(लेख):- प्रसिद्ध शिक्षाविद डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन

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(डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला)-आज पांच सितंबर का दिन हमारे देश में, पूर्व राष्ट्रपति एवं शिक्षाविद्  स्व.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन को, पूरे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है,क्योंकि वह स्वयं बहुत योग्य और विद्वान शिक्षक रहे।

शिक्षक के बारे में कुछ भी कहना काफी कठिन कार्य होता है कबीर ने तो अपने दोहे में जैसे सब कुछ कह दिया हो यह कह कर कि “गुरु गोविंद दोनों खड़े काके लागूँ पायँ, बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो बताए।” अर्थात गुरु की वजह से मैं ईश्वर के बारे में जान पाया। इस तरह कबीर ने गुरु को ईश्वर से अधिक माना। शिक्षक ही हमें जीवन की संपूर्णता को हासिल करने की दिशा में,हमारा पथ, आलोकित करता है।
भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र है “तमसो मा ज्योतिर्गमय” अर्थात मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। प्रकाश मतलब ज्ञान की ओर ले चलो अंधकार में कुछ नहीं दिखाई पड़ता और ज्ञान अर्थात प्रकाश में सब कुछ दिखाई पड़ता है।
यह ज्ञान यह प्रकाश गुरु अर्थात शिक्षक के माध्यम से ही शिक्षा से विस्तृत होकर चारों ओर फैलता है। किसी ने कहा भी है शिक्षा वह श्रेष्ठ धन धन है जिसे आपसे कोई छीन नहीं सकता, आपसे कोई चुरा नहीं सकता है। इसे आपने अंदर बंद करके रखेंगे छुपा कर रखेंगे तो यह एक दिन नष्ट हो जाएगा जैसे इत्र को बोतल में बंद करके रख दें तो एक दिन नष्ट हो जायेगा। बोतल को खोल कर रखें तो इत्र चारों ओर के वातावरण को महकाएगा। शिक्षा को जितना छात्र-छात्राओं और लोगों को बांटेंगे इसे खर्च करेंगे इसका ज्ञान इसका प्रकाश उतना ही फैलता जाएगा।
हर बच्चे की,छात्र छात्रा के पहले शिक्षक माता पिता होते हैं और पहली पाठशाला घर होती है। यद्धपि यह अब पुरानी सी बात हो गयी है लेकिन आज हर विद्यार्थी के जीवन में शिक्षक का महत्वपूर्ण योगदान होता है जब सब शिक्षित हुए तभी तो यहां तक आज हम सब पहुंच पाए। शिक्षक बच्चों के जीवन में उनके भविष्य के निर्माता होते हैं और छात्र-छात्राओं के अच्छे मित्र की तरह होते हैं,भगवान की तरह होते हैं जो योग्य चरित्रवान नागरिकों का निर्माण करते हैं।
शिक्षक का मूल अर्थ यही है जो विद्यार्थियों को ऊंचाईयों अर्थात शिखर तक पहुँचाए, उनको क्षमा करना शिखाए, उनको कमियों को दूर करना बताए। तभी किसी ने कहा भी है कि शिक्षक के पास शिक्षा के लिए आईये और समाज तथा राष्ट्र के सेवार्थ जाईये। इसीलिए कहा भी जाता है कि शिक्षक युवाओं के चरित्र नैतिकता आचरण के निर्माण मे मुख्य भूमिका निभाते हैं। अतः सभी को शिक्षक का आदर सम्मान करना चाहिए और उनसे से अच्छी शिक्षा आशीर्वाद के रूप में ग्रहण करनी चाहिए। जिससे शुभ सोचा और करा जा सके।
विश्व के प्रसिद्धि शिक्षाविद्ध, राजनीतिज्ञ, दार्शनिक, विचारक, सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को मद्रास के चित्तूर जिले के तिररूत्तनी गांव में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था, यह पहले आंध्र प्रदेश में आता था अब तमिलनाडु का भाग है। आठ लोगों के परिवार में जीवन बड़ी कठिनाई से गुजरा। हाई स्कूल की परीक्षा गांव के स्कूल से पास करने के बाद मद्रास क्रिश्चियन कालेज से एम ए की डिग्री हासिल की। इसके बाद मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर का कार्यभार संभाला। कुछ वर्ष बाद शिकागो /ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में आपको दर्शन शास्त्र में व्यापक वक्तव्य देने के लिए बुलाया गया जिसकी हर ओर व्यापक प्रशंसा हुई थी। 1931 में आप आंध्र प्रदेश यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर बने, आपकी निरंतर उपलब्धियों के कारण आपकी लोकप्रियता दिन पर दिन बढ़ती चली गई है। सन 1939 में आप बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर बनाए गए थे।
सन 1946 में आप यूनेस्को की एक संस्था की कार्य समिति के अध्यक्ष अर्थात राजदूत बनाए गए। 1948 में सोवियत रूस में भारत के राजदूत का पद संभाला। देश की स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष बनाए गए थे। वीर सावरकर और विवेकानन्द के विचारों का व्यापक प्रभाव आप पर पड़ा। सन 1952 में सर्वपल्ली राधा कृष्णन भारत के उप राष्ट्रपति बने और सन 1962 तक इस पद को सुशोभित करते रहे। आप के महान कार्यों को देखते हुए राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने आपको सन 1954 में “भारत रत्न सम्मान” देकर सम्मानित किया। आपको देश के अनेक विश्विद्यालयों से तथा कोलंबो विश्विद्यालय और लंदन विश्विद्यालयों ने आपको अपनी मानद उपाधियों से सम्मानित किया। ब्रिटिश सरकार आपकी योग्यता से इतना प्रभावित थी कि आपको “सर” की उपाधि से सम्मानित किया।
आप 13 मई 1962 को भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने और 1967 तक रहे बाद में भी उनसे राष्ट्रपति बनने का अनुरोध किया गया तब स्वास्थ संबंधी कारणों से उन्होंने यह पद ग्रहण करने से इंकार कर दिया । दर्शनशास्त्र साथ के प्रोफेसर होते हुए भी राजनीति के क्षेत्र में उन्होंने बड़ी सफलता से अपनी भूमिका निभाई। वो भारतीय संस्कृति के महान विद्वान थे और हिंदू शास्त्रों का आपने का गहन अध्ययन किया था। उन्होंने 40 वर्षों तक शिक्षा जगत को अपनी सेवाएं प्रदान की थीं। शिक्षा के क्षेत्र में आपके द्वारा दिए गए उल्लेखनीय योगदान के लिए डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन 5 सितंबर को, भारत सरकार ने शिक्षक दिवस के रूप में पूरे देश से मनवाने का निर्णय लिया था, ताकि शिक्षक, सर्व पल्ली राधाकृष्णन जी के कार्यों से, विचारों से, प्रेरणा ले सकें और उनसे प्रेरणा लेकर सकारात्मक शिक्षा क्षेत्रों को दे सकें, और फिर छात्र सामाजिक जीवन में राष्ट्रीय हित में अपना उल्लेखनीय योगदान दे सकें। उनका मानना था कि शिक्षा से ही मानव मन का,उसके मस्तिष्क का अच्छा उपयोग हो सकेगा और लोग उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में अपनाने में सफल हो सकेंगे। लंबी बीमारी के कारण 17 अप्रैल 1975 को चेन्नई में आपका निधन हुआ, तब देश ने एक महान विद्वान को खो दिया था जिसकी पूर्ति शायद ही कभी संभव हो सके। उनकी कार्यशैली, उनके शिक्षा और सामाजिक हित में दिए गए योगदान के लिए सन 1975 में अमेरिका ने आपको अपना प्रसिद्ध पुरस्कार “टेम्पलटन” उनको प्रदान किया था। उनके लिए ही शायद किसी ने यह पंक्तियां लिखीं थीं-
‘शिक्षक ही प्रकाश का, एक मात्र अनुपम द्वार है,
शिक्षक ही, उन्नति,विकास,समृद्धि का आधार है,
शिक्षक ही,ज्ञान और विज्ञान का अद्भुत भंडार है,
शिक्षक से अज्ञानता,अंधकार की होती हार है।’
राधाकृष्णन जी ने बिलकुल सत्य कहा था की समाज में फैली बुराइयों को हम शिक्षा के माध्यम से ही दूर सकते हैं जिसमे शिक्षक का बहुत महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। आज शिक्षक दिवस की सभी को हार्दिक बधाई और शुभ कामनाएँ।लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)।

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