भए प्रगट कृपाला दीन “दयाला कौशल्या हितकारी” पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी के जन्मोत्सव रामनवमी पर क्या विशेष
भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी,,, पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी के जन्मोत्सव रामनवमी पर विशेष।,,,,,,,,, ,,,,, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जन्म दिवस के उपलक्ष में रामनवमी मनाई जाती है। जो कि भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं। प्रत्येक वर्ष हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की नवमी तिथि को पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी के जन्मोत्सव को मनाया जाता है जैसा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है नवमी तिथि मधुमास पुनीता अर्थात मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम मधुमास अर्थात चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को राजा दशरथ के घर पैदा हुए थे। पौराणिक मान्यता के अनुसार राम नवमी के दिन ही प्रभु श्री राम जीने राजा दशरथ के घर जन्म लिया था। भगवान राम को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है। यही मुख्य कारण है कि चैत्र नवरात्रि नवमी तिथि को रामनवमी भी कहा जाता है। पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी का जन्म दिवस संपूर्ण विश्व भर में सभी राम भक्तों बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस दिन राम रक्षा स्तोत्र व रामायण का पाठ करना चाहिए। यदि संपूर्ण राम चरित्र मानस पाठ संभव न हो तो कम से कम सुंदरकांड पाठ अवश्य करना चाहिए।
शुभ मुहूर्त, ,,,,,,,, इस बार रामनवमी दिनांक 10 अप्रैल 2022 दिन रविवार को रामनवमी मनाई जाएगी। इस दिन संपूर्ण देश भर के राम मंदिरों में विशेष अनुष्ठान होंगे। मुख्य रूप से अयोध्या राम जन्मभूमि पर राम जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। रविवार 10 अप्रैल को नवमी तिथि 53 घड़ी 25 पल तक है। इस दिन पुष्य नक्षत्र अहोरात्र तक है। बालव नामक करण 21 घड़ी 5 पल तक है। यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति जाने तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण कर्क राशि में रहेंगे।
राम अवतार का महत्व, ,,,,,,, श्री राम की बाल लीला तथा विद्या अभ्यास अतुलनीय और बालकों के लिए अनुकरणीय है। उनकी गुरु भक्ति आदर्श गुरु भक्ति थी। जिसके प्रताप से वह सब विद्या में निपुण हो सके थे। विश्वामित्र जी के साथ जाकर उनकी सेवा रूप गुरु सेवा से ही बला और अति बला विद्या को प्राप्त करके धनुर्विद्या और अस्त्र शस्त्र की विद्या में पारंगत हो सके थे। विश्वामित्र जी से उन्होंने गुरु भक्ति के कारण ही धर्म शास्त्र की शिक्षा पौराणिक कथा के रूप में प्राप्त की थी और धर्म संकट के समय कर्तव्य कार्यों की शिक्षा स्त्री वध रूप ताड़का वध के रूप से प्राप्त कर धार्मिक मात्र के लिए एक आदर्श स्थापन कर दिया है। क्षत्रिय बालकों के लिए बालक पन से ही निर्भीकता वीरता और पापियों को समुचित दंड देने की प्रकृति का होना आवश्यक है। इसको श्रीराम ने विश्वामित्र जी के साथ जाकर वीरता पूर्वक सुबाहु को मारकर और मारीच को दंड देने आदि का कार्य करके बतला दिया है। योग वशिष्ट की कथा के आधार पर कहा जा सकता है कि आदर्श गुरु भक्त और आदर्श वैराग्य संपन्न श्रीराम ने उस प्रारंभिक अवस्था में ही ज्ञान की प्राप्ति करके जीव मुक्त पद को प्राप्त करते हुए अपने अवतार के शक्ल कार्यों को किया था। प्रत्येक मनुष्य को इसी प्रकार गृहस्थ आश्रम से पूर्व ही यथा अधिकार और यथासंभव सब प्रकार का ज्ञान प्राप्त करके कर्तव्य कर्म रूप से ग्रस्त आदि आश्रमों के कर्म करते रहना चाहिए। मनुष्य के लिए यही एक राजमार्ग है। जिससे वह अंत में आवागमन चक्र से छूट कर मुक्त हो सकता है। यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति से गृहस्थाश्रम छूट जाता है अथवा गृहस्थआश्रम धारण करने की प्रवृत्ति नहीं होती यह विभीषिका मात्र है। यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति से मनुष्य का मार्ग सरल हो जाता है। और कर्तव्य कर्म रूप से सब कर्मों को करते हुए कर्म त्याग की प्रवृत्ति की आवश्यकता ही नहीं होती। इस अवस्था के प्रधान उदाहरण विदेह राज जनक हैं। जनकपुर की फुलवारी में जिस समय सीता जी को श्री राम के दर्शन हुए थे उस समय श्रीराम ने कहा था कि मैंने सपने में भी पर स्त्री को प्रेम दृष्टि से नहीं देखा फिर सीता पर दृष्टि पढ़ते ही मेरा मन क्यों आकर्षित हुआ? इस कथन से यह सिद्ध होता है कि श्री राम ने मातृवत् परदारेषु का अभ्यास बालक पन से ही कर रखा था। इस आदर्श को ग्रहण करने में किस मनुष्य का मतभेद हो सकता है? यह तो सर्व वादी सम्मत सिद्धांत है। पिता दशरथ की प्रतिज्ञा को सत्य करने के लिए श्रीराम ने केवल राज्य का ही त्याग नहीं किया अपितु वनवास का कठिन व्रत पालन करके जगत को पित्र भक्ति की पराकाष्ठा बतला दी थी। यदि ऐसा नहीं करते तो पिता के सत्य की पूर्ण रक्षा नहीं हो सकती। श्री राम ने माता कौशल्या से कहा था की पिता माता की परस्पर विरुद्ध आज्ञा के पालन करते समय पिता की आज्ञा ही पुत्र के लिए शिरोधार्य हुआ करती है। ऐसे धर्म संकट के समय अपने कर्तव्य का निश्चय कर उसको कार्य में परिणत करते हुए श्रीराम ने क्षेत्र की अपेक्षा बीज का ही प्राधान्य सिद्ध कर दिया है। क्योंकि पुत्र संतान में वीर्य प्रधान्य होने के कारण पुरुष शक्ति की ही अर्थात पिता की ही प्रधानता हुआ करती है। श्री राम ने आदर्श भ्राता प्रेम अपने तीनों भाइयों के साथ सारी रामायण में जहां-जहां दिखलाया है वह एक अद्भुत आदर्श है। सब अवसरों में यह आदर्श भ्राता प्रेम अक्षुण्ण रहा है। सहधर्मिणी के साथ पति का क्या कर्तव्य है वह सीता के साथ किए हुए श्री राम के व्यवहारों से सब पर प्रकट ही है। वनवास जाते समय सब प्रकार की वनवास की यातनाओं को समझाते हुए श्री राम ने सत्पतिका ही आदर्श दिखलाया था। और वनवास में अपनी सहधर्मिणी की सब प्रकार से रक्षा करते हुए आदर्श गृहस्थ के धर्मों की पराकाष्ठा बतला दी थी। चित्रकूट में इंद्र पुत्र जयंत को दंड दिया शूर्पणखा के कान नाक लक्ष्मण से कटवाए। खर दूषण त्रिशिरा को अकेले ही मारा और अंत में अपनी सहधर्मिणी के उद्धार के लिए ही रावण कुल का विध्वंस किया। आदर्श गृहस्थ धर्म का कार्य निरूपण करने के लिए लंका में सीता की अग्नि परीक्षा ली और आदर्श प्रजा वत्सल ता जो राजा के लिए मुख्य धर्म स्वरूप है उसका संसार में प्रचार करने के लिए ही श्री राम ने सीता का अयोध्या में परित्याग कर दिया अब इससे अधिक क्या कहा जाए। पुरुषोत्तम भगवान श्री राम एक आदर्श मानव रूप से अवतीर्ण हुए थे। चित्रकूट में भरत के आने पर दशरथ के मंत्रियों की सभा के एक मंत्री को धमकाते हुए श्रीराम ने जैसा राजधर्म का आदर्श प्रतिपादन किया और उसके अनुसार कार्य किया वह एक अपूर्व दृष्टि था। ऐसे धर्म संकट के समय इस प्रकार निर्णय करना एक आदर्श नरपति का ही कार्य था। जिसको पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने अद्भुत रीत से निभाया। पंचवटी में सीता को रावण से छुड़वाने की चेष्टा करते हुए मृत दशरथ के मित्र जटायु का दाह संस्कार श्रीराम ने स्वयं किया। यह कार्य ईश्वर अवतार श्री राम के महत्त्व को अधिक उज्जवल बनाने वाला है। प्रत्येक मनुष्य को महान से महान होने पर भी ऐसी ही दयालुता की वृत्ति रखनी चाहिए इससे उसका महत्व ही बढ़ता है।