भाद्रपद शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली गणेश चतुर्थी क्या है महत्त्व
भाद्रपद शुक्ल पक्ष गणेश चतुर्थी,,,,,,,,,, इस बार सन् 2021 में 10 सितंबर दिन शुक्रवार को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी। आज पाठकों को एक विशेष जानकारी देना चाहूंगा की इस भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को रात को भूलकर भी चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए। यदि भूलवश किसी व्यक्ति ने इस रात को चांद देख लिया तो उस पर बेवजह अर्थात अकारण चोरी करने का आरोप लग सकता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान गणेश जी अपने पसंदीदा मोदक और लड्डू खा रहे थे। उनके अधिक मात्रा में लड्डू खाते देख और उनका लंबोदर एवं गजमुख को देखकर चंद्रमा को हंसी आ गई। चंद्रमा के ऐसे व्यवहार को देखकर गणेश जी नाराज हो गए और चांद से कहा कि तुम्हें अपने रूप का अहंकार हो गया है। इसलिए तुम्हारा क्षय हो जायेगा । सिर्फ इतना ही नहीं जो आज की रात तुम्हारा दर्शन करेगा उस पर भी कलंक लग जाएगा उस दिन भादो शुक्ल पक्ष चतुर्थी का दिन था। इसलिए इस चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहते हैं। पुराणों में ऐसा भी कहा गया है कि एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने भी इस गणेश चतुर्थी का चांद देख लिया था। उनको भी समयन्तक मणि चोरी करने का आरोप से कलंकित होना पड़ा था। भगवान श्री कृष्ण का भी इस आरोप से मुक्ति पाने के लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। देवर्षि नारद जी से जब भगवान श्री कृष्ण ने अपने ऊपर लगे झूठे आरोपों का कारण पूछा तो तब नारद जी ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि यह आरोप भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के रात चंद्रमा को देखने से लगा है। नारद जी ने बताया कि इस रात गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दिया था। कहानी यहीं समाप्त नहीं होती है। आगे नारद जी बताते हैं की गणेश जी के श्राप से चंद्रमा दुखी हो गए और घर में छुप कर बैठ गए। चांद का दुख देखकर देवताओं ने उन्हें सलाह दी मोदक एवं पकवानों से गणेश जी की पूजा करो उन्हें मोदक प्रिय है। गणेश जी प्रसन्न हो जाएंगे तो श्राप से मुक्ति भी मिल सकती है। तब चंद्रमा ने गणेश जी की पूजा की उन्हें प्रसन्न किया। गणेश जी ने कहा श्राप पूरी तरह समाप्त तो नहीं होगा। जहां तुम्हारी कलायें घटती जाएंगी और इसी तरह बढ़ती जाएंगी। ऐसा इसलिए कि तुम्हें अपनी गलती हमेशा याद रहेगी। पाठकों को बताना चाहूंगा कि इस घटना से गणेश जी ने संपूर्ण विश्व को भी यह ज्ञान दिया कि किसी भी व्यक्ति के रूप रंग पर हंसना नहीं चाहिए। कोई दुबला होगा तो कोई मोटा होगा कोई काला होगा। यह तो भगवान की देन है। किसी के रूप रंग पर हंसना नहीं चाहिए। तब से इस दिन जो भी चांद को देखता है इसे भगवान गणेश जी के प्रकोप का सामना करना पड़ता है। भूल से चंद्र दर्शन हो जाए तो उसका सिर्फ एक ही निवारण है इसके लिए उस व्यक्ति को श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध के अध्याय संख्या 56 तथा 57 में उल्लेखित समयन तक मणि चोरी की कथा किसी विद्वान पंडित जी के श्री मुख से कथा का श्रवण करना चाहिए। जिससे चंद्रमा के दर्शन के कारण होने वाले झूठे कलंक के खतरे को कम किया जा सकता है। अब प्रिय पाठक गणेश चतुर्थी व्रत कथा भी जान ले। यह इस प्रकार है– एक बार महादेव जी पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए। वहां एक सुंदर स्थान पर पार्वती जी ने महादेव जी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की। तब शिवजी ने कहा हमारी हार जीत का साक्षी कौन होगा? पार्वती ने तत्काल वहां घास के तिनके बटोर कर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण प्रतिष्ठा करके उससे कहा बेटा हम चौपड़ खेलना चाहते हैं। किंतु यहां हार जीत का साक्षी कोई नहीं है। अतः खेल के अंत में तुम हमारी हार जीत के साक्षी होकर बताना कि हम में से कौन जीता कौन हारा? खेल आरंभ हुआ। देव योग से तीनों बार पार्वती जी की जीत हुई। जब अंत में बालक से हार जीत का निर्णय कराया गया तो उसने महादेव जी को विजई घोषित किया। परिणामत: पार्वती जी ने कुपित होकर उसे एक पाव से लंगड़ा होने और वहां के कीचड़ में पड़ा रह कर दुख भोगने का श्राप दे दिया। बालक ने विनम्रता पूर्वक कहा मां मुझसे अनजान वश ऐसा हो गया है। मैंने किसी कुटिलता या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया। मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्त का उपाय बताएं। तब ममता रूपी मां को उस पर दया आ गई और वह बोली यहां नागकन्या गणेश पूजन करने आएंगी। उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे। इतना कहकर वह कैलाश पर्वत चली गई। 1 वर्ष बाद वहां सावन में नागकन्या गणेश व्रत करने के उस बालक को भी व्रत की विधि बताई। तत्पश्चात बालक ने 12 दिन तक गणेश जी का व्रत किया। तब गणेश जी ने उसे दर्शन देकर कहां की मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूं। मनोवांछित वर मांगो। बालक बोला भगवान मेरे पांव में इतनी शक्ति दे दो जी मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुंच सकूं। और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएं। गणेश जी तथास्तु कहकर अंतर्धान हो गए। बालक भगवान शिव के चरणों में पहुंच गया। शिवजी ने उसे वहां तक पहुंचने के साधन के बारे में पूछा। तब बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी। उधर उसी दिन से अप्रसन्न होकर पार्वती शिव जी से भी विमुख हो गई थी। तदोपरांत भगवान शंकर ने भी बालक की तरह 21 दिन पर्यंत गणेश जी का व्रत किया। जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेव जी से मिलने की इच्छा जागृत हुई। वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुंची। वहां पहुंचकर पार्वती जी ने शिव जी से पूछा भगवन आपने ऐसा कौन सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी भागी आ गई हूं। शिव जी ने गणेश व्रत का इतिहास उनसे कह दिया। तब पार्वती ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन ताक 2121 की संख्या में दुर्वा पुष्प तथा लड्डू से गणेश जी का पूजन किया। 21 वे दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वती जी से आ मिले। उन्होंने भी मां के मुख से इस व्रत का महात्म्य सुनकर व्रत किया। कार्तिकेय ने भी यही व्रत विश्वामित्र को बताया। विश्वामित्र जी ने व्रत करके गणेश जी से जन्म से मुक्त होकर ब्रह्मा ऋषि होने का वर मांगा। गणेश जी ने उनकी मनोकामना पूर्ण की। ऐसे हैं श्री गणेश जी जो सबकी कामनाएं पूर्ण करते हैं। अब यदि बात करें मुहूर्त की तो इस बार सन 2021 में दिनांक 10 सितंबर दिन शुक्रवार को गणेश चतुर्थी व्रत मनाया जाएगा। इस दिन गणेश चतुर्थी तिथि 40 घड़ी दो पल तक है। चित्रा नक्षत्र 17 घड़ी 29 पल तक है। चंद्रमा की स्थिति इस दिन पूर्णतया तुला राशि में है इस दिन भद्रा 12 घड़ी 48 पाल से 40 घड़ी दो पल तक है। लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल,