माघ मास की शुक्ल पक्ष अष्टमी को कहते है भीष्म अष्टमी- पंडित प्रकाश जोशी
भीष्म अष्टमी पर्व पर विशेष माघ मास की शुक्ल पक्ष अष्टमी को भीष्म अष्टमी कहते हैं, इस तिथि पर व्रत करने का विशेष महत्व है, इसबार यह व्रत 19 फरवरी को पड़ा था, शास्त्रों के अनुसार इसदिन भीष्म पितामह ने सूर्य उत्तरायण होने पर अपने प्राण त्यागे थे, इस दिन प्रत्येक हिन्दुओं को भीष्म पितामह के निमित्त कुश तिल व जल लेकर तृपण करना चाहिए, मान्यता है कि इसदिन व्रत करने से सु संस्कारी संतान की प्राप्ति होती है, किसी जातक कुन्डली में यदि पितृ दोष है तो उसके निवारण के लिए भी उत्तम माना जाता है, भीष्म पितामह के संबंध में एक कथा है भीष्म पितामह का असली नाम देवव्रत था हस्तिनापुर के राजा शांतनु की पटरानी गंगा के कोख से उत्पन्न हुवे थे, एक समय की बात है राजा शांतनु शिकार खेलते खेलते गंगा तट के पार चले गए वहाँ से लौटते समय उनकी बैंक हरिदास केवट की पुत्री सत्य वती से हुई सत्यवती बहुत ही रुपवान थी, उसे देख कर शांतनु उसके लावण्य पर मोहित हो गया, राजा शांतनु हरिदास के पास जाकर उस का हाथ मांगते है, परन्तु वह राजा के प्रस्ताव को ठुकरा देते हैं, और कहते हैं कि महाराज आप का जेष्ठ पुत्र देवव्रत है जो आपके राज्य का उत्तराधिकारी है यदि आप मेरी कन्या के पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा करते हैं तो मैं सत्यवती का हाथ आपके हाथ देने को तैयार हूँ, परन्तु राजा शांतनु इस बात को मानने से इनकार कर देते हैं, ऐसे ही कुछ समय बीत जाता है, लेकिन सत्यवती को न भुला सके और दिनरात उसकी याद में व्याकुल रहने लगे, यह सब देख कर एक दिन देवव्रत ने अपने पिता से व्याकुल ता का कारण पूछा सारा व्रतान्त सुनने पर देवव्रत स्वयं केवट हरिदास के पास जाकर उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए गंगाजल हाथ में लेकर शपथ ली कि मैं आजीवन अविवाहित ही रहुंगा देवव्रत की इस कठिन प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पितामह पडा, तब शांतनु ने प्रसन्न होकर अपने पुत्र को इच्छित म्रत्यु का वरदान दिया, महाभारत के युद्ध की समाप्ति पर जब सूर्य देव दक्षिणायन से उत्तरायण हुए तब भीष्म पितामह ने अपने प्राणों का त्याग किया, इसलिए माघ शुक्ल अष्टमी को उनका निर्वाण दिवस मनाया जाता है, लेखक पंडित प्रकाश जोशी