गांवों में तेजी से फैल रहे कोरोना संक्रमण को होगा रोकना
गांवों में तेजी से फैल रहे कोरोना संक्रमण
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड
कोरोना की पहली लहर साल 2020 में बड़ी संख्या में प्रवासी लॉकडाउन लगने के बाद अपने घरों से लौटे थे. उस दौरान प्रदेश में कोरोना के मामले एकाएक बढ़े थे.इस बार भी कोरोना के रफ्तार पकड़ने के बाद कई राज्यों ने अपने यहां कोरोना कर्फ्यू और लॉकडाउन लगाया. ऐसे में प्रवासियों ने दोबारा अपने गांव का रूख किया है. पहाड़ों में बड़ी संख्या में प्रवासी लौटे, लेकिन इसी बार प्रदेश में स्थिति पहले से ज्यादा खराब हो गई. कोरोना की दूसरी लहर उत्तराखंड के लिए घातक साबित हुई है. प्रदेश में रोज सात से आठ हजार कोरोना के नए मामले सामने आ रहे है. प्रदेश में सैंपल पॉजिटिव दर भी 6.25% है. वहीं इस बार सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि उत्तराखंड में कोरोना ने मैदानी जिलों के साथ पहाड़ी जनपदों में भी कहर ढाया है. शुरुआती चरण में मैदानी जिलों में ही ज्यादा संक्रमित मिल रहे थे. लेकिन, अब पहाड़ों में भी तेजी से मामले बढ़ रहे हैं मई की स्थिति देखें तो प्रदेश में 27.6 फीसद मामले नौ पर्वतीय जनपदों में आए हैं. ऐसे में पहाड़ पर पहले से ही चौपट स्वास्थ्य सेवाओं ने कोरोना के आगे दम तोड़ दिया है, जिससे सरकार की मुश्किलें और बढ़ गई है. उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में पहले से ही चरमराई हुई स्वास्थ्य सेवाओं ने कोरोना आगे घुटने टेक दिए है. मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पहले ही पहाड़ों के गांव वीरान हो चुके है. ऊपर से कोरोना की मार ने उन्हें बुरी तरह से तोड़ दिया है. ऐसे में पहाड़ों पर रफ्तार पकड़ते कोरोना ने चिंता बढ़ा दी है. क्योंकि मैदान के मुकाबले वहां न तो स्वास्थ्य सुविधाएं और न ही कोरोना से लड़ने के कोई खास इंतजाम. इन परिस्थितियों में पहाड़ों के दुरस्थ गांव में न तो टेस्ट हो पा रहे है और न ही मरीजों को इलाज मिल पा रहा है. यदि कोरोना इसी रफ्तार से पहाड़ पर चढ़ता रहा तो आने वाले दिनों में स्थिति और विकट हो जाएगी एक मई के बाद प्रवासियों के उत्तराखंड वापस आने का सिलसिला शुरू हुआ. जिसके बाद से ही प्रदेश में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई. आंकड़े भी इसकी तस्दीक कर रहे हैं. 1 मई से पहले प्रदेश में रोज चार हजार के कम मामले सामने आ रहे थे. वहीं एक मई के बाद ये संख्या 5000 से 8000 के बीच हो गई. यहां गौर करने वाली बात ये है कि पिछले साल के मुकाबले इस बार प्रदेश में प्रवासी काफी कम संख्या में आए हैं. कोरोना की पहली लहर में सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब तीन लाख प्रवासी वापस आए थे. लेकिन ये आंकड़ा पहले 30 प्रतिशत कम है. पहाड़ में स्वास्थ्य का आधारभूत ढांचा भी उतना सुदृढ़ नहीं है. ऐसे में हालात बिगड़े तो जनहानि काफी ज्यादा होगी. पहाड़ों में जांच अब भी बेहद कम की जा रही है. कई जिलों में तो यह हजार सैंपल प्रतिदिन भी नहीं है. ऐसे में जांच में तेजी लाने की आवश्यकता है. पहाड़ में जिस तेजी से कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है, उसे रोकने के लिए एक ठोस रणनीति की जरूरत है. हालांकि सरकार ने अपने स्तर कुछ कदम भी उठाए हैं. ग्रामीण इलाकों में टेस्टिंग वैन चलाने का फैसला लिया है, जिसके लिए रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल भी तैयार कर दिया है. जल्द ही प्रदेश के दूरस्थ और सीमांत इलाकों में मोबाइल टेस्टिंग वैन पहुंच जाएगी. इसके बाद उन्हें कोविड -19 टेस्ट के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा. जिस तरह की रिपोर्ट मिल रही है, उसके देखकर यहीं लगाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी संक्रमण पहुंच गया है. कुछ प्रवासी वापस लौटे हैं, हालांकि इस बार उनकी संख्या काफी कम है. इसके साथ ही शादी विवाह में शामिल होने आए लोगों की वजह से भी संक्रमण का फैला हुआ है. शहरी क्षेत्रों में तो किसी न किसी तरह से बंदिश लगाई जा सकती है, लेकिन पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में निगरानी रखना और बंदिश लगाना बहुत मुश्किल है. जिस वजह से भी इस बार ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण का काफी अधिक फैलाव हुआ है, जो राज्य के लिए चिंता का विषय है.पिछले 40 दिनों में राज्य के पहाड़ी जिलों में हर रोज 977 नये कोविड मरीज सामने आये हैं। पहाड़ी जिलों में कोविड से मरने वालों की संख्या में भी पिछले 40 दिनों में 42.9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। 2 अप्रैल को जहां मरने वालों का आंकड़ा 248 था, वहीं अब यह संख्या 590 है। यानी हर रोज राज्य के पहाड़ी जिलों में करीब 9 कोविड मरीजों की मौत हो रही है। संक्रमण के बढ़ते खतरे के बीच पूरे हेल्थ सिस्टम को सक्रिय होने की जरूरत है, ताकि लोगों को सुरक्षित किया जा सके। इन दिनों पहाड़ के कई गांवों में बुखार फैला है। लोग बीमार पड़ रहे हैं, लेकिन डर की वजह से अस्पताल नहीं जा रहे। स्वास्थ्य सेवाओं का हाल भी आप देख ही रहे हैं। कोविड का इलाज तो दूर लोगों को सैंपल जांच की रिपोर्ट तक के लिए कई-कई दिन तक इंतजार करना पड़ रहा है। केंद्र सरकार ने भी उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने की तस्दीक की है। केंद्र ने उत्तराखंड को उन आठ राज्यों में शामिल कर लिया है, जहां ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार के सामने अब एक और चुनौती खड़ी हो गई है। कुछ समय पहले तक संक्रमण के ज्यादातर मामले मैदानी जिलों में सामने आ रहे थे, लेकिन अब खतरा गांवों तक पहुंच गया है। परेशानी ये है कि पहाड़ में न तो जांच की सुविधाएं हैं, न इलाज की। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र की सभी समस्याएं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। स्वास्थ्य के मोर्चे को मज़बूत बनाना है तो हमें शिक्षा, आजीविका, सड़क, कृषि समेत एक जगह और वहां रह रहे लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के सभी पहलुओं पर कार्य करना होगा। पर्वतीय क्षेत्रों में जहां अच्छे स्कूल हैं, वहां डॉक्टर भी हैं। सरकार की ओर से बेहतर प्रबंधन के साथ ही हमें समुदायिक भागीदारी की भावना के साथ भी कार्य करना होगा। बेहद कमज़ोर स्वास्थ्य सुविधाएं, पहाड़ों में रेफ़रल सेंटर बन चुके अस्पताल और डॉक्टरों की कमी से जूझते राज्य को कोरोना ने मुश्किल चुनौतियों के साथ जरूरी सबक भी दिए हैं।
उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर कार्य कर चुके हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।