जेष्ठ शुक्ल दशमी को गंगा दशहरा का अपना एक अलग ही महत्व है आइये जानते हैं
गंगा दशहरा पर विशेष। जेष्ठ शुक्ल दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस बार रविवार 20 जून 2021 को गंगा दसरा पड़ रहा है। इस पावन पर्व पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। परंतु इस काल में गंगा स्नान करना असंभव सा है। आता है जो व्यक्ति गंगा स्नान न कर सके वह समीर के नदियों अथवा सरोवर में स्नान करें बाल वृद्ध रोगी घर में जल में गंगा जल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। वैसे तो यह पर्व संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है परंतु कुमाऊं में इसे गंगा दशहरा न कहकर दशहरा कहते हैं। कुछ लोग इसके संबंध में गंगा “की कथा से परिचित नहीं होते हैं। उनके लिए तो दशहरे का अर्थ पुरोहितों द्वारा वह द्वार पत्र है जोकि वज्र निवारक मंत्रों के साथ दरवाजे के ऊपर लगाया जाता है। ब्राह्मण लोग एक सफेद कागज में विभिन्न रंगों का रंगीन चित्र बनाकर उसके चारों और बहू वृत्तीय कमल दलों का अंकन किया जाता है। जिसमें लाल पीले हरे रंग भरे जाते हैं इसके बाहर वज्र निवारक 5 ऋषि यों के नाम के साथ मंत्र लिखा जाता है। ब्राह्मणों द्वारा यजमान ओके घर जाकर दरवाजे के ऊपर चिपका जाते हैं। इस अवसर पर ब्राह्मणों को चावल और दक्षिणा भी दी जाती है। इस दशहरा द्वार पत्र लगाने के पीछे प्राचीन समय से यह किंबदंती चली आ रही है की इससे मकान भवन पर वज्रपात बिजली आदि प्राकृतिक प्रकोप ओं का विनाशकारी प्रभाव नहीं पड़ता है। वैसे वर्षा काल में जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में वज्रपात की अनेक घटनाएं होती हैं। इस प्रकार के वज्र निवारक टोटके का प्रयोग आयोजन की तरह करा जाता है। यह वहां की सांस्कृतिक परंपरा का महत्वपूर्ण अंग माना जा सकता है। इस रूप में इस पर्व का आयोजन कुमाऊं के अतिरिक्त अन्यत्र नहीं किया जाता है। कुमाऊं की संस्कृति के अनुसार लगभग 85 से 90 वर्ष पहले गंगा दशहरा द्वार पत्र बनाने की विधि इस प्रकार थी कि एक साफ-सुथरे पत्र पत्थर की सलेट में चित्र की उल्टी आकृति बनाकर मंत्र लिखकर मशीन में लगाया जाता था। फिर पत्थर के चित्र में मंत्र लिखकर मशीन में लगाया जाता था। इसके बाद पत्थर के खाली जगह पर पानी लगाया जाता था। इसके बाद चित्र पर काली स्याही लगाई जाती थी। इसके बाद पत्थर की सलेटी पर कागज रखा जाता था ऊपर भारी चीज से दबाया जाता था। जिससे पत्थर में बने चित्र कागज में छप जाते थे सफेद कागज में चित्र छप कर उस में रंग भरे जाते थे। हमें कुमाऊं वासियों को यह परंपरा जीवित रखनी चाहिए और घर घर में और देव स्थलों में दशहरा द्वार पत्र अवश्य लगाना चाहिए। जो अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्राकृतिक तौर पर भी लाभदायक है। लेखक श्री पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल,