बहुत महत्वपूर्ण है हिंदू नव वर्ष, कैसा रहेगा 12 राशियों के लिए यह वर्ष और नव संवत्सर में विशेष आइए जानते हैं
बहुत महत्वपूर्ण है हिंदू नव वर्ष। कैसा रहेगा 12 राशियों के लिए यह वर्ष आइए जानते हैं।,,,,,,,,सनातन धर्म पर आधारित सभी संस्कार हिंदू नव वर्ष के विक्रम संवत से ही किए जाते हैं। विक्रम संवत का आरंभ आज से 2079 वर्ष पूर्व यानी ईस्वी सन् से 57 वर्ष पूर्व हुआ था। वर्तमान में इस वर्ष विक्रम संवत 2079 है। अर्थात विक्रम संवत 57 वर्ष ईसा पूर्व माना जाता है। आंग्ल वर्ष के जिस वर्ष का विक्रम संवत ज्ञात करना हो उस वर्ष के ईसवी सन मैं 57 जोड़ने से विक्रम संवत प्राप्त होगा। उदाहरणार्थ इस वर्ष सन् 2022 में 57 जोड़ने से 2079 हुआ । इसवी सन का आरंभ सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय से हुआ।
विक्रम संवत का पौराणिक महत्व, ,,,,,,,, पुराणों के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण किया था इसलिए इस पावन तिथि को नव संवत्सर अथवा नव वर्ष के रूप में भी मनाया जाता है शास्त्री मान्यता के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि के दिन प्रातः काल स्नानादि से शुद्ध होकर हाथ में गंध अक्षत पुष्प और जल लेकर ओम भूर्भुवः स्व: संवत्सर अधिपति आवाहयामि पूजयामि च इस मंत्र से नव संवत्सर की पूजा करनी चाहिए।
जिस प्रकार ईसाई नववर्ष हमारे देश में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है हिंदू नव वर्ष इससे और अधिक हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए। विक्रम संवत अत्यंत प्राचीन संवत है। साथ ही साथ यह गणित की दृष्टि से अत्यंत सुगम और सर्वथा ठीक हिसाब रखकर निश्चित किए गए हैं। यहां के महीनों के नाम देवता मनुष्य संख्यावाचक कृत्रिम नाम नहीं है। यही बात तिथि तथा अंश दिनांक के संबंध में भी है। सूर्य चंद्र की गति पर आश्रित है। महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं जैसे चैत्र चित्रा नक्षत्र पर, वैशाख- विशाखा, जेष्ठ- जेष्ठा, आषाढ पूर्वाषाढा, श्रावण श्रवण नक्षत्र पर आधारित हैं। इसी प्रकार भादो या भाद्रपद पूर्वाभाद्रपद अश्विनी आश्विन कार्तिक कृतिका मार्गशीर्ष माह मृगशिरा पौष मास पुष्य नक्षत्र पर आधारित है। माघ मघा नक्षत्र पर आधारित है तथा फाल्गुन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र पर आधारित है।
कैसे हुआ विक्रम संवत का प्रारंभ?, ,,,,,,,,,, ऐसा माना जाता है कि जब विक्रम संवत प्रारंभ नहीं हुआ था तब युधिष्ठिर संवत कलयुग संवत और सप्त ऋषि संवत प्रचलित थे। हमारे सनातन धर्म में सप्त ऋषि संवत का प्रारंभ 3076 ईसवी पूर्व हुआ था। जबकि कलयुग संवत की शुरुआत 3102 ईसवी पूर्व हुई थी। इसी दौरान युधिष्ठिर संवत भी प्रारंभ हुआ था। इन सभी संवत्सर का प्रारंभ चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन से ही हुआ था विक्रम संवत में वार नक्षत्र और तिथियों का स्पष्टीकरण किया गया। इसमें पंचांग की बातों के साथ ही बृहस्पति वर्ष की गणना को भी शामिल किया गया था।
विक्रम संवत का प्रारंभ कैसे हुआ आज पाठकों को इस संबंध में विशेष जानकारी देना चाहूंगा। न्याय प्रिय राजा विक्रमादित्य न्याय प्रिय और अपनी प्रजा के हित को ध्यान में रखने वाले शासक के रूप में जाना जाता था। विक्रमादित्य के समय में उज्जैन सहित भारत के एक बहुत बड़े भूभाग पर विदेशी शकों का शासन हुआ करता था। यह लोग अत्यंत क्रूर प्रवृत्ति के थे। यह अपनी प्रजा को सदैव कष्ट दिया करते थे। राजा विक्रमादित्य ने संपूर्ण भारतवर्ष को शकों के अत्याचारों वाले शासन से मुक्त करके अपना शासन स्थापित किया और जनता को भय मुक्त जीवन दिया इसी विजय की स्मृति के रूप में विक्रमादित्य ने विक्रम संवत पंचांग का निर्माण करवाया था इसके बाद 78 ईसवी में शक संवत का प्रारंभ हुआ। जिसे दुर्भाग्यवश आज भारत का राष्ट्रीय संवत माना जाता है।
नव संवत्सर विशेष, ,,,,,,,,,, नव विक्रम संवत दिनांक 2 अप्रैल 2022 से प्रारंभ होगा। यह संवत्सर नल नामक संवत्सर है। नल नामक संवत्सर में फसलों की मूल्य वृद्धि होती रहे। राजाओं में क्षोभ उत्पन्न होगा तथा तस्करों का डर बना रहेगा। चैत्र मास में रोग पीड़ा और प्रबल वायु का प्रकोप बना रहेगा। जेष्ठ मास में राजाओं में परस्पर विरोध बढ़ेंगे परंतु जनमानस सुखी रहेगा। आषाढ़ में संग्रह कार्य कार्तिक में विक्रय मार्गशीर्ष पौष एवं माघ मास में अन्न का भाव सम रहेगा तथा फाल्गुन मास में बच्चों में रोग एवं कष्ट तस्करों से डर पूर्व दिशा में दुर्भिक्ष और उत्तर भाग में प्रतिकूलता बनी रहेगी। अन्य मतानुसार प्राकृतिक एवं मानवीय आपदाओं तथा तस्करों के चलते संपूर्ण पृथ्वी में डर बना रहेगा। प्रतिस्पर्धा और आपसी बैर बढ़ेंगे। खाद्यान्न तथा सभी वस्तुओं के दामों में वृद्धि होगी और बच्चों में नए प्रकार के रोग बढ़ेंगे। इस वर्ष के राजा शनिदेव और मंत्री गुरुदेव हैं। शनि देव के पास सस्येश निरसेश( सूखे फल मेवा) और धनेश( वित्त विभाग) हैं। रक्षा विभाग उद्यान एवं फल विभाग एवं वर्षा प्रबंधन बुध ग्रह के पास है। रस पदार्थ चंद्रदेव के पास और धान्य शुक्र देव के अधीन है। शुभ ग्रहों के वर्चस्व होने की वजह से अशुभ ग्रहों का प्रभाव कम अवश्य होगा। नीति निर्धारण की प्रक्रिया का प्रारंभिक स्तर पर ही विरोध कर उसे दबाने का प्रयास किया जाएगा। परंतु संभव नहीं हो सकेगा। शत्रुओं द्वारा सीमा पर अतिक्रमण का प्रयास असफल होगा। छोटे बच्चों को नए नए प्रकार के रोग होने की संभावना है। निवेशक व्यापारियों तथा कृषकों को आर्थिक कष्ट होगा। दैविक और मानवीय कष्ट बढ़ेंगे। वर्ष एवं वर्सेस लग्नअनुसार मानवीय और देविक आपदाएं शत्रुओं द्वारा सीमा पर उत्पात तथा दुर्घटनाएं मनुष्य को व्यथित करेंगी । वर्ष के छठे आठवें और बारहवें मास में अर्थात भादो कार्तिक और फाल्गुन मास में कष्ट तथा शेष वर्ष शुभ फल पर रहेगा।
कैसा रहेगा 12 राशियों के लिए वर्ष आइए जानते हैं।
मेष- मेष राशि वालों के लिए वर्ष में कई प्रकार की चुनौतियां आएंगी जिससे घर परिवार के साथ सामंजस्य बनाकर चलने से लाभ होगा। चल अचल संपत्ति से लाभ मार्ग प्रशस्त होंगे। धना गम के नए स्रोत उपलब्ध होंगे। परंतु मान अपमान की स्थितियां भी स्थान लेंगी। मानसिक और शारीरिक कष्ट प्रभावी रहेगा। तीसरे छठे तथा 11 वे मास में शुभ फल अपेक्षित। गुरु राहु तथा केतु के जप दान तथा शिव आराधना से अशुभ फलों में न्यूनता आएगी।
2 वृषभ- वृषभ राशि को वर्ष में मिलाजुला फल प्राप्त होगा। घर में मांगलिक कार्य होने से उत्साह में वृद्धि होगी। न्यायालय में मामले लंबित रहेंगे। विद्यार्थियों के लिए वर्ष अच्छा रहेगा। संतान की तरफ से शुभ समाचार मिलेंगे। सुख संसाधनों में वृद्धि होगी। चौथे सातवें और बारहवें मास में महत्वपूर्ण कार्य सिद्ध होंगे। शनि और राहु के जप दान एवं हनुमान जी की आराधना करने से अशुभ फलों का निराकरण संभव होगा।
3 मिथुन– मिथुन राशि वालों का उत्तरार्ध अच्छा फलदाई रहेगा उत्तरार्ध अर्थात अंत का आधा वर्ष अच्छा फलदाई रहेगा। संघर्ष करने के पश्चात कार्य सिद्धि मिलेगी। जमीन जायदाद के लिए समय अनुकूल रहेगा। पदोन्नति तथा स्थान परिवर्तन से लाभ होगा। रुके हुए धन की प्राप्ति और नए कार्य क्षेत्र में विस्तार शुभ रहेगा। संतान की तरफ से चिंता बनी रहेगी। पहले पांचवऐ और आठवीं मांस शुभ फलदाई रहेंगे। गुरु शनि राहु और केतु का जप दान करने तथा शिव एवं हनुमान जी की उपासना करने से अशुभ फलों का निराकरण होगा।
4 कर्क — कर्क राशि वालों को वर्षभर शनि प्रभावित करता रहेगा। धना गम में अवरोध बनेंगे। इस समय अचल संपत्ति में निवेश करना श्रेयस्कर रहेगा। शारीरिक और मानसिक कष्ट प्रभावित करेंगे। माता-पिता से दूरियां बढ़ेगी। तीर्थ यात्रा करने और घर में मांगलिक कार्य होने से नैतिक बल मिलेगा। दूसरे छठे और नवे मास में महत्वपूर्ण कार्य सिद्ध करें। शनि राहु और केतु का जप दान तथा हनुमान जी की आराधना करने से अशुभ फलों में न्यूनता,
5 सिंह– सिंह राशि वालों का वर्ष शुभ फल कारक रहेगा। रुके हुए धन की प्राप्ति होगी। सुख सुविधाओं में वृद्धि मानहानि तथा अकारण दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। बंधु बांधव का सहयोग निरंतर मिलता रहेगा। संतान से शुभ समाचार मिलेंगे। दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा। तीसरे सातवें और दसवें मास में आशातीत सफलता मिलेगी। शनि तथा राहु का जप दान एवं हनुमान जी की आराधना करने से अशुभ फलों का निराकरण संभव है।
6 कन्या– कन्या राशि वालों का यह वर्ष मिश्रित फलदायक रहेगा। भौतिक सुख संसाधनों में वृद्धि होगी। राज कार्य अथवा व्यवसाय में उन्नति तथा यश प्राप्ति होगी। पारिवारिक मतभेद बढ़ेंगे। दुर्घटना अथवा रोग व्याधियों प्रभावित करेंगी। शत्रु बाधा तथा प्रतिस्पर्धी बढ़ेंगे। चौथे आठवें और 11 मासों में शुभ फलों की प्राप्ति होगी। राहु केतु के जप दान और हनुमान जी की आराधना करने से अशुभ फलों में कमी आएगी।
7 तुला– तुला राशि वालों को वर्ष में अनावश्यक भ्रमण करना पड़ सकता है। मित्रों और बंधु बांधवों से धोखाधड़ी अथवा आर्थिक कष्ट संभव है। निरर्थक वाद-विवाद से बचें। नए व्यवसाय अथवा कार्य में पराक्रम करने से आशातीत सफलता मिलेगी। पांचवे नवे और 12 वे मास शुभ फल दायक रहेंगे। गुरु शनि राहु और केतु के दुष्प्रभाव में कमी लाने के लिए उनका जप दान तथा शिवार्चन एवं हनुमान जी की आराधना करना श्रेष्ठ कर रहेगा।
8 वृश्चिक– वृश्चिक राशि वालों का वर्ष शनि से प्रभावित रहेगा। माता-पिता से दूरी अथवा उदासीनता बनी रहेगी। न्यायालय की शरण में जाना पड़ सकता है। इसलिए सावधानी बरतें रहे। चल अचल संपत्ति में निवेश करना अच्छा रहेगा। शत्रु अथवा प्रतिद्वंदी प्रभावी रहेंगे। संतान की तरफ से शुभ समाचार मिलेंगे। पहले छठे एवं दसवें मास शुभ रहेंगे। शनि एवं केतु के जाप दान एवं शिव आराधना से अशुभ फलों का निराकरण होगा।
9 धनु– धनु राशि वाले शनि की साढ़ेसाती के अंतिम पड़ाव में हैं। धना गम की दृष्टि से वर्ष शुभ फल दायक है। रुके हुए कार्य सिद्ध होने लगेंगे। भूमि अथवा भवन में निवेश करना अच्छा रहेगा। संतान के लिए किए गए सभी प्रयास सफल होंगे। स्वास्थ्य के लिए सचेत रहने की आवश्यकता है। दूसरे सातवें और 11वए मास में महत्वपूर्ण कार्य सिद्ध करें। गुरु एवं राहु के जप दान और हनुमान जी की आराधना से अशुभ फलों में न्यूनता।
10 मकर– मकर राशि वाले शनि की साढ़ेसाती के प्रभाव से प्रभावित रहेंगे। शारीरिक मानसिक एवं आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। नई-नई कार्य योजनाओं में धन व्यय होगा। अचल संपत्ति में निवेश करना श्रेयस्कर है। बंधु बंधुओं से संबंध सामान्य रहेंगे। तीसरे आठवें और बारहवें मास शुभ रहेंगे। गुरु शनि राहु तथा केतु के अशुभ फलों के निराकरण हेतु जप दान एवं शिव और हनुमान जी की आराधना करना शुभ रहेगा।
11 कुम्भ– कुंभ राशि वालों में शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव पूर्ण रूप से रहेगा। दुर्घटना एवं स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। संघर्ष एवं परिश्रम अधिक करना पड़ेगा। जिससे कभी कभार मानसिक तनाव भी बढ़ सकता है। स्थानांतरण के योग बन रहे हैं। प्रिय जनों के वियोग में मन व्यथित रहेगा। पहले चौथे तथा नवे मास में महत्वपूर्ण कार्य सिद्ध करने की चेष्टा करें। गुरु शनि राहु एवं केतु के अशुभ फलों का प्रभाव कम करने हेतु जब दान एवं शिव आराधना शुभ रहेगी।
12 मीन– मीन राशि वालों का वर्ष शनि के प्रभाव में रहेगा। स्वास्थ्य की दृष्टि से वर्ष अनुकूल फलदाई होगा। किसी परिजन के वियोग का सामना करना पड़ सकता है। चल अचल संपत्ति में निवेश करना अच्छा रहेगा। संतान की तरफ से शुभ समाचार मिलेगा। दूसरे पांचवें और दसवे मास शुभ रहेंगे। गुरु शनि राहु एवं केतु के अशुभ फलों की न्यूनता के लिए जप दान एवं हनुमान जी की उपासना करना श्रेष्ठ कर रहेगा।
इसके अतिरिक्त पाठकों को एक महत्वपूर्ण बात बताना चाहूंगा कि संवत्सर के बारे में जानकारी एवं अपनी राशियों के बारे में जानकारियां किसी मंदिर में अथवा घर में पंडित जी के श्री मुख से श्रवण करने से लाभ प्राप्त होता है। इन नवरात्रों में पंडित जी के श्री मुख से संवत्सर का नाम श्रवण करना ही महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा करने से अशुभ फलों का निवारण होता है।