इस बार जेष्ठ मास की संकष्टी चतुर्थी पर क्या है शुभ मुहूर्त
संकष्टि गणेश चतुर्थी व्रत प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जो व्रत किया जाता है वह आखुरखा अर्थात मूषक पर सवारी नामक व्रत कहा जाता है। भविष्य पुराण में कहा गया है कि जब मन संकटों से घिरा महसूस करें तो गणेश चतुर्थी का व्रत अवश्य करें। इससे संकट दूर होते हैं और धर्म और मोक्ष विद्या धन व आरोग्य की प्राप्ति होती है।
शुभ मुहूर्त, ,,,,,,, इस बार जेष्ठ मास की संकष्टी चतुर्थी दिनांक 19 मई 2022 दिन गुरुवार को मनाई जाएगी। इस दिन चतुर्थी तिथि छत्तीस घड़ी 40 पल अर्थात शाम 8:24 बजे तक रहेगी इस दिन मूल नक्षत्र मात्र शून्य घड़ी 43 पल अर्थात प्रातः 5:37 बजे तक रहेगा। यदि योग की बात करें तो इस दिन साध्य नामक योग 23 घड़ी 57 पल अर्थात दिन में 2:55 बजे तक रहेगा। यदि चंद्रमा की स्थिति जाने तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण धनु राशि में विराजमान रहेंगे।
पूजा विधि, ,,, इस दिन प्रात काल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और गणेश जी के सामने दोनों हाथ जोड़कर मन ही मन इस व्रत का संकल्प कर इस प्रकार कहें हे एकदंत मूषक रथा गणेश जी! मैं चतुर्थी व्रत को करने का संकल्प करता हूं अथवा करती हूं। आज मैं पूरे दिन निराहार रहकर आपके स्वरूप का ध्यान करूंगा अथवा करूंगी एवं शाम को आपका पूजन कर चंद्रोदय के बाद चंद्र देव को अर्घ्य देने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करगा या करूंगी। संकल्प पूर्ण होने के बाद संपूर्ण दिन गणेश जी के भजन और ध्यान में लगे रहे। शाम को स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर विधिपूर्वक धूप दीप अक्षत चंदन सिंदूर नैवेद्य मोदक से गणेश जी की पूजा करें। नैवेद्य के रूप में घी के बने पकवान अर्थात हलवा लड्डू पूड़ी इत्यादि का भोग लगाएं। पूजन के बाद चंद्रमा निकलने पर पूजन कर अर्घ्य अर्पित करें। जेष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी व्रत कथा सुने अथवा सुनाएं। ब्राह्मणों को अपने सामर्थ्य अनुसार दान दें। तदुपरांत प्रसाद को सभी में बांटकर स्वयं भी ग्रहण करें। इस व्रत के करने से सौभाग्य एवं धन संपत्ति की प्राप्ति होती है। तथा इस व्रत के प्रभाव से शत्रु का विनाश होता है और सभी प्रकार के मनोरथ सिद्ध होते हैं।
व्रत कथा, ,,,,,,, दया देव नामक ब्राह्मण की कथा। एक बार पार्वती जी ने भगवान गणेश जी से पूछा कि हे पुत्र ! जेष्ठ मास की चतुर्थी का किस प्रकार पूजन करना चाहिए? इस महीने के गणेश जी का क्या नाम है? भोजन के रूप में कौन सा पदार्थ ग्रहण करना चाहिए? इसकी विधि का आप संक्षेप में वर्णन कीजिए। तब गणेश जी ने कहा हे माता जेष्ठ कृष्ण चतुर्थी सौभाग्य एवं पति प्रदायिनी है। इस दिन मूषक पर सवार गणेश जी की पूजा भक्ति पूर्वक करनी चाहिए। इस दिन घी निर्मित भोज्य पदार्थ अर्थात हलवा लड्डू पूड़ी आदि पकवान बनाकर भगवान गणेश जी को अर्पित करें। ब्राह्मण भोजन के पश्चात स्वयं भोजन करें। हे माता पार्वती! इसके संबंधित में पूर्व कालीन इतिहास का वर्णन कर रहा हूं। गणेश पूजन और व्रत की विधि जो पुराणों में वर्णित है उसे सुनिए। सतयुग में पृथु नामक एक राजा हुए। उनके राज्य में दया देव नामक एक ब्राह्मण रहते थे। उनके 4 पुत्र थे पिता ने अपने पुत्रों का विवाह गृह सूत्र के वैदिक विधान से कर दिया। उन चार बहू में बड़ी बहू अपनी सास से कहने लगी हे सासू जी! मैं बचपन से ही संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करती आई हूं। मैंने पित्र ग्रह में भी इस शुभ दायक व्रत को किया है। अतः है कल्याणकारी आप मुझे यह व्रत अनुष्ठान करने की अनुमति प्रदान करें। पुत्र वधू की बात सुनकर उसके ससुर ने कहा हे बहू ! तुम सभी बहू में श्रेष्ठ और बड़ी हो। तुम्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं है और तुम भिक्षुणी हो ऐसी स्थिति में तुम किस लिए व्रत करना चाहती हो? हे सौभाग्यवती! अभी तुम्हारा समय उपभोग करने का है। यह गणेश जी कौन हैं? फिर तुम्हें करना ही क्या है? कुछ समय पश्चात बड़ी बहू गर्भिणी हो गई। 10 माह बाद उसने सुंदर बालक का प्रसव किया। उसकी सास बराबर बहू को व्रत करने का निषेध करने लगी और व्रत छोड़ने के लिए बहू को बाध्य करने लगी। व्रत भंग होने के फलस्वरूप गणेश जी कुछ दिनों में कुपित हो गए और उसके पुत्र के विवाह काल में वर वधु के सुमंगली के समय उसके पुत्र का अपहरण कर दिया। इस अनहोनी घटना से मंडप में खलबली मच गई। सब लोग व्याकुल होकर कहने लगे लड़का कहां गया? किस ने अपहरण कर लिया। बारातियों को ऐसा समाचार पाकर उसकी माता अपने ससुर दया देव से रो रो कर कहने लगी हे ससुर जी आपने मेरे गणेश चतुर्थी व्रत को छुड़वा दिया है। जिसके परिणाम स्वरुप ही मेरा पुत्र गायब हो गया है। अपनी पुत्रवधू के मुख से ऐसी बात सुनकर ब्राह्मण दया देव बहुत दुखी हुए। साथ ही पुत्र वधू भी दुखी हुई। पति के लिए दुखी पुत्रवधू प्रति मास संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगी। एक समय की बात है कि एक वेद के ज्ञाता और दुर्बल ब्राह्मण भिक्षाटन के लिए इस मधुर भाषणी के घर आया। ब्राह्मण ने कहा कि हे बेटी मुझे भिक्षा स्वरूप इतना भोजन दो कि मेरी सुधा शांत हो जाए। उस ब्राह्मण की बात सुनकर उस धर्म परायण कन्या ने उस ब्राह्मण का विधिवत पूजन किया। भक्ति पूर्वक भोजन कराने के बाद उसने ब्राह्मण को वस्त्र आदि दिए। कन्या की सेवा से संतुष्ट होकर ब्राह्मण कहने लगा है कल्याणी हम तुम पर प्रसन्न है। तुम अपनी इच्छा के अनुसार मुझसे वरदान प्राप्त कर लो। मैं ब्राह्मण वेश धारी गणेश हूं और तुम्हारी प्रीति के कारण आया हूं। ब्राह्मण की बात सुनकर कन्या हाथ जोड़कर निवेदन करने लगी है विघ्नेश्वर यदि आप प्रसन्न है तो मुझे मेरे पति के दर्शन करा दीजिए। कन्या की बात सुनकर गणेश जी ने उससे कहा कि ही सुंदर विचार वाली ! जो तुम चाहती हो वही होगा तुम्हारा पति शीघ्र ही आएगा। कन्या को इस प्रकार का वरदान देकर गणेश जी वही अंतर्ध्यान हो गए। उसी समय की बात है कि ओम शर्मा नामक ब्राह्मण एक वन में उस दिव्य बालक को नगर में लाए। अपने पौत्र को देखकर दया देव नामक ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुए। बालक की माता के हर्ष की तो सीमा ही न रही साथ ही संपूर्ण नगर वासी भी प्रसन्न चित्त हुए। बालक की माता ने पुत्र को छाती से लगा लिया और कहने लगी की गणेश जी के प्रसाद से ही मैंने खोए हुए पुत्र को प्राप्त किया है। फिर से मंडप का निर्माण करके विधिपूर्वक वैवाहिक कार्य संपन्न किया। वह भाग्यशाली कन्या अपने पति को पाकर धन्य हो गई। जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी मनुष्य के सभी मनोरथ को पूर्ण करती है। हे देवी पूर्व कथित रीति से भक्ति पूर्वक जो व्यक्ति इस व्रत एवं पूजन को करेंगे उनकी संपूर्ण इच्छाएं पूर्ण होंगी श्री कृष्ण जी कहते हैं कि हे राजन युधिष्ठिर! भगवान गणेश जी के व्रत का महत्व है। हे महाराज अपने शत्रु के विनाश हेतु आप भी इस व्रत को अवश्य कीजिए।