कोविड के बीच क्या है मानसून आपदा
कोविड के बीच मानसून आपदा?
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
मानव इस पृथ्वी पर आदिकाल से जीवन-निर्वाह करता आया है। प्रकृति के साथ रहते हुए वह आये दिन तमाम तरह की आपदाओं से भी संघर्ष करता रहा है। आपदाएँ चाहे प्राकृतिक हों या मानवजनित यह दोनों रूपों में घटित होकर मानव जीवन को प्रभावित करती हैं। आपदा का दुःखद परिणाम अन्ततः जन-धन व सम्पदा के नुकसान के रूप में हमारे सामने आता है। सामान्य बोलचाल की भाषा में किसी प्राकृतिक रूप से घटित घटना के फलस्वरूप जब मानव का जीवन संकट में पड़ जाता है तो उस स्थिति को प्राकृतिक आपदा माना जाता है। मुख्य रूप से आंधी, तूफान, चक्रवात, बवंडर, बाढ़, बादल फटना, बज्रपात, अवर्षण (सूखा), भूकम्प, भूस्खलन तथा हिमस्खलन आदि को प्राकृतिक आपदाओं के अर्न्तगत शामिल किया जा सकता है। प्रस्तुत आलेख में हिमालय में आपदा और उसके प्रबन्धन विशेष रूप से उत्तराखण्ड हिमालय के परिपेक्ष में यहाँ घटित होने वाली आपदाओं – भूकम्प, भूस्खलन और बाढ़ का उल्लेख करना नितान्त प्रासंगिक होगा। भारत के पूर्व में चक्रवाती गतिविधियां हो रही है। केरल के तटों पर मानसून पहुंचने से कई राज्यों में मौसम में बदलाव हो रहा है। इधर उत्तराखंड में अगले 5 दिनों तक मौसम में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। आज मौसम विभाग की भविष्यवाणी की बात करें तो उत्तराखंड के कई जगहों में गर्जना के साथ बारिश और बर्फबारी हो सकती है। इसके लिए मौसम विभाग द्वारा येलो अलर्ट जारी किया गया है। मौसम विभाग का कहना है कि पहाड़ी इलाकों में कहीं-कहीं गर्जना के साथ आकाशीय बिजली चमकने की संभावना है। इसके अलावा पहाड़ी इलाकों में कहीं-कहीं तीव्र बौछार पड़ने की भी संभावना है। उधर मैदानी इलाकों में भी राहत नहीं मिलेगी। मैदानी क्षेत्रों में कहीं-कहीं हवा है 30 से 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलेंगी। खास तौर पर उत्तराखंड के देहरादून, बागेश्वर, रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ और नैनीताल जिलों में भारी बारिश की संभावना है। उधर चक्रवाती तूफान व्यास का असर उत्तराखंड में भी दिख रहा है। मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि संवेदनशील इलाकों में चट्टानों के गिरने से सड़क मार्ग अवरुद्ध हो सकते हैं तो कहीं भूस्खलन संभव है. साथ ही, पहाड़ी इलाकों में नदी, नालों में तेज़ प्रवाह हो सकता है। मौसम विभाग ने मौसम के मद्देनज़र कुछ हिदायतें भी जारी की हैं। जो रिहायशी इलाके नदी या नालों के करीब बसे हैं, उन्हें सावधान रहने की हिदायत दी है। पहाड़ी इलाकों में वाहन चलाने वालों को चट्टान गिरने या भूस्खलन जैसी घटनाओं से सावधान रहना होगा।उत्तराखंड में मानसून सीजन के मद्देनजर सरकार ने गढ़वाल व कुमाऊ मंडल में एक-एक हेलीकाप्टर तैनात करने का निर्णय लिया है। इसका मकसद यह है कि मानसून में प्राकृतिक आपदा आने की स्थिति में तत्काल राहत व बचाव कार्य शुरू किए जा सकें। इसके लिए उत्तराखंड नागरिक उड्डयन विकास प्राधिकरण (यूकाडा) ने टेंडर आमंत्रित कर लिए हैं। अब जल्द ही इसकी टेक्निकल और फाइनेंशियल बिड खोली जाएंगी। माना जा रहा है कि टेंडर प्रक्रिया संपन्न होने के बाद 10 से लेकर 15 जून के बीच ये हेलीकाप्टर दोनों मंडलों में तैनात कर दिए जाएंगे। प्रदेश में मानसून सीजन के दौरान प्राकृतिक आपदाओं के आने की आशंका अधिक बढ़ जाती है। इस दौरान बादल फटने और भूस्खलन की आशंका बनी रहती है। इस तरह की आपदाओं में अकसर प्रभावित क्षेत्रों के संपर्क मार्ग बाधित हो जाते हैं, जिससे राहत व बचाव कार्यों में परेशानी होती है। इसे देखते हुए सरकार ने प्रदेश के दोनों मंडलों में एक-एक हेलीकाप्टर तैनात करने का निर्णय लिया है। इनके जरिये प्रभावितों तक तत्काल मदद पहुंचाई जा सकेगी और जरूरत पड़ने पर घायलों को इलाज के लिए बड़े अस्पतालों तक लाया जा सकेगा। बीते वर्ष भी सरकार ने यह व्यवस्था लागू की थी, मगर तब कुमाऊं मंडल के लिए किसी कंपनी ने हेलीकाप्टर संचालन में रुचि नहीं दिखाई। इस कारण बीते वर्ष राहत व बचाव कार्यों में एक ही हेलीकाप्टर का इस्तेमाल हो पाया। इस वर्ष भी सरकार ने दोनों स्थानों पर हेलीकाप्टर तैनात करने की जिम्मेदारी यूकाडा को सौंपी है।अधिकारिक रूप से मानसून का आना अभी बाकी है लेकिन हिमालयी राज्य उत्तराखंड ने मई के महीने में ही लगातार भारी बारिश, बाढ़ और आंधी तूफान का सामना किया है। मई के बीच हुई घटनाओं को बादल फटने की श्रेणी में नहीं, बल्कि भारी बारिश की श्रेणी में रखा गया। उनके अनुसार बादल फटने के लिए निर्धारित आईएमडी की शुरुआती सीमा की समीक्षा होनी चाहिए।वैज्ञानिकके अनुसार हिमालय के अंदरूनी इलाकों में बारिश के पैटर्न को सूक्ष्म स्तर पर रेनगेज से नहीं नापा जाता। उदाहरण के लिए 10 मिनट की छोटी अवधि में होने वाली 15 मिलीमीटर या 20 मिलीमीटर की बारिश को दर्ज नहीं किया जाता। और बादल फटने की अधिकांश घटनाएं इन्हीं घाटियों में कहीं होती हैं। वैज्ञानिक
कहते हैं, “चूंकि आईएमडी स्टेशन आम तौर पर हिमालय की तलहटी में होते हैं या फिर 2000 मीटर की ऊंचाई पर, इसीलिए वे सूक्ष्म स्तर पर बारिश की निगरानी या उसे माप नहीं सकते।”
उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते यहां आपदा जैसे हालात बनना आम बात है। मॉनसून सीजन के दौरान प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन, बाढ़ और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदा देखने को मिलती है।
मौसम विज्ञानियों ने जहां बारिश की संभावना जताई है, वहीं चिकित्सा विशेषज्ञों ने गर्मी के मौसम में तापमान में अचानक उतार-चढ़ाव से बीमारियां पनपने की संभावना जताई है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस मौसम में थोड़ी सी असावधानी होने पर कोई भी व्यक्ति बिस्तर पकड़ सकता है। कोरोनेशन अस्पताल के वरिष्ठ फिजीशियन की मानें तो तापमान में अचानक उतार-चढ़ाव सेहत के लिहाज से ठीक नहीं होता है। इससे डेंगू, मलेरिया, टाइफाइड, जैसी बीमारियां बढ़ सकती हैं। बारिश में भीगने से सर्दी, जुकाम, बुखार, खांसी होने में देर नहीं लगेगी। इससे व्यक्ति के कोरोना संक्रमित होने का खतरा भी बढ़ जाएगा। ऐसे में लोगों को एहतियात बरतने की जरूरत है। पिछले कुछ दशकों में अनियोजित विकास के कारण पहाड़ों में भू-कटाव और भूस्खलन की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। अनियोजित विकास, प्राकृतिक संसाधनों के निर्मम दोहन व बढ़ते शहरीकरण की स्थिति ने यहाँ के पर्यावरणीय सन्तुलन को बिगाड़ दिया है। इसके चलते प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हो रही है। जनसंख्या का अधिक दबाव, जन-जागरूकता की कमी, पूर्व-सूचनाओं व संचार साधनों की समुचित व्यवस्था न होने जैसे कारणों से प्राकृतिक आपदाओं से जन-धन की हानि में व्यापक स्तर पर वृद्धि हो रही है
लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर का अनुभव प्राप्त हैं, वर्तमान दून विश्वविद्यालय में कार्यरत है.