नरसिंह चतुर्दशी भगवान और भक्त के बीच पवित्र रिश्ते को दर्शाता है
नरसिंह चतुर्दशी पर विशेष,,, नरसिंह चतुर्दशी भगवान और भक्त के बीच पवित्र रिश्ते को दर्शाता है, भगवान विष्णु जी के चौथे अवतार नरसिंह चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है, नरसिंह का अर्थ है नर अर्थात मनुष्य सिंह अर्थात शेर ऐसा रूप जिसका सिर शेर का है और धड मनुष्य का है, अपने भक्त की रक्षा और दुष्ट राक्षस का वध करने के लिए भगवान को क्या क्या नही करना पड़ा, एक बात का ध्यान विशेष भक्तों को रखना है, कि शास्त्रों के अनुसार नरसिंह चतुर्दशी व्रत प्रदोष व्यापिनी चतुर्दशी तिथि को ही करना चाहिए, अर्थात दोनों दिन ऐसी चतुर्दशी तिथि न मिले तो कम से कम त्रयोदशी को छोड़कर दूसरे दिन ही उपवास करना चाहिए, इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए, अब भक्तों को बताऊंगा व्रत कथा और विधि, शास्त्रों के अनुसार प्रथम पूज्य श्री गणेश जी हनुमान जी देवी लक्ष्मी जी की तरह नरसिंह चतुर्दशी की पूजा से निसंतान को उत्तम संतान की प्राप्ति होती है, इस दिन चतुर्दशी व्रत करने वाले मनुष्य को प्रातः तांबे के पात्र में जल लेना चाहिए, इसके बाद यह मंत्र पढ़े- नरसिंह देव देवेश तव जन्म दिने शुभे उपवासं करिष्यामि सर्वभोग विवर्जित: इसके बाद दोपहर में तिल गोमय मिट्टी और आंवला से अलग अलग चार बार स्नान करते रहना चाहिए, फिर भक्त जो रोज की पूजा करते हैं, उसे भी इसके बाद पूरी करनी चाहिए, इसके बाद साम के समय एक वेदी पर अष्टदल बनाकर भगवान नरसिंह और माता लक्ष्मीकी सोने आदि की मूर्ति स्थापित कर षोडशोपचार या पंचोपचार पूजा करनी चाहिए, शास्त्रीय मान्यता के अनुसार नरसिंह चतुर्दशी व्रत में पूर्ण रूप से व्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, अब भक्त नरसिंह चतुर्दशी व्रत की कथा पढ़े, कथा इस प्रकार से है- प्राचीन काल में कश्यप नामक एक राजा थे उनकी पत्नी का नाम दिति था, उनके दो पुत्र हुए एक का नाम हिरण्याक्ष तथा दूसरे का नाम हिरण्यकश्यप था, हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने वाराह रूप धर कर तब मार दिया था जब वह पृथ्वी को पाताल लोक ले गया था, इस कारण हिरण्यकश्यप बहुत कुपित हुआ उसने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए कठिन तपस्या करके व्रह्माजी व शिवजी को प्रसन्न किया व्रह्माजी ने उसे अजेय होने का वरदान दिया यह वरदान पाकर उसकी मति मलिन हो गयी, अहंकार में भरकर वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा, उन ही दिनों उसकी पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम प्रहलाद रखा गया, धीरे धीरे प्रहलाद बड़ा होने लगा हालांकि उसने एक राक्षस के घर में जन्म लिया किन्तु राक्षशो जैसे कोई भी दुर्गुण उसमें नहीं थे, वह भगवान का भक्त था, और अपने पिता के अत्याचार का विरोध करता था, भगवान भक्ति से प्रहलाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकश्यप ने बड़ी चालै चली , नीति अनीति सब का प्रयोग किया किन्तु प्रहलाद अपने मार्ग से नहीं हटा अंत में उसने प्रहलाद की हत्या करने के बहुत से षड्यंत्र रचे मगर वह सभी में असफल रहा, भगवान की कृपा से प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ, एक बार हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका ( जिसे वरदान था कि वह आग में भी नहीं जले) की गोद में बैठा कर जिंदा ही चिता में जलाने का प्रयास किया किन्तु उसमें होलिका तो जलकर राख हो गयी और प्रहलाद जस का तस रहा, जब हिरण्यकश्यप का हर प्रयास विफल रहा तो एक दिन क्रोध में आग बबूला होकर उसने म्यान से तलवार खींच ली और प्रहलाद से पूछा बता तेरा भगवान कहाँ है, विनम्र भावसे प्रहलाद ने कहा पिताजी भगवान हर जगह उपस्थित हैं, हिरण्यकश्यप ने कहा तो क्या इस खम्भे में भी तेरे भगवान हैं, प्रहलाद ने कहा हां इस खम्भे में भी है यह सुनकर हिरण्यकश्यप ने तलवार से खम्भे पर प्रहार किया तभी खम्भे को चीरकर नरसिंह भगवान प्रकट हुए, और हिरण्यकश्यप को पकड़ कर अपने जांघों में रखकर उसकी छाती अपने नखों से फाड डाला, इसके बाद प्रहलाद के कहने पर ही भगवान श्री नरसिंह जी ने उसे मोक्ष भी प्रदान किया, तथा प्रहलाद की सेवा भक्ति से प्रसन्न हो कर वरदान दिया कि आज के दिन जो लोग मेरा व्रत करेंगे वो पाप से मुक्त होकर मेरे परम धाम को प्राप्त हुगे , लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल