भारतीय ज्ञान, संस्कृति और परंपराओं में भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को शांति पथ पर ले जाने की है सामर्थ्य – कुलपति प्रो० दीवान एस रावत
भारतीय ज्ञान, संस्कृति और परंपराओं में भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को शांति पथ पर ले जाने की है सामर्थ्य – कुलपति प्रो० दीवान एस रावत
कुविवि के “देवदार सभागार” में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर हुआ संगोष्ठी का आयोजन
नैनीताल || आज दिनांक 28 फ़रवरी 2024 को कुमाऊं विश्वविद्यालय के यूजीसी-मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र के “देवदार सभागार” में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी को फेलो ऑफ नेशनल एकेडमी प्रो० रूप लाल, स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ० राजेंद्र डोभाल, तथा कुलपति कुमाऊँ विश्वविद्यालय प्रो० दीवान एस रावत द्वारा संबोधित किया गया।
विद्यार्थियों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रति जागरूकता एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने हेतु राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी का शुभारम्भ राष्ट्रगान व कुलगीत की सुमधुर प्रस्तुति एवं मंचासीन अतिथियों को पुष्पगुच्छ प्रदान कर किया गया।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कुलपति कुमाऊँ विश्वविद्यालय प्रो० दीवान एस रावत ने कहा कि अब देश इंडीजेनस ज्ञान से विकसित भारत की तरफ बड़ रहा है। भारत की ज्ञान परंपरा का अतीत प्राचीन एवं गौरवपूर्ण रहा है। बोधायन, कात्यायन, आर्यभट्ट, चरक, कणाद, वाराहमिहिर, नगार्जुन, अगस्त, भर्तृहरि, शंकराचार्य, स्वामी विवेकानंद जैसे अनेक महापुरुषों ने भारत भूमि पर जन्म लेकर अपनी प्रतिभा व मेधा से विश्व में भारतीय ज्ञान परंपरा के समृद्धि हेतु अतुलनीय योगदान दिया है। अंग्रेजों ने सदियों से चली आ रही भारतीय ज्ञान परंपरा की न केवल उपेक्षा की, बल्कि उसे नष्ट-भ्रष्ट भी किया। वे कला, संगीत, साहित्य, न्याय, दर्शन, स्थापत्य, मूर्तिकला, योग, धातु विज्ञान, वस्त्र-निर्माण, रसायनशास्त्र, गणित, खगोल, ज्योतिष, चिकित्सा और कृषि आदि विविध क्षेत्रों में भारतीयों की समृद्ध एवं गौरवशाली ज्ञान परंपरा से भली तरह परिचित थे। वे जानते थे कि इनके रहते भारतीयों को वास्तविक अर्थों में परतंत्र एवं परावलंबी नहीं बनाया जा सकता। इसलिए उन्होंने तमाम नीतियों एवं योजनाओं द्वारा पहले तो ज्ञान के इन परंपरागत स्रोतों को नष्ट किया और फिर सुनियोजित तरीके से इन सबके प्रति हम भारतीयों में हीन भावना विकसित की। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान, संस्कृति और परंपराओं में ही वह सामर्थ्य है, जिससे भारत अकेले ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को शांति पथ पर ला सकता है।
इस अवसर पर फेलो ऑफ नेशनल एकेडमी प्रो० रूप लाल ने कहा कि हमारे दैनिक जीवन से लेकर ब्रह्मांड में घटित होने वाली सभी घटनाओं के पीछे कोई न कोई विज्ञान छिपा हुआ है। हमें बस जरूरत है, तो उसे समझने और सामने लाने की। उन्होंने कहा कि हमने 30 सालो में विज्ञान के दम पर बहुत उन्नति की है। विज्ञान है, तो हम है। विकास के पथ पर कोई देश तभी आगे बढ़ सकता है जब उसकी आने वाली पीढ़ी के लिये सूचना और ज्ञान आधारित वातावरण बने और उच्च शिक्षा के स्तर पर शोध तथा अनुसंधान के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों। विज्ञान-प्रौद्योगिकी और शोध के दम पर ही हम 2047 तक विकसित भारत बन सकते हैं।
इस अवसर पर स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ० राजेंद्र डोभाल ने कहा कि वैज्ञानिक सोच और उसके आधार पर जब हमारे देश में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक निर्णय लेने की शुरूआत एक अनिवार्य प्रक्रिया के रूप में हो जाएगी, तब ही हम गरीबी, बेरोजगारी और विदेशों में प्रतिभा के पलायन को समाप्त करने की दिशा में ठोस कदम उठा पाएंगे। उन्होंने विद्यार्थियों से यह भी कहा कि हमारी परंपराओं में जो भी अच्छी बातें हैं उनको ग्रहण करे तथा जो उपयोगी नहीं है उसको त्याग दे।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रो० ललित तिवारी ने राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के सन्दर्भ प्रकाश डाला। इस अवसर पर प्रश्नोत्तरी एवं वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के विजेताओं को नकद पुरुस्कार तथा प्रमाण पत्र भी प्रदान किये गए।
संगोष्ठी में निदेशक डीएसबी परिसर प्रो० नीता बोरा शर्मा, प्रो० अतुल जोशी, प्रो० चित्रा पांडे, प्रो० संजय पंत, प्रो० एम०सी० जोशी ,प्रो० एन०जी० साहू, प्रो० सुच्ची बिष्ट, प्रो० गीता तिवारी, प्रो० ज्योति जोशी, डॉ० पैनी जोशी, डॉ० महेंद्र राणा, डॉ० रितेश साह, डॉ० नवीन पांडे, डॉ० हेम भट्ट, स्वाति, गीतांजलि, प्रांजलि, नितवाल, इंद्र, अरविंद, जतिन, कविता आदि उपस्थित रहे।