सिर्फ देवता ही नहीं अपितु पित्र भी प्रसन्न होते हैं इंदिरा एकादशी व्रत से
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष अर्थात महालय पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है।
शुभ मुहूर्त,,,,,,, इस बार सन् 2022 में दिनांक 21 सितंबर दिन बुधवार को इंदिरा एकादशी मनाई जाएगी। यदि इस दिन एकादशी तिथि की बात करें तो इस दिन 43 घड़ी 50 पल अर्थात मध्य रात्रि 11:34 तक एकादशी तिथि है। यदि नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन पुष्य नक्षत्र 44 घड़ी 12 पल अर्थात मध्य रात्रि 11:45 बजे तक रहेगा तदुपरांत अश्लेषा नामक नक्षत्र उदय होगा। यदि योग की बात करें तो इस दिन परिधि नाम योग सात घड़ी 40 पल अर्थात प्रातः 9:06 बजे तक रहेगा। यदि करण की बात करें तो इस दिन बव नामक करण 11 घड़ी 10 पल अर्थात प्रातः 10:30 बजे तक रहेगा इन सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण कर्क राशि में विराजमान रहेंगे।
इंदिरा एकादशी के संबंध में ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से देवता ही नहीं अपितु पित्र भी प्रसन्न होते हैं। और अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस व्रत को करने से पितरों को भी मोक्ष प्राप्त होता है। इसलिए यह एकादशी व्रत महत्वपूर्ण मानी जाती है। एक सबसे महत्वपूर्ण बात पाठकों को बताना चाहूंगा कि इस व्रत में कथा श्रवण करना अर्थात कथा सुनना बेहद जरूरी है। बिना कथा सुने यह व्रत अधूरा माना जाता है। तथा बिना कथा सुने यह व्रत निष्फल हो जाता है। इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। और व्रत करने से जो पुण्य प्राप्त होता है उसे यदि पितरों को दान करें तो उन्हें भी मोक्ष प्राप्त होता है। पंचम वेद कहे जाने वाले धर्म ग्रंथ महाभारत में इस एकादशी का उल्लेख किया गया है। जहां भगवान श्री कृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर को यह कथा सुनाते हैं। भगवान श्री कृष्ण ने जो कथा धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई वह इस प्रकार है–
इंदिरा एकादशी व्रत कथा,,,,,,, पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में महिष्मति नामक एक नगर था जिसमें प्रतापी राजा इंद्रसेन रहता था। वह अपनी प्रजा का पालन पोषण अपनी संतान की तरह करता था। इंद्रसेन के राज में किसी प्रकार का दुख दर्द रोग आदि कुछ नहीं था। कहां जाता है कि इंद्रसेन भगवान विष्णु का परम भक्त था। और भगवान विष्णु का बड़ा उपासक भी था। एक बार घूमते फिरते महर्षि नारद मुनि का आगमन इंद्रसेन की सभा में हुआ। महर्षि नारद इंद्रसेन के पिता का संदेश भी ला कर आए थे संदेश में पिता द्वारा कहा गया था कि पिछले जन्म में किसी भूल के कारण वह यमलोक में ही है। यमलोक से मुक्ति के लिए उनके पुत्र को इंदिरा एकादशी का व्रत रखना होगा और उस व्रत का पुण्य अपने पिता को देना होगा ताकि उन्हें मोक्ष प्राप्त हो सके। नारद मुनि के सुझाव के बाद आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को राजा इंद्रसेन ने व्रत रखा। व्रत से प्राप्त पुण्य को अपने पिता को दान कर दिया जिसके चलते राजा इंद्रसेन के पिता को नरक से मुक्ति मिली। भगवान विष्णु के पार्षद उन्हें नरक से विष्णु लोक बैकुंठ को ले गए। अतः; यह इंदिरा एकादशी व्रत बहुत महत्वपूर्ण है।
पूजा विधि,,,,,, एकादशी व्रत के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर घर पर पूजा स्थल पर स्वच्छ वस्त्र पहन कर बैठे। तत्पश्चात आचमन करके हाथ में अक्षत पुष्प और गंगाजल लेकर एकादशी व्रत का संकल्प लें। तदोपरांत भगवान विष्णु को स्नान कराएं फिर पंचामृत स्नान कराएं तदुपरांत उन्हें रोली चंदन एवं पुष्प चढ़ाएं तदुपरांत इंदिरा एकादशी व्रत कथा किसी विद्वान पंडित के श्री मुख से श्रवण करें अर्थात सुने। कथा सुनना बेहद जरूरी है। बिना कथा सुने यह व्रत निष्फल माना जाता है। तदुपरांत विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। यदि कोई व्यक्ति पित्र दोष से मुक्ति चाहता हो अर्थात उसके कुंडली में पित्र दोष है तो वह इस व्रत का फल अपने पितरों को दान कर दे पितरों को अनेक यम यातना ओं से मुक्ति मिलती है।
लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।