अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर वेदों पर आधारित आलेख
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर वेदों पर आधारित आलेख।
प्रतिवर्ष 21 जून को मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय योग दिवस।
योग भारतीय जीवन पद्धति का एक अति विशिष्ट अंग है और वेद भारतीय संस्कृति का सबसे प्राचीन ग्रंथ है वेदों का मुख्य प्रतिपाद्य विषय आध्यात्मिक उन्नति करना है। इसके लिए यज्ञ उपासना पूजा व अन्य कर्मकांडों का वर्णन किया गया है। इन सब से पूर्व योग साधना का विधान किया गया है इसी संदर्भ में ऋग्वेद में कहा गया है-
यस्माद्यते न सिध्यन्ति यज्ञोविपश्चितश्चन ।
स धीमान योगमिन्वति ।। अर्थात विद्वानों का कोई भी क्रम बिना योग के पूर्णता सिद्ध नहीं होता। इस बात से यह सिद्ध होता है कि वेदों में भी योग विद्या को कितना महत्व दिया गया है। अर्थात जिन इन्द्र अग्नि देवता के बिना यज्ञ भी सफल नहीं होता उसी में ज्ञानियों को अपनी बुद्धि और कर्मों का योग करना चाहिए। उसी देव में उन्हें अपनी बुद्धि और कर्मों का अन्य रूप से एकाग्र करना चाहिए। वेदों में कहा गया है की योगाभ्यास के द्वारा प्राप्त विवेक ख्याति ईश्वर की कृपा से ही होती है। वेद के निम्न निर्देशित मंत्र इसी भाव को प्रकट करते हैं।
से द्या नो योग आभुपत् स राये स पुरं ध्याम् ।
गमद् वाजिभरा स न: ।। अर्थात ईश्वर की कृपा से हमें योग शुद्ध होकर विवेक ख्याति तथा रितंभरा प्रज्ञा प्राप्त हो और वही ईश्वर अणिमा आदि सिद्धियों सहित हमारे पास आवे। इसी कारण योग सिद्धि के लिए वेदों में प्रार्थना करते हुए कहा गया है कि-
योगे- योगे तवस्तरं वाजे- वाजे हवामहे ।
सखाय इन्द्र मूर्तये ।। अर्थात हम सखा अर्थात साधक लोग योग में तथा हर मुसीबतों में परम ऐश्वर्यवान इंद्र का आह्वान करते हैं जब साधक साधना करता है और उसमें विघ्न उत्पन्न होते हैं तो उन्हें दूर करने के लिए परमात्मा से प्रार्थना करता है।
योग से तन और ध्यान से मन को
आराम मिलता है ।
स्वास्थ्य रक्षा में योगासनों का योगदान। ,,,,,
आरोग्य प्राप्ति एवं स्वास्थ्य रक्षा में योगासनों का अभ्यास एक महत्वपूर्ण घटक है। यूं तो योग का संबंध मन के स्थैर्य एवं चित्तवृत्तियों के निरोध के माध्यम से स्व – स्वरूप में प्रतिष्ठित होने से है। तथापि इस लक्ष्य की प्राप्ति में आसन सिद्धि आवश्यक सोपान है। बिना आसन सिद्धि के मन का स्थैर्य होना भी अत्यंत कठिन है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन की अवस्थिति होती है और शारीरिक स्वास्थ्य तथा मानसिक स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए आसनों का अभ्यास भी अपेक्षित है। आसनों में जहां न केवल शरीर सौष्ठव स्पूर्ति आदि प्राप्त होती है वहीं श्वास- प्रश्वास की प्रक्रिया नियंत्रित होती है। मन की स्थिरता प्राप्त होती है सम्यक ज्ञान लगता है। शरीर में रक्त संचार उचित रीति से होता है। शरीर की मांसपेशियों में प्रसार एवं संकुचन की प्रक्रिया तीव्र होती है। शरीर में विद्यमान त्रिदोष अर्थात कफ वात पित्त का संतुलन बना रहता है और रोगों के निवारण में सहायता मिलती है। स्वयं आचार्य चरक का कहना है की योग आसनों के अभ्यास तथा सम्यक व्यायाम से शरीर में हल्का पन कार्य करने की शक्ति शरीर में स्थिरता दुख सहन करने की क्षमता शरीर में बढ़े हुए तथा कुपित दोषों की क्षीणता और शरीर की मंद अग्नि उद्दीप्त होती है। यथा-
लाघवं कर्म सामर्थ्य स्थैर्य दु: खसहिष्णुता ।
दोषक्षयोअ्ग्रिवृद्धिश्च व्यायामादुपजायते ।।
इसी प्रकार हठयोग प्रदीपिका ने आसनों के लाभ बताते हुए कहा है कि योगासनों से शरीर एवं मन की स्थिरता आरोग्य और शरीर की लघुता प्राप्त होती है। इसी प्रकार योगासनों और स्वास्थ्य का घनिष्ठ संबंध है। अनेक रोगों के निदान में यह सहायक हैं। इसी दृष्टि से यहां कुछ प्रमुख आसनों के बारे में जानकारी देना चाहूंगा योगासनों में पद्मासन एवं वृद्ध पद्मासन सबसे महत्वपूर्ण है । जिससे सभी प्रकार के रोग का निवारण होता है। धरती पर एक शुद्ध आसन बिछाकर बैठ जाएं दाहिने पैर को बांये पैर की जंघा पर पूर्णतया रखें तदुपरांत बांये पैर को भी इसी प्रकार दाहिने जंघा पर धीरे धीरे पुर्णतया रखने की कोशिश करते रहें ।यह पद्मासन कहलाता है। इसके बाद इसी आसन में विराजमान रहते हुए दाहिने हाथ की तर्जनी एवं अंगुष्ठ से पीठ के पीछे से दाहिने पैर के अंगूठे को तथा बांए हाथ से इसी प्रकार बांऐ पैर के अंगूठे को धीरे-धीरे पकड़ने की कोशिश करें यह बद्ध पद्मासन कहलाता है।फल–
इस आसन को करने से उदर अर्थात पेट और कमर से संबंधित रोग नहीं होते हैं। ध्यान रहे जब तक पद्मासन पूर्णरूपेण ना हो तब तक बद्ध पद्मासन करने की कोशिश ना करें।
इसके अतिरिक्त कुछ आसन निम्न प्रकार से हैं।
1- पादांगुष्ठ- नासाग्र- स्पशार्सन- पृथ्वी पर समसूत्र मैं पीठ के बल सीधा लेट जाएं। दृष्टि को नासाग्र मैं जमा कर दाएं पैर के अंगूठे को पकड़कर नासिका के अग्रभाग को स्पर्श करें इसी प्रकार पुनः पुनः करें। मस्तक बाया पैर और नितंब पृथ्वी पर जमे रहे। इसी प्रकार दाएं पैर को फैलाकर बाएं पैर के अंगूठे को नासिका के अग्रभाग से स्पर्श करें। फिर दोनों पैरों के अंगूठे को दोनों हाथों से पकड़ कर नासिका के अग्रभाग को स्पर्श करें। कई दिन के अभ्यास के पश्चात अंगूठा नासिका के अग्रभाग को स्पर्श करने लगेगा।
इस आसन का फल- इससे कमर का दर्द घुटने की पीड़ा कंधे स्थान की शुद्धि एवं उदर संबंधी सर्व रोगों का नाश करता है। यह आसन स्त्रियों के लिए भी अत्यधिक लाभदायक है।
2- पश्चिमोत्तानासन- दोनों पांव को लंबा सीधा फैलाए। दोनों हाथों की अंगुलियों से दोनों पैरों की अंगुलियों को खींचकर शरीर को झुका कर माथे को घुटने पर टिका दें यथाशक्ति वहीं पर टिकाए रहे। प्रारंभ में 10 -20 बार शनैः शनैःकरते हुए मस्तक को घुटने पर ले जाएं और इसी प्रकार पूरक करते हुए ऊपर उठाता चला जाए।
फल- इस आसन से पाचन शक्ति को बढ़ाना सब स्नायु और कमर तथा पेट की नस नाडियों को शुद्ध एवं निर्मल करना बढ़ते हुए पेट को पतला करना इत्यादि इससे मंदाग्नि क्रीमी विकार तथा वात विकार आदि रोग दूर होते हैं। इस आसन को कम से कम 10 मिनट तक करते रहने से उचित लाभ प्रतीत होगा।
3- सम्प्रसारण भू – नमनासन- पैरों को लंबा करके यथाशक्ति चौड़ा फैलाएं तत्पश्चात दोनों पैरों के अंगूठे को पकड़कर सिरको भूमि में टीका दे।
फल- इससे ऊरु और जंघा प्रदेश तन जाते हैं। टांग कमर पीठ और पेट निर्दोष हो कर वीर्य स्थिर होता है।
4- जानुशिरासन- एक पांव को सीधा फैलाकर दूसरे पांव की एड़ी गुदा और अंडकोष के बीच में लगाकर उसके पाद तल से फैले हुए पांव की रान को दबावें । पैर की अंगुलियों को दोनों हाथों से खींचकर धीरे-धीरे आगे को झुका कर माथे को पसारे हुए घुटने पर लगा दे। इसी प्रकार दूसरे पांव को फैलाकर माथे को घुटने पर लगावे।
फल- इस आसन के सभी लाभ पश्चिमोत्तानासन के समान हैं।
5- ह्रदय स्तम्भासन- चित लेट कर दोनों हाथों को सिर की ओर तथा दोनों पैरों को आगे की ओर फैला वे। फिर पूरा करके जालंधर बंध के साथ दोनों हाथों और दोनों पैरों को 6 ,7 इंची की ऊंचाई तक धीरे धीरे उठावे और वहीं पर यथाशक्ति ठहरावें । जब सांस निकलना चाहे तब पैरों और हाथों को जमीन पर रखकर धीरे धीरे रेचक करें।
फल- छाती हृदय एवं फेफड़े का मजबूत और शक्तिशाली होना और पेट के सब प्रकार के रोगों का दूर होना।
6- उत्तानपाद आसन- चित लेट कर शरीर के संपूर्ण स्नायु ढीले कर दें पूरक करके धीरे-धीरे दोनों पैरों को अंगुलियों को ऊपर की ओर खूब ताने हुए ऊपर उठावे जितनी देर आराम से रख सके रखकर पुनः धीरे-धीरे भूमि पर ले जाएं और सांस को धीरे धीरे रेचक कर दें। प्रथम बार 30 डिग्री तक दूसरी बार 45 डिग्री तक तीसरी बार 60 डिग्री तक पैरों को उठावे।
इसके अतिरिक्त भी अनेक योग हैं जैसे ब्रज आसन,गोमुख आसन,कपाल भाति, अनुलोम-विलोम आदि।
लेखक पंडित प्रकाश जोशी। गेठिया नैनीताल।