महत्वपूर्ण लेख:- जानिए क्या है मकर संक्रांति का विशेष महत्त्व- प्रो. ललित तिवारी
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते है उस दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है। यह दिन जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें तारीख को पड़ता है और इसीलिए हर वर्ष इसी तारीख पर मकर संक्रांति मनाई जाती है।
मकर संक्रांति का पर्व पौष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है तथा शुभ , मांगलिक कार्यों जैसे शादी, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश आदि की शुरुआत भी होती है।
मकर संक्रान्ति पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस दिन तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: ग्रहों के राजा सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त शुभ माना गया है ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। । मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली जो गंगा सागर कहलाया।
मकर संक्रान्ति पर्व को उत्तरायण भी कहते हैं क्योंकि इस दिन से सूर्य उत्तर दिशा की ओर अग्रसर होता है। वैज्ञानिक तौर पर इसका मुख्य कारण पृथ्वी का निरंतर 6 महीनों के समय अवधि के उपरांत दक्षिण से उत्तर की ओर वलन कर लेना होता है। और यह एक प्राकृतिक तथा खगोलीय घटना है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर तिलगुड़ खाने-खिलाने की परम्परा भी है।
मकर संक्रांति का अर्थ है, सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना तथा वातारण को गर्म करना तथा दिनों को बड़ा करना है । यह एक शुभ समय है जब सूर्य के दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की यात्रा का करते है इसीलिए मकर संक्रांति पर सूर्य देव को अर्घ्य और पूजा-अर्चना करना शुभ माना जाता है तथा पवित्र नदी में स्नान तथा दान का विधान है।
मकर संक्रांति को भगवान विष्णु की असुरों पर जीत का दिन भी माना जाता है। गुजरात में आज के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा है मन जाता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का चयन किया था। मकर संक्रांति पर खिचड़ी खिलाई जाती है जो एक साधारण भोजन नहीं है, बल्कि यह सूर्य और शनि ग्रह से भी जुड़ी हुई मानी जाती है। कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। यह भोजन सेहत के लिए भी फायदेमंद तथा पोषक तत्व प्रदान करती हैं।
कुंभ स्नान का मतलब घड़ा, सुराही, या बर्तन होता है. जिसका उल्लेख वैदिक ग्रंथों में किया गया है। कुंभ एक पर्व का नाम भी है जो हर 12 साल में आता है. इस पर्व पर हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक, और उज्जैन में मेला लगता है ।
कुंभ मेला हर 12 साल में लगता है, क्योंकि हिंदू मान्यता के मुताबिक, देवताओं के 12 दिन मनुष्यों के 12 साल के बराबर होते हैं. पौराणिक मान्यता के मुताबिक, अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच 12 दिनों तक युद्ध चला था। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें 12 स्थानों पर गिरी थीं, जिनमें से चार स्थान पृथ्वी पर हैं. ये चार स्थान हैं – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक. यही वजह है कि इन स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है. ।
कुंभ मेले की तिथियां खगोलीय घटनाओं के आधार पर तय होती हैं।
जब बृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मकर राशि में होता है, तब कुंभ मेले का आयोजन होता है । मान्यता अनुसार जयंत ने कौए का रूप धारण कर राक्षसों से अमृत कलश को बचाने की कोशिश की। जब वो अमृत कलश को लेकर भाग रहे थे, तो उनकी चार बूंदे गिरकर प्रयागराज, उज्जैन , हरिद्वार और नासिक में गिर गई थी। जहां जहां अमृत कलश की बूंदे गिरी वहां-वहां कुंभ मेला का आयोजन किया जाता है।
महाकुंभ मेले का पहला शाही स्नान मकर संक्रांति के दिन होता है। साल 2025 में महाकुंभ का पहला शाही स्नान 14 जनवरी को होगा। इस दिन संगम में डुबकी लगाने से कई गुना पुण्य मिलता है तथा पिछले जन्म के पाप खत्म हो जाते हैं।