बंजर भूमि पर लेमन ग्रास जमीन लीज पर

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला दून विश्वविद्यालय देहरादून उत्तराखंड
लेमनग्रास एक पौधा है जो इंडोनेशियाए भारत मलेशिया कंबोडिया और श्रीलंका में उगता है। यह अपने खास स्वाद की वजह से खाना बनाने के लिए पापुलर है। आप सूप सलाद और कई पैन एशियाई डीश में लेमनग्रास पा सकते हैं। अपने बेहतरीन गुणों के कारणए लेमनग्रास को औषधीय पौधे के रूप में भी सराहा जाता है। लेमन ग्रास से निकलने वाले तेल की बाजार में बहुत मांग है लेमन ग्रास से निकलने वाला तेल कॉस्मेटिक्स साबुन और तेल और दवा बनाने वाली कंपनियां यूज करती हैंं इस वजह से इसकी अच्छी कीमत मिलती है पिछले कुछ सालों में किसानों का भी लेमन ग्रास की फसल की ओर रूझान बढ़ा है लेमनग्रास की खूबी ये है कि इसे सूखा प्रभावित इलाकों में भी लगाया जा सकता हैण्लेमनग्रास की नर्सरी बेड तैयार करने का सबसे अच्छा समय मार्च.अप्रैल का महीना है लेमनग्रास का फैलाव इसके बढ़ने की प्रकृति पर निर्भर करता हैण् लेमनग्रास की बुवाई की गहराई 2.3 सेंटीमीटर होनी चाहिए बुवाई से पहले बीज का रासायनिक उपचार किया जा सकता हैै लेमन ग्रास का पौधा लगाने के बाद यह लगभग छह महीने में तैयार हो जाता है उसके बाद हर 70 से 80 दिनों पर किसान इसकी कटाई कर सकते है साल भर में इस पौधे की पांच से छह कटाई की जा सकती है एक बार पौधा लगाने के बाद किसान को लगभग सात साल तक दोबारा पौधा लगाने से मुक्ति मिल जाती है यह एक बड़ी वजह है कि लेमन ग्रास के इस पौधे को बारहमासी मुनाफा देने वाली फसल भी कहा जाता हैण् लेमनग्रास की खेती ज्यादा मंहगी नहीं हैए इसका एक पौधा केवल 75 पैसे में मिलता हैण् इस खेती की सबसे अच्छी बात यह है कि अन्य फसलों की अपेक्षा लेमनग्रास में बीमारियां भी कम लगती हैंण् आयुर्वेदिक कृषि के रूप में हर राज्य का बागवानी बोर्ड लेमन ग्रास की खेती के लिए अलग.अलग सब्सिडी देता है लेमनग्रास की पत्तियां कड़वी होने की वजह से जानवर भी इसे नहीं खाते और इसके रख रखाव पर भी ज्यादा ध्यान नहीं देना पड़ता लेमनग्रास की खेती के लिये आम तौर पर राज्य सरकार प्रति एकड़ 2000 रुपये की सब्सिडी देती है इसके साथ ही डिस्टीलेशन यूनिट लगाने के लिये 50 फीसदी तक की सब्सिडी अलग से मिल सकती है किसानों की मदद के हिसाब से लेमन ग्रास की खेती के लिए नाबार्ड की तरफ से कई प्रकार के लोन भी दिये जाते है भारत में सालाना लगभग 1000 मीट्रिक टन लेमन ग्रास का उत्पादन होता हैए जबकि दुनिया में इसकी मांग बहुत अधिक है इस समय भारत सिर्फ 5 करोड़ रुपये का लेमन ग्रास तेल निर्यात कर रहा है भारत का लेमनग्रास तेल किट्रल की उच्च गुणवत्ता के चलते हमेशा मांग में रहता है भले ही घास हो लेकिन यह गुणों से भरपूर है। इस घास की यह खासियत है कि यह एंटीऑक्सीडेंट एंटी.इंफ्लेमेंटरी एंटी.सेप्टिक और विटामिन सी से भरपूर है जो रोगों से लड़ने की क्षमता पैदा करती है। इसमें कई सारे पोषक तत्व जैसे कैल्शियमए आयरन मैग्नीशियम फास्फोरस प्रोटीन फैट कार्बोहाइड्रेट मिनरल पोटैशियम सोडियम जिंक कॉपर मैंगनीजए विटामिन बी.6ए विटामिन सी विटामिन आदि पाए जाते हैं। लेमन ग्रास का इस्तेमाल करके शरीर को आसानी से डिटॉक्सिफाई किया जा सकता है। यह यूरिन के जरिये शरीर के सारे विषैले पदार्थों को बाहर निकालता है। डिटॉक्सिफिकेशन के में ले सकते हैं। सिर पर हल्के हाथों से इस तेल से मसाज करने से जल्द ही अनिद्रा और चिंता की समस्या दूर हो जाती है जरिये शरीर का वजन कम होते है। इसलिए लेमन ग्रास का प्रतिदिन सेवन करें। यदि चाय नहीं पीते हैं तो डिटॉक्स वॉटर बनाते वक्त पानी में नींबू के साथ लेमन ग्रास भी डालकर रखें। लेमन ग्रास से अनिद्रा का उपचार भी होता है। लेमन ग्रास में सीडेटिव गुण पाए जाते हैंए जो कि आपको गहरी एवं अच्छी नींद लाने में सहायता करते हैं। जिन लोगों को तनाव व अवसाद की समस्या होती है उन्हें भी लेमन ग्रास का इस्तेमाल करना चाहिए। आप चाहें तो लेमन ग्रास का तेल भी उपयोग । इसका तेल जिसमें 75 प्रतिशत सिट्रल होता एंटी बैक्टीरियल एंटी फंगल व एंटी इन्फ्लेमेटरी होने के कारण अनेक सौंदर्य प्रसाधनोंए दवाइयों व पेय पदार्थों में काम आता है। प्रचुर मात्रा में मैग्नीशियम होने के कारण इसकी चाय एक बहुत अच्छे स्ट्रैस बस्टर टॉनिक का काम करती है। शोध में पाया गया है कि मैग्नीशियम की कमी तनाव से जुड़ी समस्याओं जैसे सिरदर्द अनिद्रा थकान चिंता व अवसाद आदि की कारक हो सकती है। ऐसे में लेमन ग्रास का सेवन इन समस्याओं से उबरने में आपकी मदद कर सकता है। इसमें पाए जाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट्स त्वचा को कांतिमय बनाते हैं। एक बाल्टी पानी में दो बूंद तेल की डालकर नहाने से मन यूं ही तरोताजा हो जाता है। अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में कृषि भूमि में तो कमी आई ही है साथ ही बंजर भूमि भी कम हो गई है। राज्य गठन के समय साल 2000.01 में प्रदेश में 1225556 हेक्टेयर भूमि पर खेती होती थी जो साल 2018.19 में घटकर 1029014 हेक्टेयर हो गई। चौंकाने वाली बात यह है कि बंजर भूमि में कमी आई है लेकिन उसका उपयोग कृषि रकबा बढ़ाने में नहीं हुआ है।पलायन की मार और जंगली एवं लावारिस पशुओं के आतंक के चलते पहाड़ी जिलों में कृषि रकबा साल दर साल घटता चला गया। उपजाऊ माने जाने वाले मैदानी जिलों हरिद्वार और देहरादून में भी कृषि भूमि में कमी आई है। राज्य बनने के बाद बढ़े शहरीकरण को इसका कारण माना जाता है। लेकिनए सिडकुल में उद्योगों की बाढ़ और जनसंख्या बढ़ने के साथ कृषि भूमि में कॉलोनियां बन जाने के बावजूद सरकारी आंकड़ों में ऊधमसिंह नगर जिले में कृषि रकबा कम न होना आश्चर्य पैदा करता है। वन अधिनियम 1927 वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत आपराधिक मामले पंजीकृत किए जाएंगे।लीज निर्धारण करते समय भूमि का मूल्य अगर एकमुश्त लिया गया है तो नवीनीकरण के समय उस वक्त के सर्किल रेट को देखते हुए प्रीमियम का निर्धारण कर पूर्व में दिए गए प्रीमियम को समायोजित करते हुएए अगर कोई बकाया राशि बनती है तो उसे प्राप्त करने के बाद लीज का नवीनीकरण किया जाएगा। उत्तराखंड सरकार ने राज्य की कृषि भूमि को लीज पर देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अब कोई भी व्यक्ति या संस्था उत्तराखंड में 30 सालों के लिए जमीन लीज पर ले सकता है। सरकार का कहना है कि इससे उत्तराखंड वासियों को बंजर या खाली पड़ी जमीन से भी आमदनी होगी और उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को फायदा होगाए लेकिन क्या ऐसा होगाघ्जानेमाने कृषि विशेषज्ञ कहते हैं कि अब तक उत्तराखंड में बटाई पर तो खेती की जमीन देते थेए लेकिन उद्योगपतियों को जमीन लीज पर देने का मतलब किसान अपनी ही जमीन का श्रमिक बन जाएगा। उत्तराखंड ऐसा पहला राज्य हैए जो इस तरह का कदम उठा रहा है। देविंदर कहते हैं कि उत्तराखंड धीरे.धीरे कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग ;ठेके पर खेतीद्ध की ओर बढ़ रहा है। लेकिन अब तक के ज्यादातर अध्ययन से पता चलता है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग बहुत उपयोगी साबित नहीं हुई है।वह सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि सरकार कॉर्पोरेट्स को पैसा देने को तैयार हैए लेकिन किसान को देने को तैयार नहीं। कंपनियों के लिए सरकार निवेश कर सकती हैए लेकिन किसान की सुविधा के लिए नहीं। यही वजह है कि अब किसान खेती करना ही नहीं चाहता। अपने बच्चों से खेती नहीं करवाना चाहता। फिर जमीन का क्या होगा। अब हम इस स्तर पर आ पहुंचे हैं कि बंजर खेत उद्यमियों को देने की नौबत आ गई है। वह हिमाचल प्रदेश का उदाहरण देते हैंए जहां देश के सबसे समृद्ध गांव हैं। वहां के किसान भी खेती छोड़कर शहरों में बसना चाहते हैं। ऐसी मानसिकता बन गई है कि आप शहर के दो कमरों में रहना चाहते हैं लेकिन गांव के बड़े घर में नहीं। जबकि वहां सारी सुविधाएं मौजूद हैं। दरअसल सरकार चकबंदी लागू करने में असफल रही तो अब यह तरीका निकाला है। राजभवन से अनुमति मिलने के बाद 21 जनवरी को अधिसूचना जारी कर दी गई है। उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भू.सुधार कानून.1950 में संशोधन के बाद यह व्यवस्था अब लागू हो गई है। इसके तहत किसान अधिकतम 30 एकड़ तक ज़मीन खेतीए हॉर्टीकल्चर जड़ी.बूटी उत्पादन पॉलीहाउस दुग्ध उत्पादन और सौर ऊर्जा के लिए किसी व्यक्तिए कंपनी या गैर.सरकारी संस्था को 30 वर्ष के लिए लीज पर दे सकता है। इसके बदले उसे किराया मिलेगा। जिलाधिकारी के मार्फत ये कार्य किया जा सकेगा।पर्यावरणविद कहते हैं कि ये लोगों की गलती हैए जिस जमीन पर हमारे पुरखों के फुटप्रिंट्स दर्ज हैंए वो लीज़ पर दी जा सकेगी। हमने अपने खेतों को बंजर छोड़ा। अगर खेती नहीं कर रहे थे तो पेड़ ही लगा देते। जंगली कहते हैं कि जिस ज़मीन को बंजर छोड़ हमारे लोग दिल्ली.मुंबई कूच कर गए हैंए महानगरों में बढ़ता प्रदूषण एक बार फिर उन्हें अपने पहाड़ों की ओर लौटने को विवश करेगा। आज से दो पीढ़ी पहले तक यही खेत अन्न के भंडार थे। जिन पर कई पीढ़ियां निर्भर रहीं। जलवायु परिवर्तन ने भी पहाड़ की खेती को प्रभावित किया। समय से बारिश न होनाए अत्यधिक बारिश होनाए जैसी अप्रत्याशित घटनाओं के चलते भी लोगों ने खेती छोड़ी। आज जंगली जानवर हमारे खेतों में घुस गया है। किसान कहते हैं कि यह कदम पहाड़ के हित में नहीं है। सरकार लोगों को खेती के लिए प्रशिक्षित नहीं कर सकी। जब वे पलायन कर रहे थे और उन्हें इकट्ठा करने का कोई प्रयास नहीं किया गया। जड़धारी पूछते हैं कि स्टार्टअप योजनाए कौशल प्रशिक्षण केंद्र पर दी जा रही ट्रेनिंग का क्या हुआ। आप गांव के लोगों को सोलर पैनल लगाने की ट्रेनिंग देते। उन्हें एकजुट करके चाय बगान लगवाते। जड़धारी चंबा के आगे कौठिया क्षेत्र में बने बंदरबाड़े का उदाहरण देते हैं। जहां बंदरों को नसबंदी करायी जानी थी। लेकिन वहां सिर्फ इमारत खड़ी नजर आती है। पूरा बंदरबाड़ा सूना है। ऐसे ही खेती को नुकसान पहुंचा रहे कुछ जगहों पर जंगली सूअर को मारने के आदेश जारी किए। लेकिन क्या लोग इस काम को करेंगे। ये लोगों के बस की बात नहीं।रिवर्स माइग्रेशन का उदाहरण बने पौड़ी के किसान कहते हैं कि स्थानीय लोग भरोसा करने को तैयार नहीं है कि इन बंजर खेतों में अब गोभीए ब्रोकोली के फूल दिख सकते हैं। पौड़ी के पोखड़ा और एकेश्वर ब्लॉक में कई किलोमीटर तक बंजर ही बंजर जमीन दिखती है। इस बंजर को आबाद करने की ताकत यहां के स्थानीय आदमी में नहीं है। इसलिए मौजूदा हालात में ये मॉडल जरूरी है।

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