प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश जी को देवताओं के बीच कैसे प्राप्त हुआ यह महत्वपूर्ण पद? आइए जानते हैं, पंडित प्रकाश जोशी से ?
बहुत महत्वपूर्ण है माघ संकष्टी चतुर्थी व्रत आज ही के दिन बनाया जाता है तिल का पहाड़। एवं आज की कथा के अनुसार ही भगवान गणेश जी दौड़ की प्रतिस्पर्धा में प्रथम आए थे। वैसे तो प्रतिमाह संकष्टी चतुर्थी आती है परंतु इन सब में माघ मास की संकष्टी चतुर्थी सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन माताएं अपने पुत्रों की रक्षा हेतु यह व्रत रखती हैं। संकष्टी चतुर्थी को तिलकुट चतुर्थी, संकटा चौथ, माघ संकष्टी आदि नामों से जाना जाता है यह व्रत प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश जी को समर्पित होता है।
मुख्य रूप से आज प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश जी के 12 नामों का ध्यान किया जाता है। ताकि भविष्य में आने वाली सभी कठिनाइयों से मुक्ति मिले सभी 12 महीने जीवन सुखमय रहे। प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश जी के बारह नाम निम्न प्रकार से हैं–
सुमुख एकदंत कपिल गजकर्णक लंबोदर विकट विघ्न नाशक विनायक धूम्रकेतु गणाअध्यक्ष भालचंद्र गजानन।
इन सबके अतिरिक्त इस दिन तिलकुट का पहाड़ बनाया जाता है।
पूजा विधि—माघ मास के संकष्टी चतुर्थी में प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर गणेश जी की पूजा कर भगवान को भोग लगाने के बाद कथा श्रवण की जाती है। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत का समापन किया जाता है। महिलाएं इस दिन शाम को चंद्रमा देखने पर अर्घ्य भी देती है और पूजा करती हैं। इस दौरान छोटा सा एक हवन कुंड भी तैयार किया जाता है। हवन कुंड की परिक्रमा करके महिलाएं चंद्र देव के दर्शन करती हैं। और अपनी संतान के लिए चंद्रदेव से आशीर्वाद मांगती हैं।
माघ संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा—-पद्म पुराण के अनुसार आज ही के दिन कार्तिकेय जी के साथ धरती की परिक्रमा लगाने की प्रतिस्पर्धा में भगवान गणेश जी पृथ्वी की परिक्रमा के बजाय भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती की सात बार परिक्रमा की थी। तब भगवान भोले शंकर से प्रसन्न होकर देवों में प्रमुख मानते हुए उनको प्रथम पूजा का अधिकार दिया था। इसी कथा के अंतर्गत तिल चौथ की कथा आती है वह इस प्रकार है—
एक शहर में देवरानी और जेठानी रहती थी। जेठानी अमीर थी और देवरानी गरीब थी। देवरानी गणेश जी की भक्त थी देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काटकर बेचता था और अक्सर बीमार रहता था। देवरानी जेठानी के घर का सारा काम करती थी बदले में जिठानी बचा हुआ खाना एवं पुराने कपड़े उसको देती थी। इसी में देवरानी का परिवार पल रहा था। एक बार माघ महीने में देवरानी ने तिल चौथ का व्रत किया। पांच आने का तिल और गुड लाकर तिलकुटा बनाया। पूजा करके तिल चौथ की कथा सुनी और तिलकुटा ठेके में रख दिया और सोचा कि चांद उदय होने पर पहले तिलकुटा और उसके बाद ही कुछ खाएगी कथा सुनकर वह जेठानी के यहां चली गई वहां खाना बनाकर जेठानी के बच्चों से खाना खाने को कहा तो बच्चे बोले मां ने व्रत किया है और मां भूखी है। जब मां खाना खाएगी तब हम भी खाएंगे और जब जेठ जी को खाना खाने को कहा तो जेठ जी बोले मैं अकेला नहीं खाऊंगा। जब चांद निकलेगा तब सभी खाएंगे जेठानी ने उससे कहा आज तो किसी ने खाना नहीं खाया है तुझे पहले कैसे दे दों। तुम कल सवेरे बचा हुआ खाना ले जाना ।
देवरानी के घर पर पति और बच्चे आस लगाए बैठे थे कि आज तो अच्छे पकवान आएंगे इसलिए कुछ पकवान आदि मीठे पकवान खाने को मिलेगा । परंतु जब बच्चों को पता चला आज तो रोटी भी नहीं मिलेगी तो बच्चे रोने लगे उसके पति को भी बहुत क्रोध आया और कहने लगा सारा दिन काम करके भी दो रोटी नहीं ला सकती तो काम क्यों करती हो? पति ने गुस्से में आकर पत्नी को कपड़े धोने के मोगरे से मारा। वह बेचारी गणेश जी को याद करती हुई रोते-रोते पानी पीकर सो गई। उस दिन गणेश जी देवरानी के सपने में आए और कहने लगे मोगरे मारे पाटे मारे सो रही है या जाग रही है? वह कहने लगी कुछ सो रही हूं कुछ जाग रही हूं। गणेश जी बोले -भूख लगी है कुछ खाने को दे दे। देवरानी बोली क्या दूं? मेरे घर में तो अन्न का एक दाना भी नहीं है। जेठानी बचा कुचा खाना देती थी आज वह भी नहीं मिला। पूजा का बचा हुआ तिलकुटा खींचे में पड़ा है वही खा लो। तिलकुटा खाने के बाद गणेश जी बोले मोगरे मारे पाटे मारे निताई लगी है कहां निपटें? तत्पश्चात गणेश बच्चे की तरह बोले अब कहां पोछों? नींद में मगन देवरानी को बहुत क्रोध आया बोली कब से परेशान किए जा रहे हो मेरे सर पर पोछो ।प्रातः जब देवरानी उठी तो हैरान रह गई उसका सारा घर हीरे मोती से जगमगा रहा था। सिर पर जहां विनायक जी पोछनी कर गए थे वहां हीरे मोती जगमगा रहे थे। उस दिन देवरानी जेठानी के यहां काम करने नहीं गई। बड़ी देर तक राह देखने के बाद जेठानी ने बच्चों को देवरानी को बुलाने भेजा। जेठानी ने सोचा कल खाना नहीं दिया शायद इसीलिए नाराज हो गई और बुरा मान गई है । बच्चे बुलाने गए और बोले चाची चलो मां ने बुलाया है सारा काम पड़ा है। देवरानी ने कहा अब यह सब करने की आवश्यकता नहीं है घर पर सब परिपूर्ण है गणेश जी की कृपा से। बच्चों ने घर जाकर बताया की चाची के यहां तो हीरे मोती जगमगा रहे हैं। जेठानी दौड़ती हुई देवरानी के यहां आई और पूछने लगी कि यह सब कैसे हुआ देवरानी ने सारी बातें बता दी।
घर आकर जेठानी भी अपने पति से बोली कि मुझे मोगरे और पाटे से मारो उसका पति बोला अरे भली मानस !तुम्हें क्या हो गया? मैंने तुम्हें कभी हाथ नहीं उठाया अब मोगरे और पाटे से कैसे मारूं? वह नहीं मानी और जिद करने लगी मजबूर होकर उसके पति को मोगरे और पाटे से मारना पड़ा। ढेर सारा घी से चूरमा बनाकर छींके में टांग दिया और सो गई। रात में गणेश जी सपने में आए और बोले भूख लगी है क्या खाऊं? जेठानी बोली हे गणेश भगवान! देवरानी के यहां तो आपने तिलकुटा खाया था मैंने तो शुद्ध घी का चूरमा बनाकर आपके लिए ठेके में रखा है। और मेवे भी रखे हैं जो चाहे खा लीजिए। बालस्वरूप गणेश जी बोले अब निपटें कहां? जेठानी बोली देवरानी के यहां तो टूटी फूटी झोपड़ी थी मेरे यहां तो कंचन के महल हैं जहां चाहो निपटें। भोजन के बाद गणेश जी ने कहा पोछों कहां? जेठानी बोली मेरे ललाट पर बड़ी सी बिंदी लगाकर पोंछ लो। धन की भूखी जेठानी सुबह सुबह जल्दी उठ गई सोचा घर हीरे जवाहरात से भर चुका होगा परंतु देखा तो पूरे घर पर गंदगी फैली हुई थी । उसने कहा हे गणेश जी महाराज! यह आपने क्या कर दिया? मुझसे रूठे और देवरानी पर टूटे। जेठानी ने घर की बहुत सफाई करनी चाही परंतु गंदगी और ज्यादा फैलती गई। जेठानी के पति को मालूम चला तो वह भी बहुत क्रोधित हुआ और बोला तेरे पास इतना सब कुछ था फिर भी तेरा मन नहीं भरा। परेशान होकर चौथ के गणेश जी से मदद की विनती करने लगी। गणेश जी ने कहा देवरानी से जलन के कारण तूने जो यह सब किया यह उसी का परिणाम है। अब तू अपने धन में से आधा आधा करके आधा धनदेव रानी को देगी तब यह साफ होगा। उसने आधा धन उसे बांट दिया किंतु मोहरों की एक हांड्डी चूल्हे के नीचे गाड रखी थी सोचा यहां किसे पता चल रहा है। और उसने उस धन को नहीं बांटा उसने कहा हे गणेश जी! अब तो अपना यह बिखराव समेटो। गणेश जी बोले पहले चूल्हे के नीचे गढ़ी हुई मोहरों की हड्डी सहित ताक में रखी हुई दो सुई के दो दो हिस्से कर। इस प्रकार गजानन के बालस्वरूप में आकर सुई जैसी छोटी वस्तु का भी बंटवारा किया और अपनी माया समेटी।
हे गणेश जी महाराज! जैसी आपने देवरानी पर कृपा की वैसे सब पर करना। कथा पढ़ने वाले पर ,कथा लिखने वाले पर ,कथा सुनने वाले पर, और गणेश जी की जय कारा लगाने वाले पर ,सब पर अपनी कृपा बरसाना परंतु जेठानी को जैसी सजा दी वैसी किसी को मत देना। तो बोलिए गजानन महाराज की जय।
शुभ मुहूर्त—इस बार माघ संकष्टि चतुर्थी व्रत दिनांक 10 जनवरी 2023 दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। इस दिन यदि चतुर्थी तिथि की बात करें तो चतुर्थी तिथि 12 घड़ी 25 पल अर्थात दोपहर 12:09 बजे से प्रारंभ होगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन अश्लेषा नामक नक्षत्र चार घड़ी 27 पल अर्थात प्रातः 8:58 बजे तक है तदुपरांत मघा नामक नक्षत्र उदय होगा। यदि योग की बात करें तो इस दिन प्रीति नामक योग 10 घड़ी 10 पल अर्थात दिन में 11:15 बजे तक है। यदि करण की बात करें तो इस दिन विष्टि नामक करण 12 घड़ी 25 पल अर्थात दोपहर 12:09 बजे तक है इस दिन पौष मास की 26 गते है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन चंद्रमा की स्थिति जाने तो इस दिन चंद्रदेव प्रातः 8:58 बजे तक कर्क राशि में रहेंगे तदुपरांत चंद्रदेव सिंह राशि में प्रवेश करेंगे।