरी 1940 से लेकर 27 दिसम्बर 1954 तक मुख्य मन्त्री रहे। गोविंद बल्लभ पंत के नाम पर कई यूनिविर्सिटी व संस्थाएं खुलें है। उनकी गिनती देश के सबसे ईमानदार राजनेताओं में होती थी। वह कोई विशेष सुविधा नहीं लेते थे और न ही कभी सरकारी पैसे से जब उनसे इस बिल को पास न करने का कारण पूछा गया तो वह बोले सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे से केवल चाय मंगवाने का नियम है।सरकारी खजाने पर हमेशा ही जनता और देश का हक है। हम मंत्रियों का नहीं। हम जनता की संपत्ति को अपने ऊपर कैसे खर्च का नियम नही है।
पंत जी ने न केवल राजनैतिक तरीकों से, बल्कि लेखन के माध्यम से भी लोगों को आजादी की मुहिम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. कुमाऊं में अंग्रेजों के शासन से पहले गोरखाओं का शासन था,उनका प्रशासन और न्याय करने का तरीका बेहद क्रूर था. भारत रत्न” पं. गोविन्द बल्लभ पंत जी आधुनिक उत्तर भारत के निर्माता के रूप में याद किये जाते हैं। वह देश भर में सबसे अधिक हिन्दी प्रेमी के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने 4 मार्च, 1925 को जनभाषा के रूप में हिन्दी को शिक्षा और कामकाज का माध्यम बनाने की जोरदार मांग उठाई थी। महात्मा गांधी ने कहा था कि राष्ट्र भाषा के बिना देश गूंगा है। मैं हिन्दी के जरिए प्रान्तीय भाषाओं को दबाना नहीं चाहता किन्तु उनके साथ हिन्दी को भी मिला देना चाहता हूँ। पंत जी के प्रयासों से हिन्दी को राजकीय भाषा का दर्जा मिला। पंत जी ने हिन्दी के प्रति अपने अत्यधिक प्रेम को इन शब्दों में प्रकट किया है− हिन्दी के प्रचार और विकास को कोई रोक नहीं सकता। हिन्दी भाषा नहीं भावों की अभिव्यक्ति है।जब 1815 को अंग्रेजों का शासन कुमाऊं में शुरू हुआ, तो उन्होंने ‘फारेस्ट एक्ट’ बनाने के साथ ही वनों को आरक्षित एवं संरक्षित की नीति घोषित कर दी. ऐसे में लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ तैयार करने के लिए गोविंद बल्लभ पंत ने कमान संभाली. 1916 में ‘कुमाऊं परिषद’ का गठन हुआ और इसके सांगठनिक सचिव पंत जी ही थे. पहाड़ के लोग वनों पर ही आश्रित थे, ऐसे में उनके हक-हकूक प्रभावित हो रहे थे. 1920 में जनता ने असहयोग आंदोलन के समय जंगलों में आग भी लगा दी थी. वनाधिकार कानून आदि से लोगों को किस तरह की परेशानी हो रही थी, इस पर गोविंद बल्लभ पंत ने 1922 में ‘फॉरेस्ट प्रॉब्लम इन कुमाऊं’ पुस्तक लिखी. जाने-माने इतिहासकार डॉ. अजय रावत बताते हैं कि उनकी यह पुस्तक खास तौर से वन और पानी के अधिकार पर फोकस थी. इस पुस्तक से जनता में असंतोष बढ़ने का डर था. अंग्रेज भी इस पुस्तक से इतने भयभीत हो गए थे कि उन्होंने उस पर प्रतिबंध लगा दिया था. बाद में इस पुस्तक को 1980 में पुन: प्रकाशित किया गया. गोविंद वल्लभ पंत अच्छे नाटककार भी रहे। उनका ‘वरमाला’ नाटक, जो मार्कण्डेय पुराण की एक कथा पर आधारित है, बड़ी निपुणता से लिखा गया है। मेवाड़ की पन्ना नामक धाय के अलौकिक त्याग का ऐतिहासिक वृत लेकर ‘राजमुकुट’ की रचना हुई है। ‘अंगूर की बेटी’ (जो फ़ारसी शब्द का अनुवाद है) मद्य में दुष्परिणाम दिखाने वाला सामाजिक नाटक है। विदित हो कि पंत जी के जन्म के चौथे दिन 14 सितम्बर को देश भर में हिन्दी दिवस मनाया जाता है। इसके साथ ही हिन्दी को विश्वव्यापी पहचाने दिलाने के लिए 10 जनवरी को अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत रत्न राजर्षि पुरूषोत्तम दास टण्डन ने हिन्दी को राजभाषा और देवनागरी को राजलिपि के रूप में स्वीकृत कराने में बड़ी भूमिका निभायी है। भारत रत्न श्री अटल बिहारी बाजपेई जी ने भी हिन्दी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। अटल जी ने वर्ष 1977 में जनता पार्टी सरकार में विदेश मंत्री रहते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर इतिहास रचा था। वैश्विक बिरादरी ने इस ऐतिहासिक हिन्दी भाषण तथा करोड़ों भारतीयों के प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया था। वर्तमान में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी हिन्दी को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए जी−जान से कोशिश कर रहे हैं।वर्ष1960 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत को हार्ट अटैक आया और उसके बाद उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ने लगा, जिसके चलते 7 मार्च 1961 को उनका देहांत हो गया. उनकी याद में उनके जन्म स्थान पर एक स्मारक का निर्माण किया गया है. महापुरूष सदैव अपने लोक कल्याण के कार्यों के कारण अमर रहते हैं। आत्मा अजर अमर तथा अविनाशी है। आज वह देह रूप में हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके उच्च नैतिक विचार, सेवा भावना, सादगी, सहजता, हिन्दी प्रेम तथा उज्ज्वल चरित्र देशवासियों का युगों−युगों तक मार्गदर्शन करता रहेगा। हम इस महान आत्मा को शत-शत नमन करते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाओं में हिन्दी भाषा को भी शामिल कराना हिन्दी प्रेमी पंत जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।उत्तराखंड के इस राष्ट्रनायक, प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी, उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री और भारत रत्न से सम्मानित पंडित गोविंद बल्लभ पंत जी को उनकी जन्म जयंती के अवसर पर कोटि कोटि नमन !!