मातृ पितृ पूजन दिवस(14 फरवरी)पर क्या है महत्वपूर्ण, आइये जानते हैं
जिन मात- पिता की सेवा करी तिन और की सेवा करी ना करी।
जिनके हृदय श्री राम बसे तिन
और का नाम लिया ना लिया ।।
पूजन से भी बढ़कर माता पिता की सेवा महत्वपूर्ण है। सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं वरन संपूर्ण राष्ट्र के युवा वर्ग से अनुरोध है कि इस लेख पर विशेष ध्यान दें। हम वर्ष भर में कोई न कोई दिवस मनाते रहते हैं। परंतु पाश्चात्य संस्कृति पर आधारित दिवस के बजाय अपने सनातन धर्म पर आधारित पौराणिक बातों को ध्यान में रखते हुए धर्म पर आधारित दिवस मनाए तो क्या कहने। हिंदू धर्म को मानने वाले अनुयायियों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि हमें सर्वप्रथम अपने सनातन धर्म पर आधारित दिवस मनाने चाहिए। हमें अपनी संस्कृति नहीं भूलनी चाहिए। पाठकों ध्यान रहे मेरा उद्देश्य पाश्चात्य संस्कृति मानने वाले लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है बल्कि अपने धर्म और संस्कृति को उजागर करना है। हमारा देश सभी धर्मों का स्वागत करता है। हम प्रभु ईसा मसीह का भी सम्मान करते हैं परंतु सर्वप्रथम जय श्री राम इसके बाद दूजा नाम। भावार्थ यह है कि सर्वप्रथम अपनी संस्कृति पर चलें। 25 दिसंबर के दिन क्रिसमस डे के बजाय सर्वप्रथम तुलसी पूजन दिवस मनाएं। वैलेंटाइन डे के बजाय मातृ पितृ पूजन दिवस मनाएं। माता-पिता से बढ़कर संसार मैं कुछ भी नहीं है। किसी भी वेद पुराण में हमें यही शिक्षा मिलती है। पंचम वेद कहे जाने वाले धार्मिक ग्रंथ महाभारत की कहानी में यक्ष युधिष्ठिर संवाद में ही देख लीजिए जब यक्ष ने सरोवर का जल पीने से पूर्व धर्म राज युधिष्ठिर से पूछा कि सबसे बड़ा कौन है? तब धर्मराज युधिष्ठिर का जवाब था माता का स्थान सबसे बड़ा है। जब यक्ष ने पूछा आकाश से भी ऊंचा कौन है? धर्मराज युधिष्ठिर का जवाब था पिता का स्थान आकाश से भी ऊंचा है। महर्षि वेदव्यास जी भी एक स्थान पर लिखते हैं कि-“प्रिणाति मातरं येन पृथ्वी तेन पूजिता ” । अर्थात जो माता को प्रसन्न करता है समझो उसने पृथ्वी माता की पूजा की है। इसीलिए तो कहा गया है माता गुरु तरे भूमे अर्थात माता भूमि से भी भारी है। माता अपनी संतान के लिए अपना सारा सुख सुकून बलिदान करती है। स्वयं खाए न खाए लेकिन बच्चों को खिलाकर ही तृप्त होती है। इसलिए भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रेरणा स्रोत वेद उपनिषद रामायण महाभारत गीता सभी धर्म ग्रंथ में तथा महापुरुषों की मातु पितु भक्ति के प्रमाण की एक स्वर में प्रकार के आधार पर आधारित पर्व की नींव रखी गई जिसे हम श्राद्ध पर्व कहते हैं। मनुस्मृति में कहा जाता है संतान सैकड़ों वर्षो तक माता पिता की सेवा करें लेकिन फिर भी प्रसिद्धि प्रसव पीड़ा पालन शिक्षा आदि में माता पिता जो कष्ट सहते हैं संतान उसका बदला नहीं चुका सकती है । महापुरुषों में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी श्री गणेश जी महाराज भीष्म पितामह श्रवण कुमार नचिकेता भक्त पुण्डरीक आदि इसके उदाहरण हैं। इसलिए एक बार पाठकों से पुनः विनम्र निवेदन है की पाश्चात्य संस्कृति से पूर्व अपनी संस्कृति को न भूलें और आने वाली नई पीढ़ी को भी हमारी सनातन धर्म की संस्कृति के विषय में अवगत कराएं। इसलिए हमारी संस्कृति विलुप्त होने से बच जाएगी।