फाल्गुन कृष्ण पक्ष की एकादशी जानी जाती है विजया एकादशी के नाम से, आइये जानते हैं किस तिथि को होगा व्रत और क्यों ?
फाल्गुन कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन और धर्मराज युधिष्ठिर को एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया था। युधिष्ठिर ने इस व्रत को विधि विधान के साथ किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार एकादशी व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ होता है। इस व्रत को रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। और सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है कि यह एकादशी हर कार्य में विजय प्रदान करने वाली होती है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत करने से पूजा का 3 गुना फल मिलता है। कहा जाता है कि लंका पर विजय के लिए भगवान श्री राम जी ने भी विजया एकादशी को समुद्र के किनारे पूजा की थी।
विजया एकादशी व्रत कथा।, ,,,,,,,, पांडू पुत्र धनुर्धर अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से एकादशी का महात्म्य सुनकर आनंद विभोर हो रहे हैं। जया एकादशी के महात्म्य को जानने के बाद धनुर्धर अर्जुन कहते हैं हे माधव! फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महत्व है मैं आपसे जानना चाहता हूं? अतः कृपा करके आप इसके विषय में जो कथा है वह सुनाएं। धनुर्धर अर्जुन द्वारा अनुनय विनय पूर्वक प्रश्न किए जाने पर नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण चंद्र जी कहते हैं हे प्रिय अर्जुन! फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है इस एकादशी का व्रत करने वाला सदा विजयी रहता है। हे अर्जुन! तुम मेरे प्रिय सखा हो अतः मैं इस व्रत की कथा तुमसे कह रहा हूं। आज तक इस व्रत की कथा मैंने किसी को नहीं सुनाई है। तुम से पूर्व केवल देवर्षि नारद ही इस कथा को ब्रह्मा जी से सुन पाए हैं। तुम मेरे सबसे प्रिय हो इसलिए तुम मुझसे यह कथा अवश्य सुनो।
त्रेता युग की बात है श्री रामचंद्र जी जो विष्णु के अंशावतार थे अपनी पत्नी सीता को ढूंढते हुए सागर तट पर पहुंचे। सागर तट पर भगवान का परम भक्त जटायु नामक पक्षी रहता था। उस पक्षी ने बताया कि सीता माता को सागर पार लंका नगरी का राजा रावण ले गया है और माता इस समय अशोक वाटिका में है। जटायु द्वारा सीता का पता जानकर श्री रामचंद्र जी अपनी वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण की तैयारी करने लगे परंतु सागर के जल जीवो से भरे दुर्गम मार्ग से होकर लंका पहुंचना प्रश्न बनकर खड़ा था। भगवान श्रीराम इस अवतार में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में दुनिया के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते थे। आत: साधारण मानव की भांति चिंतित हो गए। जब उन्हें सागर पार जाने का कोई मार्ग नहीं मिल रहा था तब उन्होंने लक्ष्मण से पूछा कि हे लक्ष्मण! इस सागर को पार करने का कोई उपाय मुझे सूझ नहीं रहा अगर तुम्हारे पास कोई उपाय है तो बताओ। भगवान श्री रामचंद्र जी की बात सुनकर लक्ष्मण बोले प्रभु आप से तो कोई भी बात छिपी नहीं है आप स्वयं सर्व समर्थ वान है फिर भी मैं कहूंगा कि यहां से आधा योजन दूर परम ज्ञानी वकदाल्भ्य मुनि का निवास है हमें उनसे ही इसका हल पूछना चाहिए। भगवान श्री राम लक्ष्मण समेत वकदाल्भ्य मुनि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें प्रणाम करके अपना प्रश्न उनके सामने रख दिया। मुनि ने कहा हे राम! आप अपनी सेना समेत फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखें। इस एकादशी के व्रत से आप निश्चित ही समुद्र को पार कर रावण को पराजित कर देंगे। भगवान श्री रामचंद्र जी ने तब उक्त तिथि के आने पर अपनी सेना सहित मुनिवर के बताएं विधान के अनुसार एकादशी का व्रत रखा और सागर पर पुल का निर्माण कर लंका पर चढ़ाई की। भगवान श्री राम और रावण का युद्ध हुआ जिसमें रावण मारा गया।
विजया एकादशी व्रत की पूजा विधि।, ,,,,,,, विजया एकादशी के दिन सबसे पहले प्रातः काल उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके सर्वप्रथम संकल्प लें। उसके बाद घर के मंदिर में पूजा करने से पहले एक वेदी बनाकर उस पर सप्तधान्य अर्थात सात प्रकार के अनाज जैसे कि उड़द मूंग गेहूं चना जौ धान आदि रखें। वेदी के ऊपर एक कलश की स्थापना करें और उसमें आम के पांच पत्ते लगाएं। अब वेदी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें। तदुपरांत भगवान विष्णु को पीले फूल ऋतु फल और तुलसी दल समर्पित करें। फिर धूप दीप से विष्णु भगवान की आरती करें। शाम के समय भगवान विष्णु की आरती उतारने के बाद फलाहार ग्रहण करें। कथा श्रवण करें। कथा स्वयं पढ़ें अथवा श्रवण करें। रात्रि के समय सोए नहीं बल्कि भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। अगले दिन प्रातः किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथाशक्ति दक्षिणा देकर विदा करें। यदि संभव हो तो विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
महत्त्व, ,,,,,,, पद्म पुराण के अनुसार इस व्रत का वर्णन स्वयं भगवान शिव और नारद मुनि के द्वारा किया गया है। इस एकादशी के प्रभाव से मनुष्य के संपूर्ण पापों का नाश होता है। इसके साथ ही मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को सच्चे ह्रदय नियम और निष्ठा के साथ करता है उसका पित्र दोष भी दूर होता है। विजया एकादशी व्रत से व्यक्ति सभी कार्यों में विजय प्राप्त करता है।
शुभ मुहूर्त। हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष सन् 2022 में दिनांक 26 फरवरी को विजया एकादशी व्रत रखा जाएगा। वैष्णव संप्रदाय के लोग दिनांक 27 फरवरी 2022 को एकादशी व्रत रखेंगे। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी तिथि का प्रारंभ शनिवार दिनांक 26 फरवरी 2022 को प्रातः 10:39 से हो जाएगा जो अगले दिन दिनांक 27 फरवरी 2022 दिन रविवार को प्रातः 8:12 तक रहेगी। अतः स्मार्त समुदाय के लोग दिनांक 26 फरवरी एवं वैष्णव समुदाय के लोग दिनांक 27 फरवरी को एकादशी व्रत रखेंगे। पाठकों को एक महत्वपूर्ण बात बताना चाहूंगा कि इस बार विजया एकादशी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग एवं त्रिपुष्कर योग भी बन रहे हैं। विजया एकादशी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त विशेष शुभ मुहूर्त दोपहर 12:11 से दोपहर 12:57 तक विशेष रहेगा वहीं अगर इस दिन राहु काल की बात करें तो इस दिन शाम के 4:53 से शाम 6:19 तक राहुकाल रहेगा। दिनांक 26 फरवरी दिन शनिवार को मूल नक्षत्र 9 घड़ी 29 पल तक रहेगा एवं सिद्धि योग 35 घड़ी 14 पल तक रहेगा यदि इस दिन चंद्रमा की स्थिति जाने तो दिनांक 26 फरवरी को चंद्रदेव पूर्णरूपेण धनु राशि में रहेंगे 27 फरवरी के दिन 19 घड़ी 9 पल के बाद चंद्रदेव मकर राशि में प्रवेश करेंगे।