भारतीय स्वतंत्रता दिवस की 75वीं पर वर्षगॉठ पर राज्य के 05 पर्वतीय जिलों-चमोली, चम्पावत, पिथौरागढ़, टिहरी गढ़वाल एवं उत्तरकाशी में सचल न्यायालय वाहन कराए जा रहे हैं उपलब्ध
नैनीताल – अवसर-मा0 उच्च न्यायालय, उत्तराखण्ड द्वारा जिला न्यायालयों के लिए सचल न्यायालय ईकाईयों का उद्घाटन समारोह में ‘’एक समाज का प्रथम कर्तव्य अपने सदस्यों को सदैव समय पर तथा सुविधाजनक स्थान पर न्याय सुनिश्चित किया जाता हैं, ताकि न्यायिक व्यवस्था पर आस्था अखण्डित रहे’’।
माननीय श्री राघवेन्द्र सिंह चौहान, मुख्य न्यायमूर्ति उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड वादकारियों एवम् वाद से सम्बन्धित व्यक्तियों के हित में न्यायपालिका तथा प्रशासन द्वारा अनेक कदम उठाये जा रहे है। जैसे-जैसे सूचना प्रौद्योगिकी, जीवन तथा शासन के हर पहलू में प्रवेश कर रही है, न्याय वितरण प्रणाली, अधिक प्रभावी तथा वादकारी मित्र/सहयोगी संगठन बनने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी संचालित प्रणाली की मूल आधारशिला इन्टरनैट कनेक्टिविटी है।
covid-19 के परिदृश्य में कार्यस्थलों में सूचना प्रौद्योगिकी तथा उसके परिणामस्वरूप, अबाधित इन्टरनैट कनेक्टिविटी (सयोंजकता) की मांग नई ऊँचाईयों तक पहॅुच गयी है।
उत्तराखण्ड राज्य को अपनी विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों के कारण भौतिक तथा इन्टरनैट, दोनों ही की संयोजकता की गम्भीर समस्या का सामना करना पड़ता है। निवास की सदूरता तथा उत्तराखण्ड के दूरस्थ तथा दुर्गम भूदृश्य में परिवहन सुविधाओं का वास्तविक अभाव, वादकारियों एवं वाद से सम्बन्धित व्यक्तियों (विशेषतः महिलायें एवं बच्चे) के समक्ष एक विशाल चुनौती प्रस्तुत करती है, जो कष्टदायी दुर्ग) के समक्ष एक विशाल चुनौती प्रस्तुत करती है, जो कष्टदायी दुर्गमताओं का सामना करे बिना, न्यायालय की कार्यवाही में प्रतिभाग कर पाने में समर्थ नहीं होते है।
न्यायालयों की उचित आधारभूत संरचना का आभाव लोक अभियोजकों, न्यायिक अधिकारियों तथा दक्ष अधिवक्ताओं की अपर्याप्त संख्या आदि परिस्थितियॉ, दूरस्थ स्थानों में निवास करने वाले वादकारियों अथवा न्यायिक सहायता के पात्रों को न्यायालय तक लम्बी यात्राएं करने, तथा ऐसी यात्राओं में अनगिनत दुर्गमताओं का सामना करने के लिए विवश करती है। इन परिस्थितियों का सर्वाधिक पीड़ित वर्ग महिलायें एवं बच्चे होते है, जो या तो, अपराधों के पीड़ित होते है अथवा मामलों के प्रधान साक्षी। इसके अतिरिक्त, न्यायालयों का बहुमूल्य समय ऐसे चिकित्सीय तथा औपचारिक साक्षीगणों का साक्ष्य अभिलिखित करने में व्यर्थ चला जाता है, जिनका बार-बार एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण होता रहता है।
कई संवेदनशील वादों में पीड़ित व्यक्ति/साक्ष की सुरक्षा को खतरे होने अथवा सामाजिक लांछन के भय के कारण, पीड़ित/प्रधान साक्षी का साक्ष्य या तो अत्याधिक विलम्बित हो जाता है, या अभिलिखित होने से रह जाता है। इसका परिणाम न्यायालय की सुनवाई में अत्याधिक विलम्ब होता है, जिसके अग्रेतर प्रमाणस्वरूप वाद की अवधि बढ़ जाती है। कई बार विडम्बना यह होता है, कि सुदूर/दूरवर्ती स्थान से आये हुये साक्षी का साक्ष्य कतिपय कारणों से अभिलिखित नहीं हो पाता है, तथा उसे खाली हाथ और निराश लौटना पड़ता है, इस चिन्ता के साथ कि उसे फिर आना पड़ेगा।
इन परिदृश्यों को सम्बोधित करने के लिये माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड नैनीताल द्वारा साक्ष्य अभिलिखित करने, तथा अन्य अपरिहार्य सुनवाईयों को विडियों क्रान्फ्रेसिंग के माध्यम से क्रियान्वित करने हेतु एक अभिनव एंव अनुपम व्यवस्था को धरातल पर उतारने की पहल की गई है।
इस व्यवस्था के अन्तर्गत साक्ष्य अभिलिखित करने तथा अपरिहार्य अथवा अति महत्वपूर्ण सुनवाई को विडियो क्रान्फ्रेसिंग के माध्यम से सम्पादित करने हेतु मा0 उच्च न्यायालय द्वारा उत्तराखण्ड राज्य प्रशासन की सहायता से अथवा सचल न्यायालय इकाईयों की योजना को प्रारम्भ किया जा रहा है, जिनका संचालन संचल इन्टरनेट/विडियो क्रान्फ्रेसिंग वाहन से किया जायेगा।
इस योजना के प्रारम्भिक चरणों में ऐसे पीड़ित अथवा साक्षी का साक्ष्य सचल न्यायालय ईकाई के माध्यम से लिया जा सकेगा जो बालक/बालिका या महिला है, या चिकित्सक अथवा अन्वेषण अधिकारी है। वर्तमान में भारतीय स्वतंत्रता दिवस की 75वीं पर वर्षगॉठ पर राज्य के 05 पर्वतीय जिलों-चमोली, चम्पावत, पिथौरागढ़, टिहरी गढ़वाल एवं उत्तरकाशी हेतु उपरोक्त सचल न्यायालय वाहन उपलब्ध कराये जा रहे हैं। जिन्हें माननीय श्री राघवेन्द्र सिंह चौहान, मुख्य न्यायमूर्ति उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड हरी झण्डी दिखाकर रवाना किया गया।
’’सचल ईकाईयों का तथ्य पत्रक’’
सचल न्यायालय ईकाईयों की परिकल्पना मा0 उच्च न्यायालय के मा0 मुख्य न्यायमूर्ति श्री राघवेन्द्र सिंह चौहान द्वारा की गयी है, जिनके द्वारा पूर्व में इस प्रकार की योजना covid-19 के प्रथम चरण में तेलगांना राज्य में वादकारियों तथा अधिवक्तागणों को न्यायालय में अभिभासी सुनवाही (virtual hearing) हेतु इन्टरनेट की सुविधा उपलब्ध कराने हेतु प्रारम्भ की गई थी।
उत्तराखण्ड राज्य में सचल न्यायालय इकाई की परिकल्पना एक पृथक परिपेक्ष्य एवम् ऊंचे लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से की गई है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-21 ’जीवन की सुरक्षा तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ के मूल अधिकार की रक्षा करता है। अनीता कुशवाह बनाम पुसप सदन AIR 2016 SC 3056 के न्यायनिर्णयन में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह सिद्वांत प्रतिपादित किया गया है कि ’’न्याय तक पहुॅच’’ भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के अधीन ’जीवन के अधिकार’ का भाग है, तथा ’न्याय तक पहुॅच’ का एक अतिआवश्यक तत्व यह है कि-राज्य द्वारा उपलब्ध कराया गया प्रभावी न्यायिक तंत्र ’दूरी के मायनों’ में ’युक्तियुक्त रूप से पहुॅच में हो’।
सचल न्यायालय ईकाईयों का उद्देश्य तथा प्रयोजन, भारत के संविधान, में प्रतिष्ठापित ’’जीवन के अधिकार’’ को दृढ़ करना है, विशेषतः ऐसे वर्ग के लिये जो जीवन में एक या उससे अधिक प्रतिकूल परिस्थियों से प्रभावित हो। इस योजना के प्रथम चरण का केन्द्रबिन्दु ऐसी महिलायें एवं बच्चे होगें जो किसी वाद में या तो पीड़ित अथवा साक्षी हो। प्रथम चरण में ऐसे चिकित्सकों एवं अनवेषण अधिकारियों के साक्ष्य को भी अच्छादित किया जायेगा, जिनका साक्ष्य बिना युक्तियुक्त विलम्ब एवं सामान्य जन को दुर्गमतायें कारित बिना अभिलिखित किया जाना सम्भव न हो।
सचल न्यायालय की सुविधा हेतु पात्रता-
किसी वाद से सम्बन्धित व्यक्ति, कतिपथ अवस्थाओं में सचल न्यायालय इकाई की सुविधा का पात्र होगा, यथा-यदि ऐसा व्यक्ति स्वंय की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे के कारण, अथवा अत्यधिक अल्प आयु या वृद्व अवस्था के कारण, अथवा किसी शारीरिक अक्षमता या रोग के कारण, या अत्याधिक आर्थिक विवश्वता के कारण, न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने में अक्षम है, या बाधित होता है। इसके अतिरिक्त यदि कोई व्यक्ति, प्राशासनिक एवं कार्य की आकस्मिकता, जिसमें उसके कार्यस्थल की सूदूरता/दूरस्था सम्मिलित है, के कारण न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने में असमर्थ होता है, तो ऐसा व्यक्ति भी सचल न्यायालय इकाई की सुविधा का पात्र हो सकता है।
जैसा कि पूर्व में उल्लिखित किया गया है, इस योजना के प्रारम्भिक चरणों में ऐेसे पीड़ित अथवा साक्षी का साक्ष्य सचल न्यायालय ईकाई के माध्यम से लिया जा सकेगा जो बालक/बालिका या महिला है, या चिकित्सक अथवा अन्वेषण अधिकारी है।
सचल न्यायालय की सुविधा का लाभ कैसे उठाया जा सकता है-
एक पात्र व्यक्ति सम्बन्धित न्यायालय को लिखित में अग्रिम निवेदन कर, इस सुविधा का लाभ उठा सकता है।
यह निवेदन ऐसा पात्र व्यक्ति, स्वंय को न्यायालय से सम्मन/आदेशिका/नोटिस प्राप्त करते ही कर सकेगा। वह अपने निवेदन को न्यायालय के आदेशिका वाहक अथवा सम्मन/आदेशिका को तामील करने वाली नियमित पुलिस/राजस्व पुलिस कर्मी इत्यादि के माध्यम से कर सकता है।
यदि कोई व्यक्ति स्वंय से ऐसा प्रार्थना पत्र नहीं दे सकता है तो वह पैरा लीगल वोलैन्टीयर, ग्राम प्रधान, ग्राम विकास अधिकारी, पंचायत के अधिकारी या किसी विश्वासनीय व्यक्ति के माध्यम से भी प्रार्थना/निवेदन कर सकता है।
इस सुविधा को जिला न्यायालय की वैब साईट पर बने लिंक (सचल न्यायालय इकाई की सुविधा हेतु आवेदन) तथा न्यायालय की म्उंपस के माध्यम से भी किया जा सकेगा।
इसके अतिरिक्त, पात्र व्यक्ति सचल न्यायालय के सुविधा हेतु प्रार्थना करने के लिये अपने अधिवक्ता की भी सहायता ले सकता है अथवा सीधे ही जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को लिखित निवेदन कर सकता है।
समापन टिप्पणी- यह अपेक्षित है कि सचल न्यायालय ईकाईयों के व्यापक प्रयोग से वादकारियों अथवा वाद से सम्बन्धित व्यक्ति, विशेषतः संवेदनशील अपराधों के पीड़ित हैं अथवा जो अत्याधिक प्रतिकूल परिस्थियों का सामना कर रहे है, की दुर्गमताओं और कष्टों को कम किया जा सकेगा। इस योजना के प्रारम्भिक चरणों में ऐसे पीड़ित अथवा साक्षी का साक्ष्य सचल न्यायालय ईकाई के माध्यम से लिया जा सकेगा जो बालक/बालिका या महिला है, या चिकित्सक अथवा अन्वेषण अधिकारी है।
इस अवसर पर माननीय मुख्य न्यायमूर्ति उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड श्री राघवेन्द्र सिंह चौहान, मनोज कुमार तिवारी, शरद कुमार शर्मा, एनएस धनिक, आरसी खुल्बे, रविन्द्र मैठानी, आलोक कुमार वर्मा, महाधिवक्ता उत्तराखण्ड शासन एसएन बाबुलकर, रजिस्ट्रार जनरल धनन्जय चतुर्वेदी, रजिस्ट्रार अनिरूद्ध भट्ट, अम्बिका पन्त, सदस्य सचिव राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण आरके खुल्बे आदि उपस्थित थे।
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अति. जिला सूचना अधिकारी, गोविन्द बिष्ट, अहमद नदीम, 7055007024, 7505140540