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शुभ मुहूर्त–इस बार जया एकादशी व्रत दिनांक 1 फरवरी 2023 दिन बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन एकादशी तिथि 17 घड़ी 22पलअर्थात दोपहर 2:02 बजे तक है। मृगशिरा नामक नक्षत्र 50 घड़ी 40 पल अर्थात अगले दिन प्रातः 3:21 बजे तक है। ऐंद्र नामक योग 10 घड़ी 50 पल अर्थात प्रातः 11:25 बजे तक है। विष्टि नामक करण 17 घड़ी 22पल अर्थात दोपहर 2:02 बजे तक है। यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन दोपहर 1:59 तक चंद्रदेव वृषभ राशि में रहेंगे तदुपरांत मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे।
जया एकादशी व्रत कथा।,,,,,,, अन्य एकादशी व्रत कथा की तरह ही माघ मास के शुक्ल पक्ष एकादशी व्रत कथा मैं धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से इस कथा के बारे में जानकारी लेते हैं। पांडू पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर कहते हैं हे भगवान! आपने माघ मास के कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी का अत्यंत सुंदर वर्णन किया। आप स्वदेज अंडज उदभ्जि और जरायुज चारों प्रकार के जीवो के उत्पन्न पालन तथा नाश करने वाले हैं। अब आप कृपा करके माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का वर्णन कीजिए। इसका क्या नाम है इस के व्रत की क्या विधि है और इसमें कौन से देवता का पूजन किया जाता है? यह सुनकर नंदनंदन भगवान श्री कृष्ण जी कहने लगे कि हे राजन! इस एकादशी का नाम जया एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य ब्रह्महत्या आदि पापों से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होता है। तथा इसके प्रभाव से भूत पिशाच आदि यो योनियों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए। अब मैं तुम्हें पद्म पुराण में वर्णित इसकी महिमा की एक कथा सुनाता हूं।
देवराज इंद्र स्वर्ग में राज करते थे और अन्य सब देवगण सुख पूर्वक स्वर्ग में रहते थे। एक समय इंद्र अपनी इच्छा अनुसार नंदनवन में अप्सराओं के साथ बिहार कर रहे थे। और गंधर्व गान कर रहे थे। उन गंधर्व में प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उसकी कन्या पुष्पवती और चित्रसेन तथा उसकी स्त्री मालिनी भी उपस्थित थे। साथ ही मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित थे। पुष्पावती गंधर्व कन्या माल्यवान को देखकर उस पर मोहित हो गई और उस पर काम बाण चलाने लगी। उसने अपने रूप लावण्य और हाव-भाव से माल्यवान को वश में कर लिया। हे राजन ! वह पुष्पवती अत्यंत सुंदर थी। अब वे इंद्र को प्रसन्न करने के लिए गान करने लगे। परंतु परस्पर मोहित हो जाने के कारण उनका चित्त भ्रमित हो गया था। इनके ठीक प्रकार से न गाने तथा स्वर ताल ठीक नहीं होने से इंद्र इनके प्रेम को समझ गया और उन्होंने इसमें अपना अपमान समझकर उनको शाप दे दिया। इंद्र ने कहा हे मूर्खों ! तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है। इसलिए तुम्हारा धिक्कार है। अब तुम दोनों स्त्री पुरुष के रूप में मृत्युलोक में जाकर पिशाच पिशाचिनी रूप धारण करो। और अपने कर्म का फल भोगो। इंद्र का ऐसा श्राप सुनकर वे अत्यंत दुखी हुए और हिमालय पर्वत पर दुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें गंध रस तथा स्पर्श आदि का कुछ भी ज्ञान नहीं था। उन्हें एक क्षण के लिए भी निद्रा नहीं आती थी।इस स्थान पर ठंडा था। इस कारण उनके रोंगटे खड़े रहते और ठंड के मारे उनके दांत बजते रहते थे। 1 दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा कि पिछले जन्म में हमने ऐसे कौन से पाप किए थे जिसके कारण हमको यह दुखदाई पिशाच योनि प्राप्त हुई। इस पिशाच योनि से तो नर्क के दुख सहना भी उत्तम है। अतः हमें अब किसी प्रकार का पाप नहीं करना चाहिए। इस प्रकार विचार करते हुए वे अपने दिन व्यतीत कर रहे थे। देव योग से तभी माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया एकादशी आई। उस दिन उन्होंने कुछ भी भोजन नहीं किया और न कोई पाप कर्म ही किया। केवल फल फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया। और सायंकाल के समय महान दुख से पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस समय सूर्य भगवान अस्त हो रहे थे उस रात को अत्यंत ठंड थी। इस कारण वे दोनों ठंड के मारे अति दुखित होकर मृतक के समान आपस में चिपके हुए पड़े रहे। उस रात्रि को उनको निद्रा भी नहीं आई। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे राजन ! जया एकादशी के उपवास और रात्रि के जागरण से दूसरे दिन प्रभात होते ही उनकी पिशाच योनि छूट गई। वह अत्यंत सुंदर गंधर्व और अप्सरा की देह धारण कर सुंदर वस्त्र आभूषणों से अलंकृत होकर उन्होंने स्वर्ग लोक को प्रस्थान किया। उस समय आकाश में देवता उनकी स्तुति करते हुए पुष्प वर्षा करने लगे। और स्वर्ग लोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया। इंद्र इनको पहले रूप में देखकर अत्यंत आश्चर्यचकित हुआ और पूछने लगा कि तुमने अपनी पिशाच योनि से किस तरह छुटकारा पाया सो सब बताओ। माल्यवान बोले कि हे इंद्र ! भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से ही हमारी पिशाच देह छूटी है। तब इंद्र बोले कि हे माल्यवान! भगवान की कृपा और एकादशी का व्रत करने से न केवल तुम्हारी पिशाच योनि छूट गई वरन हम लोगों के भी वंदनीय हो गए। क्योंकि विष्णु और शिव के भक्त हम लोगों के वंदनीय हैं। अतः आप धन्य हैं। अब आप पुष्पवती के साथ जाकर विहार करो। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं हे राजा युधिष्ठिर ! इस जया एकादशी के व्रत से बूरी योनि भी छूट जाती है। जिस मनुष्य ने इस एकादशी का व्रत किया है उसने मानो सब यज्ञ जप दान आदि कर लिए। जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करते हैं वह अवश्य ही हजार वर्ष तक स्वर्ग में वास करते हैं।
लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।

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