बृज के बाद आइये जानते है कुमाऊं अंचल में कैसा मनाया जाता है होली का उत्सव
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड
भारत को तीज-त्योहारों का देश कहा जाता है. यहाँ वर्ष-पर्यंत त्योहारों का शमां चलता रहता है. विश्व के सभी धर्मों के लोगों के यहाँ पाए जाने के कारन यहाँ की संस्कृति विश्व की अनोखी संस्कृति है. भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ सबसे अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं. यहाँ विभिन्न धर्म और समुदाय के लोगों के होने के कारन वर्ष भर भिन्न-२ प्रकार के उत्सव और मेलों का आयोजन होता रहता है. ये त्यौहार जहाँ लोगों में उनकी धार्मिक आस्था के प्रतीक होते हैं, वहीँ विविधता में एकता वाली भारतीय संस्कृति को ये अलग पहचान देते हुए उन्हें बनाये रखने में भी सहायक होते हैं. भारत में मुख्यतः होली हिन्दू और सिख समुदाय द्वारा मनाई जाती है. विश्व में भारत के बाद नेपाल, श्रीलंका और कई अन्य देश, जिनमे भारतियों की तादाद ठीक-ठाक है, बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है. इनमे सूरीनाम, गुयाना, दक्षिण अफ्रीका, थाईलेंड, त्रिनिदाद, यूनाइटेड किंगडम, यूनाइटेड स्टेट, मौरिशश और फिजी हैं. सबसे अधिक उत्साहपूर्वक मनाई जाने वाली होली है उत्तराखंड के कुमायूं छेत्र की ‘कुमाऊनी होली’ भी विख्यात है. कुमाऊनी होली में बैठकी होली, खड़ी होली और महिला होली बसंत पंचमी से शुरू हो जाते हैं. खड़ी होली मुख्यतः कुमाऊँ शेत्र के ग्रामीण इलाकों में मनाई जाती हैं. पारंपरिक परिधान चूड़ीदार पजामा और कुरता पहने लोगों द्वारा खड़ी होली का गीत गाया जाता है. ढोल और हरका जैसे वाद्य यंत्रों के संगीत पर लोग समूह में नृत्य करते हैं. धुलंदी को कुमाऊनी में छरड़ी के नाम से जाना जाता है. छरड़ी शब्द छरड़ से बना है, जिसका अर्थ है प्राकृतिक रंग, जिसे फूलों, राख और पानी से बनाया जाता है. देश में त्यौहार चाहे कोई भी हो, वह धार्मिक संस्कारों से सज्जित होता है. इस देश की परम्परा रही है कि किसी भी त्यौहार को बड़े ही प्रेम पूर्वक ढंग से भाईचारे के सन्देश के साथ मनाया जाये. वतर्मान में इसमें थोड़ी कमी अवश्य आई है. पाश्चात्य शैली के कारन हम इन्हें सहेजने में नाकाम हो रहे हैं. कुमाऊं में होली गीतों का इतिहास सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से शुरू हुआ। कुमाऊं में होली गीतों का प्रचलन बृज के लोगों द्वारा हुआ। यही कारण है कि कुमाऊंनी होली में बृज का पुट है। बृज भूमि का इतिहास भगवान राधा-कृष्ण से जुड़ा है। इसी कारण अधिकांश होली गीतों में राधा-कृष्ण के प्रणय प्रसंगों का वर्णन है। बृज के बाद कुमाऊं अंचल में होली का उत्सव कई दिनों तक मनाया जाता है।समूचे देश में बृज के बाद उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में होली का उत्सव कई दिनों तक मनाया जाता है। पहाड़ में करीब तीन माह पहले पौष से ही होली की बैठकें शुरू हो जाती हैं। शिवरात्रि के बाद होली अधिक जमने लगती है और एकादशी के दिन रंग की शुरूआत होते ही लोग पूरे रंग में आ जाते हैं। ग्रामीण इलाकों में खड़ी होली का आकर्षण अधिक है। लोग घर-घर जाकर होली का गायन करते हैं। इन दिनों गांव में बच्चे, बूढ़े, युवक-युवतियां सभी कलाकार के रूप में होली गाते और नृत्य करते नजर आते हैं। कुमाऊं की सबसे प्राचीन नगरी अल्मोड़ा को सांस्कृतिक नगर के रूप में भी जाना जाता है। कुमाऊंनी होली और संस्कृति के जानकारों का कहना है कि कुमाऊं में होली गीतों का इतिहास अल्मोड़ा से ही शुरू हुआ। उसके बाद नैनीताल, पिथौरागढ़, रानीखेत आदि स्थानों में होली की बैठकें होने लगीं। होली का इन पर्वों पर असर प्राचीन वर्ण व्यवस्था की एक मान्यता के अनुसार रक्षावंधन, दशहरा, दीपावली व होली प्रमुख त्योहार बनकर उभरा। पौष के प्रथम रविवार से विष्णुपदी होली के बाद बसंत, शिवरात्रि अवसर पर क्रमवार गाते हुए होली के निकट आते-आते अति श्रृंगारिकता इसके गायन-वादन में सुनाई देती है। यहां कई गांवों में होली के साथ-साथ झोड़े-चांचरी लोक नृत्यगीत शैली का चलन भी है। कुमाऊं की होली के काव्य स्वरूप को देखने से पता चलता है कि कितने विस्तृत भावना इन रचनाओं में भरे हैं। कुमाऊं की होली का साल पुराना इतिहास हैबैठ की होली की ये परंपरा कुमाऊं में सदियों से चली आ रही है। महिलाओं का कहना है कि आजकल की पीढ़ी पारंपरिक तरीके से त्योहार मनाना भूलती जा रही हैं। महिलाओं ने कहा कि हमारा मकसद युवा पीढ़ी में पारंपरिक तरीके की बुनियाद कायम रखना है, जिसके लिए कुमाऊं और आसपास के इलाके में होली से पहले ही होली की तैयारी शुरू हो जाती है, ताकि युवा भी इससे जुड़ें और सदियों पुरानी परंपरा से जुड़े रहे।
उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर कार्य कर चुके हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं