मन चंगा तो कठौती में गंगा अर्थात यदि आपका मन पवित्र है तो साक्षात ईश्वर आपके हृदय में करते हैं वास
मन चंगा तो कठौती में गंगा अर्थात यदि आपका मन पवित्र है तो साक्षात ईश्वर आपके हृदय में वास करते हैं।,,,,,,,,,,,
यह कथन है संत रविदास जी का। सभी पाठकों को संत रविदास जयंती की हार्दिक बधाई। हिंदू पंचांग के अनुसार संत रविदास जी का जन्म सन 1377 ईस्वी में माघ मास की पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस बार सन् 2022 में संत रविदास जयंती या रैदास जयंती दिनांक 16 फरवरी 2022 दिन बुधवार को मनाई जाएगी हालांकि पूर्णिमा तिथि 15 फरवरी को रात 9:42 से शुरू होकर 16 फरवरी 2022 को रात 1:25 पर समाप्त हो रही है। हालांकि उनके जन्म से जुड़ी ज्यादा जानकारी इतिहास में मौजूद नहीं है। कुछ साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर संत रविदास जी का जन्म सन 1377 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोवर्धन पुर गांव में हुआ था। वही दूसरी ओर उनके जन्म को लेकर कई विद्वानों का मत है कि उनका जन्म सन 1482 से सन 1527 के बीच हुआ था। संत रैदास जी के पिता संतोष दास जूते बनाने का काम करते थे। और उनकी माता कलसा देवी एक ग्रहणी की। यह भी माना जाता है कि संत रैदास जी ने कबीर जी के कहने पर स्वामी रामानंद जी को अपना आध्यात्मिक गुरु बनाया था। संत रैदास जी बचपन से ही साधु-संतों के बीच रहते थे और आध्यात्मिक के प्रति उनका अधिक झुकाव था। यही कारण है कि उनके अंदर अधिक भक्ति भावना जागृत हो गई। ईश्वर के प्रति अपने असीम प्यार और अपने चाहने वाले अनुयाई सामुदायिक और सामाजिक लोगों में सुधार के लिए अपने महान लेखन और कविता के जरिए संत रैदास जी ने विविध प्रकार की आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिए। रैदास जी लोगों की नजर में उनकी सामाजिक और आध्यात्मिक जरूरतों को पूरा करने वाले मसीहा के रूप में थे। आध्यात्मिक रूप से समृद्धि रैदास जी को लोगों द्वारा पूजा जाता था। प्रत्येक दिन रात रविदास जी के जन्म दिवस के अवसर पर तथा किसी धार्मिक कार्यक्रम के उत्सव पर लोग उनके महान गीत और कविताओं को सुनते या पढ़ते हैं। भारतवर्ष ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में संत रैदास जी को प्यार और सम्मान दिया जाता है। हालांकि उन्हें सबसे अधिक सम्मान उत्तर प्रदेश पंजाब और महाराष्ट्र में अपने भक्ति आंदोलन और धार्मिक गीतों के लिए मिलता था। संपूर्ण भारत में खुशी और बड़े उत्साह के साथ माघ महीने के पूर्ण चंद्रमा दिन पर अर्थात माघ पूर्णिमा पर प्रत्येक वर्ष संत रविदास जी की जयंती अथवा जन्मोत्सव मनाया जाता है जबकि वाराणसी में लोग इसे उत्सव या त्योहार की तरह मनाते हैं। इस मुख्य पर्व के दिन आरती आदि कार्यक्रम के दौरान मंत्रों के रागों के साथ एक नगर कीर्तन जुलूस निकालने की प्रथा है। जिसमें गीत संगीत गाना और दोहा दी मंदिरों में गाए जाते हैं संत रैदास के अनुयाई और भक्त उनके जन्मदिवस पर गंगा स्नान करने भी जाते हैं तथा घर या मंदिर में बनी छवि की पूजा अर्चना करते हैं। इस पर्व को प्रतीक बनाने के लिए वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर के श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर के बेहद प्रसिद्ध स्थान पर प्रतिवर्ष वाराणसी में लोग इसे भव्य तरीके से मनाते हैं। संत रैदास जी के भक्त और दूसरे अन्य लोग संपूर्ण विश्व से इस उत्सव में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए वाराणसी आते हैं। एक महत्वपूर्ण मूल मंत्र रैदास जी के इस दोहे से मिलता है जो निम्न प्रकार है।
रैदास कहे जाके हदै, रहे रैन दिन राम ।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम ।।
अर्थात रैदास जी कहते हैं कि जिस ह्रदय में दिन-रात राम का नाम का वास रहता है ऐसा भक्त स्वयं राम के समान होता है राम नाम की ऐसी माया है कि इसे दिन-रात जपने वाले साधक को न तो क्रोध आता है और नहीं कभी काम भावना उस पर हावी होती है। यह एक मूल मंत्र है। मन चंगा तो कठौती में गंगा। यदि आपका मन पवित्र है तो साक्षात ईश्वर आपके हृदय में वास करते हैं इसलिए संत रैदास जी कहते हैं कि-
हरि सा हीरा छांडकै, करै आन की आस ।
ते नर जमपुर जागिहै,सतभाषै रविदास ।।
लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल,