सौभाग्य की कामना का व्रत एवं सामवेदी उपाकर्म हरतालिका तीज किस समय धारण की जायेगी जनेऊ ? आइये जानते हैं
शुभ मुर्हुत-
इस बार सन् 2023 में दिनांक 18 सितंबर 2023 दिन सोमवार को हारताली तृतीया व्रत मनाया जाएगा। इस दिन यदि तृतीया तिथि की बात करें तो 16 घड़ी 35 पल अर्थात दोपहर 12:39 बजे तक है। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन चित्रा नामक नक्षत्र 15 घड़ी आठ पल अर्थात दोपहर 12:04 बजे तक है। सामवेदी उपाकर्म दिनांक 17 सितंबर को मनाया जाएगा इसी दौरान जनेऊ धारण करना चाहिए क्योंकि इस दिन हस्त नक्षत्र होना भी आवश्यक है। दिनांक 17 सितंबर 2023 को हस्त नक्षत्र नौ घड़ी 55 पल अर्थात प्रातः 9:58 बजे तक है।तीज व्रत 18 सितंबर को मनाया जाएगा।
हरतालिका तीज व्रत के दिन महिलाएं मुख्य रूप से शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए यह उपवास रखती हैं। यह तीज व्रत ब्राह्मणों के लिए मुख्य रूप से तिवारी त्रिपाठी त्रिवेदी आदि ब्राह्मणों के लिए बहुत ही महत्व रखती है। क्योंकि उनके द्वारा इस दिन अपनी जनेऊ बदली जाती है जबकि अन्य ऋग्वेदी और यजुर्वेदी लोग द्वारा श्रावण शुक्ल पूर्णमासी अर्थात जन्योपुन्यु को जनेऊ बदली जाती है।
हमारे पहाड़ में एक किंवदंती (अंधविश्वास)के अनुसार जब सभी लोग श्रावण पूर्णिमा के दिन जनेऊ बदलने से पहले सरोवर में स्नान कर रहे थे तभी तिवारी की जनेऊ एक स्याव (सियार) उठाकर जंगल की तरफ ले गया। इसके फल स्वरुप तिवारी लोग जिनका गौतम गोत्र है वे जनेऊ नहीं बदल सके तब उन्होंने जोर-शोर से जनेऊ ढूंढने का अभियान चलाया। तब कहीं जाकर 18 वें दिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया अर्थात हरतालिका तीज के दिन जंगल में एक पेड़ के नीचे जनेऊ की गठरी बरामद हुई। तब उसी दिन तिवारी लोगों ने जनेऊ बदली।
एक अन्य मान्यता यह भी है कि जब सभी ऋषि जिनके नाम से गोत्र का सृजन हुआ है श्रावण पूर्णिमा के दिन जनेऊ पहनने की तैयारी में थे तो यह तय न हो पाया की सभी को कौन यज्ञोपवीत संस्कार विधि विधान से पूर्ण कराएगा व जनेऊ धारण कराएगा। तदुपरांत भारद्वाज ऋषि के सुझाव पर गौतम ऋषि इसके लिए तैयार हुए उनके द्वारा विधि विधान से सभी ऋषियों को जनेऊ पहनाई गई जब तक और कोई अन्य ऋषि गौतम को जनेऊ पहनवाता मुहूर्त समाप्त हो चुका था। इसके बाद का मुहूर्त फिर हरतालिका तीज को ही था अतः गौतम ऋषि इसी दिन जनेऊ पहन सके इसलिए आज भी गौतम गोत्र वाले तिवारी जी लोग हरतालिका तीज के दिन ही जनेऊ बदलते हैं।
कुछ लोगों के अनुसार गौतम गोत्र वाले सामवेदी होते हैं अर्थात सामवेद के ज्ञाता होते हैं गौतम ऋषि द्वारा सामवेद का वृहद अध्ययन किया गया था अन्य सभी यजुर्वेदी हैं क्योंकि सामवेद संगीत व कला से संबंधित है अर्थात सामवेदी सरस्वती के उपासक हैं इसी कारण हस्त नक्षत्र प्रारंभ होने पर हरतालिका तीज के दिन को ही शुभ मुहूर्त मानते हुए इसी दिन जनेऊ धारण करते हैं।
हालांकि मुझे भी विगत 10 -12 वर्षों पूर्व तक इस संबंध में कोई जानकारी नहीं थी की तिवारी लोग श्रावणी पूर्णिमा को छोड़कर हरतालिका तीज के दिन रक्षाबंधन एवं जनेऊ धारण क्यों करते हैं?
यहां मैं कुछ संस्मरण व्यक्त करना चाहता हूं। आज से लगभग 10-12वर्ष पूर्व की बात है मैं भी अपने धर्म कर्तव्य के अनुसार अपने यजमानों को जनेऊ बांटते हुए श्रावणी पूर्णिमा के दिन जनेऊ धारण करने के मुहूर्त की जानकारी दे रहा था।तब एक यजमान तिवारी जी बोले -गुरु जी हम तो हरतालिका तीज पर जनेऊ धारण करते हैं।
तब मैं अनेक लोगों से इस संबंध में जानकारी प्राप्त करनी चाही तो अनेकों लोगों से किंवदंतियां सुनने को मिली।
हमारे पहाड़ में अंधविश्वास और अपने देश की शास्त्री परंपराओं के प्रति अज्ञानता के कारण तिवारी समुदाय के ब्राह्मणों का मजाक उड़ाया जाता है कि उनकी जनेऊ सियार उठा ले गया था इसलिए यह तिवारी लोग श्रावण पूर्णिमा के दिन जनेऊ धारण नहीं करके हरतालिका को जनेऊ बदलते हैं इन स्याववादी सोच विचार वाले लोगों की इतिहास चेतना के विषय में जब मैं अपनी इस जिज्ञासा को कुछ आगे बढ़ाया और हरितालिका तीज तथा हस्त नक्षत्र में यज्ञोपवीत धारण के संबंध में कुछ और जानकारी प्राप्त की तो पता चला कि वैदिक काल से चली आ रही परंपरागत उपाकर्म प्रद्धति के अनुसार ऋग्वेदी और यजुर्वेदी ब्राह्मण श्रावणी पूर्णिमा को तथा सामवेदी ब्राह्मण भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया अर्थात हरतालिका तीज के अवसर पर यज्ञोपवीत धारण करते आए हैं जिसे धर्म शास्त्रीय शब्दों में उपाकर्म संस्कार के नाम से जाना जाता है। मैं इन अंधविश्वासी लोगों के शख्त खिलाफ हूं।मेरा मानना है कि ऐसे लोग कभी उन्नति नहीं कर सकते हैं जो अपने ही धर्म के लोगों की मज़ाक उड़ाया करते हैं।
हरतालिका तीज व्रत कथा
कथा — -एक बार भगवान शिव ने पार्वती को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से इस व्रत के महात्म्य की कथा कही थी। श्री भोले शंकर गौरी से कहते हैं- हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में 12 वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इस अवधि में तुमने अन्न न खा कर पेड़ों के सूखे पत्ते चबाकर व्यतीत किए। पौष माघ की विकराल शी त में तुमने निरंतर जल में प्रवेश करके तप किया। जेठ वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचाग्नि से शरीर को तपाया। सावन मास की मूसलाधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न जल ग्रहण किए समय व्यतीत किया।
नारद जी ने कहा गिरिराज में भगवान विष्णु के भेजने पर यहां उपस्थित हुआ हूं। आपकी कन्या ने बड़ा कठोर तप किया है। इससे प्रसन्न होकर वह आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते हैं। इस संदर्भ में आपकी राय जानना चाहता हूं। नारद जी की बात सुनकर गिरिराज गदगद हो उठे। उनके तो जैसे सारे क्लेश ही दूर हो गए। प्रसन्न चित होकर वे बोले श्रीमान यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वह तो साक्षात ब्रह्म है। हे महर्षि !यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख संपदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। पिता की सार्थकता इसी में है कि पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे। तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारद जी विष्णु के पास गए और उनसे तुम्हारे ब्याह के निश्चित होने का समाचार सुनाया। परंतु इस विवाह संबंध की बात जब तुम्हारे कान में पड़ी तो तुम्हारे दुख का ठिकाना न रहा।
तुम्हारी एक सखी ने तुम्हारी इस मानसिक दशा को समझ लिया और उसने तुमसे उस विक्षिप्ता का कारण जानना चाहा। तब तुमने बताया कि मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिव शंकर का वरण किया है किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णु जी से निश्चित कर दिया है। मैं विचित्र धर्म संकट में हूं। अब क्या करूं? प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त और कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है। तुम्हारी सखी बड़ी ही समझदार और सुझबुझ वाली थी। उसने कहा सखी प्राण त्यागने का इसमें कारण ही क्या है? संकट के मौके पर धैर्य से काम लेना चाहिए। नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि पति रूप में ह्रदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया जीवन पर्यंत उसी से निर्वाह करें। सच्ची आस्था और एक निष्ठा के समक्ष तो ईश्वर को भी समर्पण करना पड़ता है। मैं तुम्हें एक घनघोर जंगल में ले चलती हूं जो साधना स्थली भी हो और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी न पाए। वहां तुम साधना में लीन हो जाना। मुझे विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे। तुमने ऐसा ही किया ।तुम्हारे पिता तुम्हें घर पर न पाकर बड़े दुखी तथा चिंतित हुए। वह सोचने लगे कि तुम जाने कहां चली गई। मैं विष्णु से उसका विवाह करने का प्रण कर चुका हूं। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर न हुई तो बड़ा अपमान होगा। मैं तो कहीं मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहूंगा। यही सब सोचकर गिरिराज ने जोर- सोर से तुम्हारी खोज शुरू करवा दी। इधर तुम्हारी खोज होती रही और उधर तुम अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन थी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को हस्त नक्षत्र था। उसदिन तुमने रेत से शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया। मेरी स्तुति की गीत गाकर जागी। तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मेरी समाधि टूट गई। मैं तुरंत तुम्हारे समक्ष जा पहुंचा और तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुमसे वर मांगने के लिए कहा। तब अपनी तपस्या के फलस्वरूप मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर आप यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए। तब मैं तथास्तु कहकर कैलाश पर्वत पर लौट आया। प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारण किया। उसी समय अपने मित्र बंधुओं दरबारियों सहित गिरिराज तुम्हेंखोजते खोजते वहां आ पहुंचे और तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या का कारण तथा उद्देश्य पूछा। उस समय तुम्हारी दशा को देखकर गिरिराज अत्यधिक दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनके आंखों में आंसू उमड़ आए थे। तुमने उनके आंसू पोछते हुए विनम्र स्वर में कहां पिताजी मैंने अपने जीवन काअधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी। आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूं। आप क्योंकि विष्णु जी से मेरा विवाह करने का निर्णय ले चुके थे इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आई। अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर घर जाऊंगी की आप मेरा विवाह विष्णु जी से न करके महादेव जी से करेंगे। गिरिराज मान गए और तुम्हें घर ले गए। कुछ समय के पश्चात शास्त्रोक्त विधि विधान पूर्वक उन्होंने हम दोनों को विवाह सूत्र में बांध दिया। हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुंवारियों को मनवांछित फल देता हूं। इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एक निष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए।