कुमाऊं का पौराणिक त्यौहार है हरेला, आइये जानते है क्या है इसकी विशेषता
कुमाऊं का पौराणिक त्यौहार है हरेला। कुमाऊं मैं हरेला पर्व धार्मिक व पौराणिक महत्व का है। सावन मास के प्रथम दिन मनाए जाने वाले इस त्यौहार को कर्क संक्रांति के रूप में संक्रांति के रूप से जाना जाता है। वैसे तो कुमाऊं में हरेला पर्व वर्ष में 3 बार चैत्र सावन और आश्विन मास में मनाया जाता है। परंतु सावन मास का हरेला सबसे महत्वपूर्ण है। सावन मास में हरेला पर्व उत्तराखंड में धूमधाम से मनाया जाता है। ग्रीष्म काल में पेड़ पौधे सूख चुके होते हैं। जिसके बाद सावन में रिमझिम बारिश के साथ ही बेजान पेड़ पौधे खिल उठते हैं। प्राचीन समय से ही इस मौसम में हरेला मनाने की परंपरा रही है। आज के समय में पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से इस त्यौहार की महत्ता और बढ़ गई है। धीरे-धीरे इस त्यौहार का महत्व बढ़ता जा रहा है। हरेला पर्व घर में सुख समृद्धि व शांति के लिए बोया और काटा जाता है। हरेला अच्छी फसल का सूचक है। हरेला इस कामना के साथ बोया जाता है कि इस साल फसलों को नुकसान ना हो। माना जाता है कि जिसका हरेला जितना बड़ा होगा उसे कृषि में उतना ही लाभ होगा। वैसे तो हरेला घर-घर में बोया जाता है लेकिन कई गांव में हरेला पर्व को सामूहिक रूप से स्थानीय ग्राम देवता मंदिर में भी मनाया जाता है। गांव के लोगों द्वारा मिलकर मंदिर में हरेला बोई जाती है और सभी लोगों द्वारा इस पर्व को हर्षोल्लास से मनाया जाता है। कुमाऊं में हरेली की समृद्ध परंपरा रही है। पूर्व में परिजन अपने संबंधियों घर से दूर प्रदेश में नौकरी करने वालों को हरेले के तिनके और देव मंदिर की आशिका डाक द्वारा भेजते थे आज भी कई परिवारों में यह परंपरा जारी है। इसके अलावा हरेला पर्व पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है। इस पर्व से मौसम को पौधरोपण के लिए उपयुक्त माना जाता है। हरेला बोने के लिए उसी खेत की मिट्टी लाई जाती है जिसमें उचित पौधों के रोपण और अच्छी फसल का परीक्षण हो सके 7 या 5 प्रकार का अनाज बोया जाता है। इस दिन कुमाऊनी भाषा में गीत गाते हुए छोटू को आशीर्वाद दिया जाता है। जी रये जागि रये तिष्टिये पनपिये, दुबई जस हरी जड हो, ब्यर जस फलिये , हिमाल में ह्यू छन तक यो दिन और यो मास भेटनै रया, अगास जास उच्च धरती जास चकाव है जया, सिहक जस तराण हो, स्यावक जसि बुद्धि हो, और हरेला के गीत भी गाए जाते हैं। लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल