फ्रेंडशिप डे का क्या है सही अर्थ है आइए जानते हैं
न कश्चित् कश्चिचस्य मित्रौ,न कश्चित् कश्चिचस्य रिपु: ।व्यवहारेण जायते मित्रौ रिपुवस्तथा ।। अर्थात न कोई किसी का मित्र होता है और न कोई किसी का शत्रु मित्र और शत्रु तो व्यवहार से ही बनते हैं। मित्र बनाना कठिन होता है। शत्रु सहज में ही बन जाते हैं। मित्रता दिवस की शुरुआत कब से हुई यह जानना इतना महत्वपूर्ण नहीं है। मित्रता शब्द की शुरुआत कब हुई यह महत्वपूर्ण है। मित्रता शब्द युगो पुराना है। हमारे हिंदू वेद पुराण धर्म ग्रंथ हमें यह शिक्षा देते हैं कि मित्रता सिर्फ इंसान के इंसान के साथ ही हो ऐसा नहीं है मित्रता सभी जीव जंतुओं यहां तक कि प्रकृति मात्र से मित्रता हो। इसमें अमीर गरीब का भी प्रश्न नहीं उठता है। मित्र कोई भी बन सकता है। त्रेता युग में भगवान श्रीराम व सुग्रीव की मित्रता जहां पर एक भगवान और एक वानर राज की मित्रता इसके अलावा भगवान श्री कृष्ण एवं सुदामा जैसे घनिष्ठ मित्रों की मित्रता के उदाहरण हैं। वैदिक काल से लेकर अब तक रचित धार्मिक ग्रंथों में विभिन्न प्रकार के मित्रों का वर्णन मिलता है। कहीं कहा गया है कि सच्चा मित्र वही है जो दूसरों के समक्ष दुर्गुणों को छुपाए और उसके समक्ष व्यक्त कर दे। मित्रता के पर्यायवाची शब्द दोस्ती की बात हो तो भगवान श्री कृष्ण एवं सुदामा जिसके अद्भुत प्रेम भाव समर्पण भाव जो आजकल तो मुश्किल से ही देखने को मिलती है। सुदामा और भगवान श्री कृष्ण की दोस्ती तो मानव फूल और भंवरे की तरह है। जो एक दूसरे पर ही मरते हैं। बिना किसी भेदभाव के। इसके अतिरिक्त एक वैदिक उदाहरण भगवान श्रीराम व निषादराज केवट का भी है जो आज के युग में बहुत कम देखने को मिलता है। जहां एक केवट अयोध्या के राजा श्री राम का प्रिय प्रिय शाखा है इस उदाहरण से मानो मित्रता कितनी निश्चल है मालूम चलता है। मांगी नाव न केवट आना। कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना ।। चरण कमल रज कहुं सबु कहहि । मानुष कर निर्दोष मूरिश कछु अहहि ।। लेखक श्री पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल,