विख्यात पर्यावरणविद पद्मभूषण हिमालय के रक्षक’ सुंदरलाल बहुगुणा का निधन
विख्यात पर्यावरणविद पद्मभूषण हिमालय के रक्षक’ सुंदरलाल बहुगुणा का निधन
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड
ऐतिहासिक पुरानी टिहरी से 12 किमी दूरी पर भागीरथी नदी के पास थौलधार ब्लॉक के मरोड़ा गांव में 9 फरवरी 1927 को हुआ था। उनके पिता अम्बादत्त बहुगुणा टिहरी रियासत के वनाधिकारी थे। महज13 साल की उम्र में अमर शहीद श्रीदेव सुमन के संपर्क में आने के बाद उनके जीवन की दिशा ही बदल गई। सुमन से प्रेरित होकर वह बाल्यावस्था में ही आजादी के आंदोलन में कूद गए थे। उन्होंने टिहरी रियासत के खिलाफ भी आंदोलन चलाया।कुशाग्र बुद्वि के धनी सुंदरलाल की शिक्षा-दीक्षा राजकीय प्रताप इंटर कालेज टिहरी से लेकर लाहौर तक हुई। 1947 में लाहौर से बीए ऑनसज़् की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर टिहरी लौटने पर वह टिहरी रियासत के खिलाफ बने प्रजा मंडल में सक्रिय हो गए। 14 जनवरी 1948 को राजशाही का तख्ता पलट होने के बाद वह प्रजामंडल की सरकार में प्रचार मंत्री बने। जन संघर्ष के हितैषी बहुगुणा ने 1981 में पेड़ों के कटान पर रोक लगाने की मांग को लेकर पदमश्री लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने शराब बंदी, पर्यावरण संरक्षण और टिहरी बांध के विरोध में 1986 में टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन शुरू कर 74 दिन तक भूख हड़ताल की। पर्यावरण संरक्षण के लिए आंदोलन चलाने पर बहुगुणा को संयुक्त राष्ट्र संघ में बोलने का मौका मिला। जीवन भर समाज हित के लिए लडऩे वाले सुंदरलाल बहुगुणा को कई पुरस्कारों से नजावा गया। हालांकि 1981 में जंगलों के कटान पर रोक लगाने की मांग को लेकर उन्होंने पदमश्री पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था। उसके बाद केंद्र सरकार समुद्रतल से 1000 मीटर से ऊंचाई वाले इलाकों में वृक्ष कटान पर पूरी तरह से रोक लगा दी।जिससे उत्तराखंड के पर्यावरण को लाभ मिला। बहुगुणा ने पर्यावरण संरक्षण के लिए जनमानस को जागरुक करने के लिए उत्तराखंड को पैदल नापकर कश्मीर से कोहिमा तक और गंगा संरक्षण के लिए गोमुख से गंगा सागर तक साइकिल यात्रा भी निकाली। बहुगुणा के समाज हित और पर्यावरण संरक्षण के लिए चलाए गए आंदोलन से प्रेरित होकर बीबीसी ने उन पर ‘एक्सिंग द हिमालय’ फिल्म भी बनाई। जीवन में समाज और पर्यावरण हित के लिए संघर्ष करने वाले बहुगुणा को कई पुरस्कार से नवाजा गया। वर्ष1981 पद्मश्री ( इसे बहुगुणा ने नहीं लिया)वर्ष 1986 जमनालाल बजाज पुरस्कार
वर्ष1987 राइट लाइवलीहुड अवार्डवर्ष1989 आईआईटी रुड़की द्वारा डीएससी की मानद उपाधिवर्ष 2009 पद्मविभूषण इसके अलावा राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, शेरे कश्मीर अवार्ड समेत दजज़्नों अन्य छोटे बड़े पुरस्कार भी इन्हें दिए गए। विश्वभारती विवि शांतिनिकेतन ने भी इन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की।बहुगुणा को केंद्र सरकार ने वनों के प्रति जागरूकता जगाने के लिए वर्ष 1981 में पद्मश्री देने की घोषणा की लेकिन उन्होंने उसे विनम्रता पूवर्क यह कहते हुए लेने से इनकार कर दिया कि जब तक वृक्षों की कटाई पर रोक नहीं लगती इसे लेने का कोई औचित्य नहीं है। बाद में केंद्र सरकार ने समुद्रतल से 1000 मीटर से ऊंचाई वाले इलाकों में वृक्ष कटान पर पूरी तरह से रोक लगा दी। नौ जनवरी, 1927 को टिहरी जिले में जन्मे बहुगुणा को चिपको आंदोलन का प्रणेता माना जाता है । उन्होंने सत्तर के दशक में गौरा देवी तथा कई अन्य लोगों के साथ मिलकर जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी ।पद्मविभूषण तथा कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण का भी बढ़-चढ़ कर विरोध किया और 84 दिन लंबा अनशन भी रखा था । एक बार उन्होंने विरोध स्वरूप अपना सिर भी मुंडवा लिया था. टिहरी बांध के निर्माण के आखिरी चरण तक उनका विरोध जारी रहा । 1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की 5,000 किलोमीटर की यात्रा की. यात्रा के दौरान उन्होंने बहुत से गांव का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया. उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और उनसे 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने की अपील की थी. उनकी इस कोशिश पर पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दी गई थी.सुंदर लाल बहुगुणा ने टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की. तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव के शासनकाल के दौरान उन्होंने डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी. सालों तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बाद 2004 में बांध पर फिर से काम शुरू किया गया. उनका अपना घर भी टिहरी बांध के जलाशय में डूब गया । टिहरी राजशाही का भी उन्होंने कडा विरोध किया जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पडा । वह हिमालय में होटलों के बनने और लक्जरी टूरिज्म के भी मुखर विरोधी थे। महात्मा गांधी के अनुयायी रहे बहुगुणा ने हिमालय और पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए कई बार पदयात्राएं कीं। पर्यावरण को बचाने के लिए प्रसिद्ध चिपको आंदोलन के नेता सुंदरलाल बहुगुणा का निधन हो गया। वे कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद ऋषिकेश एम्स में भर्ती थे। ऋषिकेश एम्स प्रशासन ने उनके निधन की पुष्टि की है। सुंदरलाल बहुगुणा 93 वर्ष के थे। कोरोना से संक्रमित होने के बाद उन्हें 8 मई को एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया था। ऑक्सीजन स्तर कम होने के कारण उनकी स्थिति गंभीर बनी हुई थी । चिकित्सकों की पूरी कोशिश के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका पर्यावरण संरक्षण के मैदान में श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी के कार्यों को इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा.
लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर का अनुभव प्राप्त हैं, वर्तमान में दून विश्वविद्यालय है.