ब्रह्म, इन्द्र योग सहित बुधादित्य योग में मनाई जाएगी इस बार गुरु पूर्णिमा या वेदव्यास जन्मोत्सव
गुरु का स्थान भगवान से भी बड़ा माना जाता है। गुरु पूर्णिमा के शाब्दिक अर्थ से ही पता लगता है कि आज के दिन गुरुजनों का आदर और सम्मान कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। आषाढ़ पूर्णिमा के दिन वेदों के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। इसीलिए इसे गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। हमारे हिंदू धर्म में अनेक कवियों ने भी गुरु की महिमा गाई है।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।।
कबीर दास जी ने गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि यदि गुरु और भगवान एक साथ खड़े हो तो सर्वप्रथम कौन पूजनीय है? क्योंकि गुरु ने भगवान तक पहुंचने का मार्गदर्शन किया है अतः गुरु भगवान से भी बढ़कर हैं। यहां तक कि कवि ने कहा है कि-
सब धरती कागज करूं लेखनी सब वनराई।
सात समुद्र की मसि करूं गुरु गुण लिखा न जाए।।
अर्थात सारी पृथ्वी के बराबर कागज हो तथा सारी धरती में जितने भी पेड़ हैं उन सब की यदि लेखनी अर्थात कलम बनाई जाए और सात समुद्रों की स्याही बनाई जाए इसके बावजूद भी गुरु की महिमा को लिखना कम पड़ता है। वेदों का ज्ञान देने वाले और पुराणों के रचनाकार महर्षि वेदव्यास जी का जन्मदिन आषाढ़ पूर्णमासी को हुआ था। मानव जाति के कल्याण और ज्ञान के लिए महर्षि वेदव्यास जी का योगदान को देखते हुए उनके जन्मोत्सव को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुजनों की पूजा की जाती है। जीवन को एक नई दिशा देने के लिए उनका आभार प्रकट करते हैं और उनके स्वस्थ एवं सुखद जीवन की कामना करते हैं। मेरा सभी पाठकों से विनम्र निवेदन है कि इस गुरु पूर्णिमा पर आप भी अपने गुरुजनों को शुभकामनाएं एवं बधाई संदेश भेजकर उनका आशीर्वाद ले सकते हैं। और आभार प्रकट कर सकते हैं।साथ ही साथ भावी पीढ़ी के बच्चों, अपने बच्चों को भी ऐसा ही करने की शिक्षा देनी चाहिए अर्थात ऐसा ही करने को कहें।
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरु देवो महेश्वर: गुरु साक्षात परम ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
ध्यान मूलं गुरुर मूर्ति, पूजा मूलं गुरु पदम ।
मंत्र मूलं गुरुर वाक्यं, मोक्ष मूलं गुरुर कृपा ।।
अर्थात गुरु ही ब्रह्मा गुरु ही विष्णु गुरु ही शिव है गुरु ही साक्षात परब्रह्म है उन सद्गुरु को प्रणाम है। ध्यान का मूल गुरु की मूर्ति पूजा का मूल गुरु के चरण मंत्र का मूल गुरु का वाक्य और मोक्ष का मूल गुरु की कृपा है। सीधे शब्दों में कहें या गुरु की सही परिभाषा जानें तो –
अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को गुरु कहते हैं।
शुभ मुहूर्त-
इस बार दिनांक 2023 में दिनांक 3 जुलाई 2023 दिन सोमवार को गुरु पूर्णिमा या वेदव्यास जन्मोत्सव मनाया जाएगा। यदि पूर्णिमा तिथि की बात करें तो दिनांक 2 जुलाई 2023 को शाम 8:21 से पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होगी। अतः पूर्णमासी व्रत दिनांक 2 जुलाई 2023 दिन रविवार को ही होगा। दिनांक 3 जुलाई 2023 को पूर्णिमा तिथि 29 घड़ी 33 पल अर्थात शाम 5:08 बजे तक है। इस दिन मूल नक्षत्र 14 घड़ी 10 पल अर्थात प्रातः 10:59 बजे तक है तदोपरांत पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र उदय होगा। इस दिन भद्रा तीन घड़ी 40 पल अर्थात प्रातः 6: 47 बजे तक है।
यदि पूजा के मुहूर्त के बारे में जाने तो पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः 5:27 से लेकर प्रातः 7:12 तक है और उसके बाद फिर सुबह 8:56 से लेकर सुबह 10:41 तक रहेगा। दोपहर में 2:10 से लेकर दोपहर 3:54 तक शुभ समय है। सबसे महत्वपूर्ण इस दिन ब्रह्म योग इंद्र योग और बुध आदित्य राज योग का निर्माण होने जा रहा है।
विवेक, ज्ञान, लेखन शक्ति, मैनेजमेंट(व्यवस्था )के कारक ग्रह बुध का गोचर के दृष्टिकोण से परिवर्तन शुक्र की राशि वृषभ से अपनी राशि मिथुन में 23 जून 2023 दिन शुक्रवार को दोपहर 11:55 पर हुआ था मिथुन राशि में बुध 7 जुलाई 2023 तक विद्यमान रह कर अपना प्रभाव स्थापित करेंगे। मिथुन राशि में आदित्य अर्थात सूर्य देव एवं बुध के सहयोग से बुधादित्य योग बन रहा है।
व्यास पूर्णिमा की कथा_ गुरु पूर्णिमा मनाने के पीछे यह कारण है कि इस दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। गुरु पूर्णिमा से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अंश स्वरूप कला अवतार हैं। उनके पिता का नाम ऋषि पाराशर कथा माता का नाम सत्यवती था। उन्हें बाल्यकाल से ही अध्यात्म में अधिक रूचि थी। अतः उन्होंने अपने माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की। और वन में जाकर तपस्या करने की आज्ञा मांगी। परंतु माता सत्यवती ने वेदव्यास जी की इच्छा को ठुकरा दिया। तदुपरांत वेदव्यास के हट पर माता ने वन जाने की आज्ञा दे दी और कहा कि जब घर का स्मरण आए तो लौट आना। इसके बाद वेदव्यास जी तपस्या हेतु वन चले गए और वन में जाकर उन्होंने कठिन तपस्या की। इस तपस्या के पुण्य प्रताप से वेदव्यास जी को संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल हुई। तत्पश्चात उन्होंने चारों वेदों का विस्तार किया और महाभारत अठारह पुराणों सहित ब्रह्म सूत्र की रचना की। महर्षि वेदव्यास जी को अमरता का वरदान प्राप्त है। अतः आज भी महर्षि वेदव्यास किसी न किसी रूप में हमारे बीच उपस्थित हैं। वेदव्यास जी को हम कृष्ण द्वैपायन के नाम से भी जानते हैं। अत: हिंदू धर्म में वेदव्यास जी को भगवान के रूप में पूजा जाता है। इस दिन वेदव्यास का जन्म होने के कारण इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन किए जाने वाले उपाय_ यदि किसी भी कार्य में सफलता का संदेह हो तो इस दिन भगवान श्री कृष्ण जी के सामने गाय के शुद्ध घी का दिया जला कर सच्चे मन से अपनी बात कह देने से बिगड़े हुए काम तुरंत बन जाते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में यदि छात्रों को शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई महसूस हो रही हो तो गुरु पूर्णिमा के दिन गीता का पाठ या गीता अध्याय के किसी भी पाठ को अवश्य पढ़ना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कैरियर में तरक्की के लिए गुरु पूर्णिमा के दिन जरूरतमंद व्यक्ति को पीली वस्तुओं जैसे चना दाल वेसन पीले वस्त्र पीली मिठाई गुड़ या पुखराज रत्न आदि चीजों का दान करना चाहिए। गुरु पूर्णिमा के भगवान कृष्ण का विधि विधान से पूजन करके गौ माता की सेवा करनी चाहिए। इस उपाय से भी विद्यार्थियों की परेशानियां दूर हो जाती हैं। इन सबसे महत्वपूर्ण कुंडली में यदि गुरु दोष है तो बृहस्पति मंत्र ‘ॐ ब्रं बृहस्पतऐ नमः ‘ मंत्र का जप अपनी श्रद्धा के अनुसार 11 ,21 ,51 या 108 बार गुरु पूर्णिमा के दिन अवश्य करना चाहिए।
🖊️ पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।