पुत्रकी कामना चाहने वाले दंपति और पुत्र की सर्वत्र रक्षा चाहने वाले दंपत्ति को करना चाहिए पुत्रदा एकादशी व्रत
पुत्रकी कामना चाहने वाले दंपति और पुत्र की सर्वत्र रक्षा चाहने वाले दंपत्ति को करना चाहिए पुत्रदा एकादशी व्रत।,,,,,,,,,
इस बार सन् 2022 में पुत्रदा एकादशी व्रत गुरुवार दिनांक 13 जनवरी 2022 को मनाया जाएगा। इस दिन एकादशी तिथि शाम 7:34 तक है तदुपरांत द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी। शुभ योग रात 12:32 तक है तदुपरांत शुक्ल नामक योग होगा। विष्टि नामक करण 7:34 तक है तदुपरांत बव नामक करण है यदि नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन कृतिका नामक नक्षत्र शाम 5:06 तक तदुपरांत रोहिणी नक्षत्र उदय होगा। बात यदि चंद्रमा की स्थिति की करें तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण वृषभ राशि में रहेंगे।
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा, ,,,,, पुराणों के अनुसार पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा कुछ इस प्रकार से है। पांडू पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर नंद नंदन भगवान श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि हे भगवान! आपने सफला एकादशी का महात्मय बता कर बड़ी कृपा करी अब आप कृपा करके यह बतलाइए की पौष शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? उसकी विधि क्या है? और उसमें कौन से देवता का पूजन किया जाता है। भक्तवत्सल भगवान श्री कृष्ण बोले हे राजन! इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। इसमें भी नारायण भगवान की पूजा की जाती है। इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान कोई दूसरा व्रत नहीं है। इस के पुण्य से मनुष्य तपस्वी विद्वान और लक्ष्मी वान होता है। इसकी मैं एक कथा कहता हूं तुम ध्यानपूर्वक सुनो। भद्रावती नामक नगरी में सुकेतु मान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसकी स्त्री का नाम शैव्या था। वह निसंतान होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी। राजा के पित्र भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे। और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा? राजा को भाई बांधव धन हाथी घोड़े राज्य और मंत्री इन सब में से किसी से भी संतोष नहीं होता था। वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा? बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा जिस घर में पुत्र न हो उस घर में सदैव अंधेरा ही रहता है। इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है। अर्थात उसके दोनों लोग सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात दिन चिंता में लगा रहता था। एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। 1 दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर जंगल को चला गया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा कि जंगल में मर्ग सिंह बंदर सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनीयों के बीच घूम रहा है। इस जंगल में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं। कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं। जंगल के दृश्य को देखकर राजा सोच विचार में लग गया इसी प्रकार आधा दिन बीत गया वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दुख प्राप्त हुआ ऐसा क्यों? राजा प्यास के मारे अत्यंत दुखी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस हंस मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शकुन समझ कर घोड़े से उतर कर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया। राजा को देखकर मुनियों ने कहा हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न है। तुम्हारी क्या इच्छा है। सो कहो राजा ने पूछा महाराज !आप कौन हैं? और किस लिए यहां आए हैं? मुनि कहने लगे कि हे राजन !आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी व्रत है हम लोग विश्व देव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं। यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो एक पुत्र का वरदान दीजिए। मुनि बोले राजन् !आज पुत्रदा एकादशी है आप अवश्य यह व्रत करें भगवान की कृपा से आपके घर में पुत्र होगा। मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भधारण किया और 9 महीने के पश्चात उसके 1 पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर यशस्वी और प्रजा पालक हुआ। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे राजन पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। जो मनुष्य इस महात्मय को पड़ता है या सुनता है उसे अंत में पुत्र प्राप्ति होती है।
पुत्रदा एकादशी पूजन विधि।, ,,,,,, इस व्रत के दिन सर्वप्रथम कलश की स्थापना करनी चाहिए। तत्पश्चात कलश को लाल वस्त्र से बांधकर उसकी पूजा करें। तदुपरांत भगवान श्री हरि विष्णु की प्रतिमा रखकर उसे स्नान आदि से शुद्ध करके नया वस्त्र पहनाएं। धूप दीप आदि से विधिवत भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा अर्चना तथा आरती करें। नैवेद्य और फलों का भोग लगाकर वितरण करें।
पुत्रदा एकादशी का महत्व, ,,,, पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान इस चर और अचर संसार में कोई भी दूसरा व्रत नहीं है। जिन व्यक्तियों को संतान होने में बाधाएं आती हैं या जिन्हें पुत्र प्राप्ति की कामना हो उन्हें पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। जो भक्त एकादशी का व्रत करता है उसे 1 दिन पूर्व अर्थात दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पूर्णरूपेण पालन करना चाहिए। दशमी के दिन सायं में सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए। वर्ष भर की दो एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है यह श्रावण और पौष मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी हैं। इन दोनों एकादशी को पुत्रदा एकादशी ही कहते हैं। जो भक्त एकादशी का व्रत पूरे विधि विधान से करता है उसकी समस्त मनोकामनाएं भगवान श्री हरि विष्णु पूरी करते हैं। इस व्रत के नाम के अनुसार ही इसका फल है यह व्रत बहुत ही शुभ फलदायक होता है। अतः संतान की प्राप्ति के इच्छुक भक्तों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए जिससे कि उसे मनवांछित फल की प्राप्ति हो सके। यदि आप स्वस्थ हैं और उपवास करने में सक्षम हैं तो निर्जला व्रत भी रख सकते हैं। अन्यथा फलाहारी व्रत रखकर विधिवत पूजन संपन्न होने के बाद समय पर इसका पारण करें।
महत्वपूर्ण मंत्र, ,,,, ओम नमो भगवते वासुदेवाय इस मंत्र का जाप करें। साथ ही साथ विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।