बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था निजी अस्पतालों के भरोसे, सर्जरी के
बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था निजी अस्पतालों के भरोसे, सर्जरी के लिए भटकते मरीज
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाएं पटरी से उतर चुकी हैं। खास तौर से भौगोलिक विषमताओं वाले यहां के पर्वतीय क्षेत्रों में मातृ एवं शिशुओं की देखभाल के सरकारी इंतजाम अति दयनीय दशा में हैं। पहाड़ के दुर्गम क्षेत्रों के हालात और भी ज़्यादा खराब हैं। यहां के प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र स्वयं गंभीर रूप से बीमार हैं। इन केंद्रों मे पानी व बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं होने से ही अंदाजा लगाया जा सकता है यह केन्द्र किस तरह संचालित हो रहे होंगे। इन बीमार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों व अस्पतालों पर आश्रित रोगी सिर्फ भगवान भरोसे ही आते हैं। बहरहाल देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में खस्ताहाल स्वास्थ्य व्यवस्था एक तरफ जहां इस क्षेत्र के लचर प्रशासनिक व्यवस्था को दर्शाता है वहीं दूसरी ओर सरकार की उदासीनता पर भी सवाल खड़ा करता है। पूरे जिले में हृदय, बच्चों के डाक्टर एक या दो ही हैं। प्रदेश में बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल किसी से छिपा नहींहै. आलम यह है कि पहाड़ी जनपद तो दूर राजधानी देहरादून में भी सरकारी अस्पतालों के मरीजों को कई बीमारियों की सर्जरी करवाने के लिए प्राइवेट अस्पतालों के भरोसे रहना पड़ता है. हालत यह है कि कई एडवांस सर्जरी की सुविधा राज्य के अधिकतर जिलों में मौजूद ही नहीं है. ऐसे हालातों में लोगों के पास देहरादून या हल्द्वानी जाकर सर्जरी करवाना एकमात्र विकल्प रहता है. चिंता की बात यह है कि कई बीमारियों में तो सर्जरी को लेकर यहां के भी सरकारी अस्पताल असहाय दिखाई देते हैं उत्तराखंड में सर्जरी को लेकर सरकारी अस्पतालों में हालात कितने खराब हैं, इसका खुलासा हाल ही में कैग रिपोर्ट में सामने आया था. दून मेडिकल कॉलेज, अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज और श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में कुछ हद तक व्यवस्थाएं जुटाई गई हैं, लेकिन बाकी जिलों में कहीं पर सर्जन नहीं है तो कहीं पर इक्विपमेंट्स की कमी. जिससे सर्जरी के मरीजों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसी स्थिति में यहां के लोगों का जीवन किस प्रकार कठिनाइयों से गुज़रता होगा, इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। हाल ही में आई कैग रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई थी कि हरिद्वार, अल्मोड़ा, उधम सिंह नगर और चमोली जिले में जिला अस्पतालों में व्यवस्थाओं की भारी कमी है. कुछ जनपदों में हाईटेक आईसीयू तक की सुविधा भी नहीं है. वहीं, एक्स-रे मशीन और एंबुलेंस जैसी सामान्य सुविधाओं की भी कमी देखने को मिलती रहती है. यही नहीं पहाड़ी जनपदों में आपातकालीन सर्जरी के लिए अलग से ऑपरेशन थिएटर तक की व्यवस्था नहीं है. कुछ जगहों पर हाईटेक आईसीयू मौजूद नहीं है. तो कुछ जगहों पर योग्य कर्मी और उपकरण की कमी भी दिखाई देती है. राज्य में 13 जिलों में से महज तीन से चार जिलों में काम चलाऊ व्यवस्था पर अस्पताल चलाए जा रहे हैं. यही कारण है कि पहाड़ी जनपद उत्तरकाशी, टिहरी, चमोली और रुद्रप्रयाग से मरीजों को बड़ी सर्जरी के लिए देहरादून का रुख करना पड़ता है. उधर चंपावत, पिथौरागढ़, बागेश्वर जिलों से लोग हल्द्वानी जाकर सर्जरी कराने को मजबूर हैं. दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य कहते हैं कि मेडिकल कॉलेज में अधिकतर सर्जरी की व्यवस्थाएं मौजूद है, लेकिन इसके बावजूद भी राजधानी के सबसे बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेज में अभी कई सर्जरी नहीं हो पा रही है. स्वास्थ्य मंत्री ने को स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रदेश के लोक कल्याणकारी संकल्प विषय पर आयोजित ई-संवाद में यह बात कही है।उनका कहना है कि पांच सरकारी मेडिकल कालेजों हल्द्वानी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, रुद्रपुर व श्रीनगर में कार्य प्रारंभ हो रहा है। इनमें असिस्टेंट प्रोफेसर की 40 फीसद नियुक्ति की जा चुकी हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक जिला, ब्लाक तहसील स्तर के अस्पताल में पर्याप्त डाक्टर नर्स व अन्य स्टाफ कार्यरत हैं। अस्पतालों में सभी जांच और दवाइयां भी उपलब्ध कराई जा रही हैं। डाक्टरों को हिदायत दी गई है कि वे बाहर से दवा नहीं लिखेंगे। करीब सवा करोड़ की जनसंख्या वाले राज्य में तीन से चार सरकारी अस्पताल ही ऐसे हैं, जहां पर सर्जरी की कुछ व्यवस्थाएं मौजूद है. इसके चलते लोग निजी अस्पतालों में जाने को मजबूर हैं और यहां पर भारी रकम अदा कर अपनी सर्जरी करवाते हैं. राज्य निर्माण के 21 साल बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को जरूरी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। भीमताल विधानसभा क्षेत्र की मलुवाताल ग्राम सभा में यदि कोई बीमार हो जाता है तो 5 किलोमीटर खड़ी चढ़ाई के बाद जंगलियागांव के बूढ़ाधूरा तक चारपाई पर लाना पड़ता है। उसके बाद ही मरीज को अस्पताल पहुंचाया जाता है। सोमवार को राम सिंह गंगोला बीमार हुए तो उन्हें भी चारपाई में रखकर जंगलियागांव तक लाया गया। जहां से उन्हें हल्द्वानी अस्पताल ले जाया गया। गांव वालों का आरोप है कि कोई भी नेता उनकी सुध लेने को तैयार नहीं है। गांव में 300 वोटर हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जल्द सड़क नहीं बनी तो वे 2022 के विधानसभा चुनाव में बहिष्कार करेंगे। लोकसभा चुनावों का भी वे बहिष्कार कर चुके हैं। यही कारण है कि गांवों के लोग पहाड़ पर अपनी पैतृक ज़मीन और घर को छोड़कर नीचे मैदानी इलाकों में स्थाई रूप से बस चुके हैं। इससे तिब्बत (चीन) से लगा पूरा सीमांत इलाका बहुत तेजी से जनशून्य होता जा रहा है। यदि सरकार इस विशाल सीमा क्षेत्र में चिकित्सा, स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, संचार की अच्छी सेवाएं उपलब्ध नहीं कराती तो यह आगे चलकर निश्चित ही देश की सुरक्षा के लिए बहुत हानिकारक साबित हो सकता है।
लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर का अनुभव प्राप्त हैं, वर्तमान में दून विश्वविद्यालय है.