बहुत महत्वपूर्ण है भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी। चक्रवर्ती सम्राट हरिश्चंद्र ने भी किया था यह व्रत
यह एकादशी व्रत कथा चक्रवर्ती राजा हरिश्चंद्र से जुड़ी है। पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार राजा हरिश्चंद्र एक सत्यवादी राजा थे। उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया कि उनका सारा राजपाट चौपट हो गया। राजा की पत्नी पुत्र सब अलग हो गए। पूरा परिवार छूट गया।
शुभ मुहूर्त,,,,, इस बार सन् 2023 में दिनांक 10 सितंबर 2023 दिन रविवार को अजा एकादशी व्रत मनाया जाएगा ।इस दिन 38 घड़ी 50 पल अर्थात रात्रि 9:28 बजे तक एकादशी तिथि है तदुपरांत द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी। पुनर्वसु नामक नक्षत्र 27 घड़ी 50 पल अर्थात शाम 5:04 बजे तक है । यदि करण की बात करें तो इस दिन बव नामक करण 6 घड़ी तीन पल अर्थात प्रातः 8:21:00 तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव प्रातः 10:24 बजे तक मिथुन राशि में विराजमान रहेंगे तदुपरांत चंद्रदेव कर्क राशि में प्रवेश करेंगे।
पूजा विधि—-
अजा एकादशी व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सो आदि से निवृत होकर किसी नदी या जल स्रोत में स्नान करें। यदि ऐसा संभव न हो तो घर में ही जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। तदुपरांत तुलसी वृंदावन के सम्मुख बैठकर सर्वप्रथम एकादशी व्रत का संकल्प लें।
हाथ में जौं पुष्प कुशा और गंगाजल लेकर हरि:ओम विष्णु विष्णु विष्णु आदि,,, अमुक गोत्र उत्पन्न (अपने गोत्र का उच्चारण करें) अमुक नाम्ने(अपने नाम का उच्चारण करें। भाद्रपदमासे कृष्ण पक्षे अजा एकादशी व्रतं करिक्षे सहित संकल्प पूर्ण करें।
तदुपरांत तुलसी वृंदावन के सम्मुख भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। उन्हें स्नान करायें पंचामृत स्नान कराएं पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएं। तदुपरांत गढ़ होली कुमकुम एवं जौ चढ़ाएं। फल एवं द्रव्य चढ़ाएं। इसके बाद अजय एकादशी व्रत कथा श्रवण करें अथवा स्वयं कथा पढ़ें। इसके उपरांत भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की आरती करें तदुपरांत तीन बार प्रदक्षिणा करें।
अजा एकादशी व्रत कथा।,,,,,, पौराणिक कथाओं के अनुसार एकादशी व्रतों की तरह भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह कथा सुनाई। एक बार अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से कहा हे पुंडरीकाक्ष !मैंने सावन शुक्ल एकादशी अर्थात पुत्रदा एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब कृपा करके मुझे भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइए। इस एकादशी को क्या कहते हैं? और इसका क्या विधान है? इस का व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है? अर्जुन की बात सुनकर भगवान श्री कृष्ण बोले हे कुंती पुत्र! भादो मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहते हैं। इस का व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस लोक और परलोक में सहायता करने वाली इस एकादशी व्रत के समान और कोई व्रत नहीं है। अब ध्यान पूर्वक इस एकादशी का माहात्म्य श्रवण करो। पौराणिक समय में भगवान श्री राम के वंश में अयोध्या नगरी में एक चक्रवर्ती राजा हरीश चंद्र नाम के राजा हुए राजा अपनी सत्य निष्ठा और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार देवताओं ने इनकी परीक्षा लेने की योजना बनाई। राजा ने सपने में देखा कि ऋषि विश्वामित्र को उन्होंने अपना राजपाट दान कर दिया है। सुबह वास्तव में विश्वामित्र उनके द्वार पर आकर कहने लगे तुम ने स्वप्न में मुझे अपना राज्य दान कर दिया। राजा ने कनिष्ठ व्रत का पालन करते हुए संपूर्ण राज्य विश्वामित्र को दे दिया। दान के लिए दक्षिणा चुकाने हेतु राजा हरिश्चंद्र को पूर्व जन्म के कर्म फल के कारण पत्नी बेटा एवं खुद को बेचना पड़ा। राजा हरिश्चंद्र को एक डोम ने खरीद लिया जो श्मशान भूमि में लोगों के दाह संस्कार का काम करवाता था। स्वयं वह एक चांडाल का दास बन गया। उसने उस चांडाल के यहां कफन लेने का काम किया। किंतु उसने इस आपत्ति के काम में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा। जब इसी प्रकार उसे कई वर्ष बीत गए तो उसे अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुख हुआ और वह इससे मुक्त होने का उपाय खोजने लगा। कि मैं क्या करूं? किस प्रकार इस नीच कर्म से मुक्ति पाऊं। एक बार की बात है वह इसी चिंता में बैठा था कि गौतम ऋषि उसके पास पहुंचे। हरिश्चंद्र ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी दुख भरी कथा सुनाने लगे। राजा हरिश्चंद्र की दुख भरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी अत्यंत दुखी हुए और उन्होंने राजा से कहा कि हे राजन !भादो मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा एकादशी है। तुम उस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तथा रात्रि को जागरण करो। इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे। महर्षि गौतम इतना कहकर आलोक हो गए। भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादशी आने पर राजा हरिश्चंद्र ने महर्षि के कहे अनुसार विधिपूर्वक उपवास तथा रात्रि जागरण किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा के सभी पाप नष्ट हो गए। उस समय स्वर्ग से नगाड़े बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी। उन्होंने अपने सामने ब्रह्मा विष्णु महेश तथा देवराज इंद्र आदि देवताओं को खड़ा पाया। उन्होंने अपने मृतक पुत्र को जीवित तथा अपनी पत्नी को राजस्व वस्त्र तथा आभूषणों से परिपूर्ण देखा। व्रत के प्रभाव से राजा हरिश्चंद्र को पुनः अपने राज्य की प्राप्ति हुई। वास्तव में एक ऋषि ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब किया था। परंतु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से राजा द्वारा रची गई सारी माया समाप्त हो गई। और अंत समय में राजा हरिश्चंद्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को गया। हे राजन !यह सब अजा एकादशी के व्रत का प्रभाव था। जो मनुष्य इस उपवास को विधिपूर्वक करते हैं तथा रात्रि जागरण करते हैं उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में वह स्वर्ग को प्राप्त करते हैं। इस एकादशी व्रत की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति हो जाती है।
तो बोलिए भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की जै!
नन्द नन्दन भगवान श्री कृष्ण की जै!
पांडू पुत्र अर्जुन की जै!
सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की जै!
लेखक पंडित प्रकाश जोशी।