जानकी जयंती पर क्या है विशेष,आइये जानते हैं
जानकी जयंती पर विशेष,,,,,
शुभ मुहुर्त,,,,,,,,आज नवमी तिथि दिन में 3:08 से प्रारंभ होगी। यदि नक्षत्रों की बात करें तो आज दिन में 1:32 तक अनुराधा नामक नक्षत्र रहेगा तदुपरांत जेष्ठा नामक नक्षत्र उदय होगा । यदि आज करण के बारे में जाने तो दिन में 3:06 तक कौलव नामक करण रहेगा तदुपरांत तैतिल नामक करण होगा। सबसे महत्वपूर्ण योग की बात करें तो आज हर्षण नामक योग रहेगा। अंत में यदि आज के चंद्रमा के बारे में जाने तो आज के दिन चंद्र देव पूर्णरूपेण वृश्चिक राशि में रहेंगे।
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को जानकी जयंती मनाई जाती है। इस बार 2022 में यह पावन पर्व दिनांक 24 फरवरी 2022 दिन गुरुवार को मनाया जाएगा। माता जानकी मिथिला नरेश राजा जनक की पुत्री थी उनका असली नाम सिया अथवा सीता था। राजा जनक की पुत्री होने के कारण इन्हें जानकी कहा जाने लगा। माता सीता को लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। जिनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी के साथ हुआ। विवाह के बाद माता जानकी को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी के साथ 14 वर्ष का वनवास भी झेलना पड़ा।
माता सीता के जन्म को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जिसके अनुसार कहा जाता है कि देवी सीता राजा जनक की गोद ली हुई पुत्री थी। जबकि कहीं-कहीं इस बात का भी जिक्र किया जाता है की माता सीता लंकापति रावण की पुत्री थी। ऐसी स्थिति में प्रश्न उठता है कि आखिर माता सीता का जन्म कैसे हुआ था ?
आज मैं प्रिय पाठकों को इस संबंध में विशेष जानकारी देना चाहूंगा। आइए जानते हैं कुछ पौराणिक कथाएं।
बात यदि वाल्मीकि रामायण की करें तो वाल्मीकि रामायण के अनुसार बहुत समय पहले की बात है मिथिला में भयंकर सूखा पड़ गया। कई वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। जनता भूखों मरने लगी सभी जीव जंतु व्याकुल होने लगे। राजा जनक भी चिंता करने लगे। तब आकाशवाणी हुई कि अगर राजा जनक स्वयं हल चलाकर खेत जोत तो वर्षा होगी। तत्पश्चात आकाशवाणी सुनकर राजा जनक ने ऐसा ही किया। हल चलाते-चलाते एक बार हल का फल जमीन में एक सोने के घड़े से टकरा गया। घड़े में से एक सुंदर कन्या निकली। कन्या का नाम सिया रखा गया। इसका नाम सिया क्यों रखा गया? पाठकों की जानकारी हेतु बताना चाहूंगा की हल चलाते समय हल से खुदी हुई जो लकीर धरती पर पड़ती है उस लकीर को सिया कहते हैं अतएव उस कन्या का नाम सिया रखा गया। राजा जनक की कोई संतान नहीं थी इसलिए उस कन्या को हाथों में लेकर उन्हें पिता प्रेम की अनुभूति हुई। और राजा जनक ने उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया। और तब घनघोर बादल छा गए और वर्षा हुई सभी जीव जंतु मैं नई चेतना लौट आई।
अब मैं प्रिय पाठकों को माता सीता के जन्म से जुड़ी हुई एक दूसरी प्रचलित कथा के संबंध मैं जानकारी देना चाहूंगा। जिसके अनुसार कहा जाता है कि माता सीता लंकापति रावण और मंदोदरी की पुत्री थी। इस कथा के अनुसार सीता जी वेदवती नामक एक स्त्री का पुनर्जन्म थी। वेदवती विष्णु जी की परम भक्त थी और वह उन्हें पति के रूप में पाना चाहती थी। इसलिए भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए वेदवती ने कठोर तपस्या भी की। कहा जाता है कि 1 दिन रावण वहां से निकल रहा था जहां वेदवती तपस्या कर रही थी और वेदवती की सुंदरता को देखकर रावण उस पर मोहित हो गया। रावण ने वेदवती को अपने साथ चलने के लिए कहा लेकिन वेदवती ने साथ जाने से इनकार कर दिया। वेदवती ने मना करने पर रावण को क्रोध आ गया और उसने वेदवती के साथ दुर्व्यवहार करना चाहा। रावण के स्पर्श करते ही वेदवती ने खुद को भस्म कर लिया। और रावण को श्राप दिया कि वह रावण की पुत्री के रूप में जन्म लेगी और रावण की मृत्यु का कारण बनेगी। कुछ समय उपरांत मंदोदरी ने एक कन्या को जन्म दिया। लेकिन वेदवती के श्राप से भयभीत रावण ने जन्म लेते ही उस कन्या को सागर में फेंक दिया। तदुपरांत सागर की देवी वरुण देवी ने उस कन्या को धरती देवी को सौंप दिया। और धरती ने उस कन्या को राजा जनक और माता सुनैना को सौंप दिया। तदुपरांत राजा जनक ने सीता का पालन पोषण किया और उसका विवाह भगवान श्री राम के साथ संपन्न कराया। तदुपरांत वनवास के दौरान रावण ने सीता का अपहरण किया जिसके कारण श्री राम ने रावण का वध किया। इस प्रकार से सीता रावण के वध का कारण बनी। तो बोलो सियावर रामचंद्र की जय। जगत जननी सीता माता की जय। लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल ( उत्तराखंड)