उत्तराखंड राज्य में महिला सशक्तिकरण का प्रतीक थी मूर्धन्य नेता एवं संसदीय विधा की मर्मज्ञ डॉ० इंदिरा हृदयेश
प्रो० एन०के० जोशी
कुलपति, कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और नेता प्रतिपक्ष डॉ० इंदिरा हृदयेश के इस दुनिया को अलविदा कह देने से उत्तराखंड की राजनीति को को एक बहुत बड़ा झटका लगा है। उत्तराखण्ड की राजनीति के वर्तमान दौर में वह एक अकेली महिला नेता थी, जिन्होंने अपनी राजनैतिक जमीन के दम पर अपना एक मुकाम बनाया था। मूर्धन्य नेता, संसदीय विधा की मर्मज्ञ एवं संघर्षरत शिक्षकों की आवाज डॉ० इंदिरा हृदयेश के असमय चले जाने से राज्य की राजनीति में जो खालीपन आया है, उसे भर पाना निकट भविष्य में असम्भव है।
1941 में कुमायूं के ब्राह्मण परिवार में जन्मी स्वर्गीय हृदयेश उत्तर प्रदेश विधान परिषद में लगातार मेंबर रही एवं जब 2000 में यूपी से अलग होकर उत्तरांचल (बाद में उत्तराखंड) राज्य बना, तब वह विपक्ष की नेता रही। 2002 चुनाव में वो हल्द्वानी से चुनकर जब विधानसभा में पहुंचीं तो लोक निर्माण विभाग मंत्री के तौर पर उन्होंने एक अलग पहचान छोड़ी। पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा और नारायण दत्त तिवारी के दौर में राजनीति को जीने वाली डॉ० इंदिरा हृदयेश का व्यक्तित्व ऐसा था कि संसदीय मामलों में विपक्ष के नेता भी उनसे सलाह लिया करते थे।
मैं समझता हूँ कि सदियों से महिला का अर्थ ‘कमजोर और अबला’ मान लिया गया है। किंतु इसे तोड़कर जब कुछ महिलाएं अपनी कर्मठ शक्ति और साहस का परिचय देती हैं तो यह न सिर्फ अन्य महिलाओं के लिए वरन् हर महिला-पुरुष के लिए प्रेरणादायी होता है। साथ ही महिलाओं को कमजोर बताने वाले समाज की सभी सोच को गलत बताते हुए साबित करती है कि महिला नाम अबला का नहीं वास्तविक शक्ति का है लेकिन जरूरत होती है उस शक्ति-स्वरूप को अपने अंदर पहचानने की। मातृशक्ति के अभूतपूर्व योगदान से बने उत्तराखंड राज्य की राजनीति व सरकार में डॉ० इंदिरा हृदयेश महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर रही थीं। उनका चले जाना इस राज्य के लिए अपूरणीय क्षति है।