ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी को मनाई जाने वाली संकष्ठीचतुर्थी का महत्व
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी, संकष्ठीचतुर्थी,, भगवान गणेश जी को मंगल कर्ता विघ्न हर्ता माना जाता है, किसी भी मंगल कार्य करने से पूर्व भगवान गणेश जी का नाम लिया जाता है,ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्ठीचतुर्थी कहा जाता है, इस बार यह 29 म ई 2021 को पड रही है, प्राचीन काल में राजा पृथु राज्य करते थे, उनके राज्य में जयदेव नामक ब्राह्मण रहता था, उसके चार पुत्र थे, और उन सभी की शादी हो चुकी थी, एक दिन बड़ी वहु ने अपनी सास से कहा कि सासूजी जब मैं छोटी थी, तभी से गणेश चतुर्थी का व्रत करती थी, और यह व्रत बहुत फलदायी माना गया है, क्या यह व्रत मैं यहाँ भी कर सकती हूँ, आप मुझे हर महिने गणेश चतुर्थी व्रत करने की अनुमति दें, लेकिन उसकी सासमनाकरदेतीहै, उन लोगों की बात चीत ससुर जयदेव सुन रहे थे, उनहोंने कहा कि बड़ी लहू तुम बहुत समझदार हो, तुम्हें इस घर में किस चीज की कमी है, भगवान की कृपा से अन्न तथा धन के भंडार भरे हुए है, अभी तुम्हारे खेलने और खाने के दिन है, और ये गणेश कौन है❓ तुझे व्रत करने की कोई आवश्यकता नहीं है, इस तरह बड़ी वहु से सास ससुर दोनों व्रत करने से मना कर देते हैं, कुछ महीने बाद बड़ी वहु गर्भवती हो गयी, और दसवें महिने एक सुंदर पुत्र को जन्म देती है, वह जब विवाह योग्य हो गया तो उसकी शादी एक सुसंस्कारित कन्या के साथ तय कर दी, भगवान गणेश जी रुष्ट हो जाते है, व्रत की आलोचना करने व व्रत धारण न करने से भगवान गणेश विवाह के फेरों के समय लडके का अपहरण कर देते हैं, जिससे सभी ओर हा हा कार मच जाता है, और सभी दूल्हे को खोजने में लग जाते हैं, जब बड़ी वहु को मालूम चलता है, तो वह अपने सास ससुर से शिकायत करती है, और कहती है, कि आपने मुझे चतुर्थी व्रत नहीं करने दिया, इसलिए मेरे पुत्र को भगवान ने गायब कर दिया, सास ससुर भी बहुत दुखी हुए, जब वो पोते की वहु यानि नयी दुल्हन को पता चलता है कि उनके पति को भगवान गणेश जी ने सजा दी है तो वह संकल्प करती है कि वह हर महीने की गणेश चतुर्थी का व्रत करेगी, और अपने पति को वापस लाकर रहुंगी,जब माता सावित्री अपने मरे हुए पति को यमराज से जीवित कर सकती है तो मेरे पति तो जिंदा है, जब सास ससुर और दादी सास दादा ससुर को नयी वहु के संकल्प के बारे में पता चला तो वो भी हर महीने चतुर्थी व्रत लेने का संकल्प करते हैं, जब ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी का दिन था घर में सभी ने व्रत रखा था, तब उस दिन गणेश जी नयी वहु की परीक्षा लेने के लिए एक बूढ़े ब्राह्मण के भेष में आते है, और नयी वहु से कहते हैं कि बेटी क्या जल और भोजन मिलेगा तब नयी वहु कहती है हे महात्मा अवश्य मिलेगा, और बूढ़े ब्राह्मण को जल और भोजन देती है, जब ब्राह्मण खाना खा लेता है, नयी वहु उनहे वस्त्र और दक्षिणा भी देती है, और पैर छूती है, तब ब्राह्मण उसे सौभाग्य का आशीर्वाद देते हैं, तब वह बोलती है आपने सौभाग्य वती का आशिर्वाद तो दे दिया, तो आप मेरे पति को भी ला दीजिये, तभी वहाँ चमत्कार हो गया बूढ़े ब्राह्मण के भेषमें गणेश जी साक्षात प्रकट होते हैं, और कहते हैं कि बेटी तेरी पूजा और व्रत से प्रसंन्न हूँ और तेरे पति पेड़ के नीचे सो रहा है, ऐसा कहते ही गणेश जी अंत ध्यान हो जाते हैं, और जातें जाते घर को ठोकर मार जाते हैं, और उनके अन्न धन के भंडार भर जातेहैं, इससे सभी लोग खुस हो जाते हैं, और वापस फेरों की तैयारी करते हैं, फिर लडके का विवाह बड़ी धूमधाम से होता है, सभी लोग वहु और लडके को गणेश जी के मन्दिर में माथा टिकवाने ले जाते हैं, और सवा मन भोज का आयोजन किया जाता है, पूरे परिवार ने गणेश जी के मन्दिर में हर महीने गणेश चतुर्थी व्रत करने का संकल्प लिया वो दिन ज्येष्ठ मास की चतुर्थी का दिन था, एक माँ को उसका बेटा और एक वहु को उसका पति मिला, हे गणेश जी! जैसे आपने एक माँ को उसके बेटे और एक वहु को अपने पति से मिलाया वैसा आप सबके साथ करना।