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पीपल के वृक्ष चारधाम सड़क परियोजना की भेंट चढ़ चुके हैं।
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
सनातन धर्म में पीपल को वृक्षों का राजा कहते है। शास्त्रों के अनुसार इस वृक्ष में सभी देवी-देवताओं और हमारे पितरों का वास भी माना गया है। पीपल का वृक्ष भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत:मूर्तिमान स्वरूप ही है। गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-‘अश्वत्थः सर्ववृक्षाणाम’ अर्थात ‘मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूँ’ इस कथन में उन्होंने अपने आपको पीपल के वृक्ष के समान ही बताया है। इसलिए इस वृक्ष को धार्मिक क्षेत्र में श्रेष्ठदेव वृक्ष की पदवी मिली और इसका विधिवत पूजन आरंभ हुआ। पद्म पुराण के अनुसार पीपल के वृक्ष को प्रणाम कर उसकी परिक्रमा करने से मानव की आयु लंबी होती है और जो व्यक्ति इसके वृक्ष पर जल अर्पित करता है उसके सभी पापों का अंत होकर स्वर्ग की प्राप्ति होती है। शनिदेव की पीड़ा को शांत करने लिए भी पीपल के वृक्ष की पूजा का विधान बताया गया है। धर्म शास्त्रों के अनुसार हर व्यक्ति को अपने जीवन में पीपल का एक पेड़ तो अवश्य ही लगाना चाहिए। पीपल का पौधा लगाने वाले व्यक्ति को जीवन में किसी भी प्रकार संकट नहीं रहता है। इस पौधे को लगाने के बाद रविवार को छोड़कर नियमित रूप से जल भी अवश्य ही अर्पित करना चाहिए। जैसे-जैसे यह वृक्ष बढ़ेगा आपके घर में सुख-समृद्धि भी बढ़ती जाएगी। पीपल का पेड़ लगाने के बाद बड़े होने तक इसका पूरा ध्यान भी अवश्य ही रखना चाहिए, लेकिन ध्यान रहे कि पीपल को आप अपने घर से दूर लगाएं, घर पर पीपल की छाया नहीं पड़नी चाहिए। ब्रह्मा,विष्णु,शंकर करते हैं निवासपीपल ऐसा वृक्ष है जिसमें त्रिदेव निवास करते हैं। जिसकी जड़ में श्री विष्णु, तने में भगवान शंकर तथा अग्रभाग में साक्षात ब्रह्माजी निवास करते हैं। अश्वत्थ वृक्ष के रूप में साक्षात श्रीहरि ही इस भूतल पर निवास करते हैं। जैसे संसार में ब्राह्मण,गौ तथा देवता पूजनीय होते हैं,उसी प्रकार पीपल का वृक्ष भी अत्यंत पूजनीय माना गया है। पीपल को रोपने, रक्षा करने, छूने तथा पूजने से क्रमशः धन, उत्तम संतान, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करता है। इसके आलावा पीपल में पितरों का वास माना गया है,सब तीर्थों का इसमें निवास होता है इसलिए मुंडन आदि संस्कार पीपल के नीचे करवाने का विधान है। पूजा करने से सारे संकट होते हैं दूरपीपल की छाया यज्ञ, हवन, पूजापाठ, पुराण कथा आदि के लिए श्रेष्ठ मानी गई है। इसके पत्तों की वंदनवार को शुभ कार्यों में द्वार पर लगाया जाता है। वातावरण के दूषित तत्वों, कीटाणुओं को नष्ट करने के कारण पीपल को देवतुल्य माना जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से पीपल रात-दिन निरंतर 24 घंटे ऑक्सीज़न देने वाला एकमात्र अद्भुत वृक्ष है,जिसके निकट रहने से प्राणशक्ति बढ़ती है। इसकी छाया गर्मियों में ठंडी और सर्दियों में गर्म रहती है इसके अलावा पीपल के पत्ते, फल आदि में औषधीय गुण होने के कारण यह रोगनाशक भी होता है। पीपल में मॉइस्चर कंटेंट, कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन, फैट, फाइबर, कैल्शियम, आयरन, कॉपर और मैग्नीशियम के तत्व मौजूद होते हैं. प्राचीन समय में गुरूकुलों व आश्रमो के आस-पास लाभकारी फल देने वाले पौधों को ऋषि-मुनि लगाते थे। आज मनुष्य ने अपने लाभ के लिये पेड़ों को काटना शुरू कर दिया है। कोरोना महामारी ने हम सभी को ऑक्सीजन की उपयोगिता के बारे में सजग किया है। वृक्ष इस धरा का आभूषण है। इनके संरक्षण की महती आवश्यकता है। अद्भुद फायदे वाले पीपल के पौधों को लगाने के लिए सरकारी नर्सरी की तरफ ताकना पड़ता है। वर्तमान में निजी नर्सरियों में पीपल के पेड़ पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं हैं, बद्रीनाथ एवं केदारनाथ हाईवे को विकसित करने के लिए भगवान कृष्ण के प्रिय वृक्ष पीपल के पेड़ों की बलि दी जा रही है। अब तक अनगिनत पीपल के पेड़ों को काटा जा चुका है। चारधाम यात्रा के दौरान जिन पेड़ों के नीचे तीर्थयात्री और साधु-संत कुछ देर विश्राम कर आगे की यात्रा को निकलते थे, अब उन पेड़ों का अस्तित्व खत्म हो चुका है। आल वेदर रोड़ निर्माण से राष्ट्रीय राजमार्गों से सटे पीपल के पेड़ों को जड़ से ही समाप्त कर लिया गया है और अब तीर्थयात्रियों को पीपड़ के पेड़ों के दर्शन नहीं हो सकेंगे। पीपल के पेड़ों को काटे जाने पर पर्यावरणविद एवं स्थानीय जनता ने आपत्ति जताई है। उनकी माने तो यह धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ है, जिसका नुकसान भविष्य में झेलना पड़ सकता है। हजारों सालों से तीर्थयात्रियों और साधु संतों को छाया देने वाले पीपल के वृक्ष चारधाम सड़क परियोजना की भेंट चढ़ चुके हैं। आल वेदर सड़क निर्माण में पीपल के पेड़ों का भारी दोहन किया गया है। यदि सरकार सही से नीति बनाती और पौराणिक मान्यताओं को समझती तो इन पेड़ों का संरक्षण किया जा सकता था, मगर ऐसा नहीं किया गया। पीपल के पेड़ों का अंधाधुंध कटान गया। पेड़ों के कटने के बाद अब पर्यावरणविद इसे धार्मिक ग्रंथों से जोड़कर देख रहे हैं। स्थानीय लोगों ने भी इसके लिए सरकार को कोसना शुरू कर दिया है। बद्रीनाथ एवं केदारनाथ हाईवे पर चारधाम विकास परियोजना के तहत आल वेदर रोड़ का कार्य चल रहा है। राजमार्ग के चौड़ीकरण में अनगिनत पीपल के पेड़ों का कटान अब तक हो चुका है।बद्रीनाथ हाईवे पर गुलाबराय के आरटीओ कार्यालय के पास, तिलणी, सुमेरपुर, रतूड़ा व केदारनाथ हाईवे के सिल्ली, चन्द्रापुरी, कुंड, फाटा सहित अन्य जगहों पर हजारों सालों से पीपल के पेड़ यात्रा मार्ग की शोभा बढ़ा रहे थे, मगर अब इन पेड़ों का दोहन हो चुका है। हिन्दू मान्यताओं में प्रकृति को अलौकिक दर्जा दिया गया है। यही वजह है कि किसी ना किसी रूप में झरने, पहाड़, नदियां, पेड-पौधे आदि वनस्पति को आस्था के केन्द्र में रखा जाता है। पेड़-पौधों की बात करें तो इन्हें विशेषतौर पूजनीय समझा जाता है, जैसे तुलसी के पत्तों को अत्याधिक पूजनीय मानकर उनका प्रयोग पवित्र कामों में किया जाता है।शास्त्रों और धार्मिक मान्यताओं में पीपल के पेड़ को भी काफी महत्वपूर्ण माना गया है। इसे एक देव वृक्ष का स्थान देकर यह उल्लिखित है कि पीपल के वृक्ष के भीतर देवताओं का वास होता है। गीता में तो भगवान कृष्ण ने पीपल को स्वयं अपना ही स्वरूप बताया है। स्कन्दपुराण में पीपल की विशेषता और उसके धार्मिक महत्व का उल्लेख करते हुए यह कहा गया है कि पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में हरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत देव निवास करते हैं। इस पेड़ को श्रद्धा से प्रणाम करने से सभी देवता प्रसन्न होते हैं। प्राचीन समय में ऋषि-मुनि पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर ही तप या धार्मिक अनुष्ठान करते थे, इसके पीछे यह माना जाता है कि पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर यज्ञ या अनुष्ठान करने का फल अक्षय होता है।अंतिम संस्कार के पश्चात अस्थियों को एक मटकी में एकत्रित कर लाल कपड़े में बांधने के पश्चात उस मटकी को पीपल के पेड़ से टांगने की प्रथा है। उन अस्थियों को घर नहीं लेकर जाया जाता, इसलिए उन्हें पेड़ से बांधा जाता है। इसीलिए यह धारणा बन गई कि मरने वाले की आत्मा पीपल के पेड़ में वास करने लगती है। बताया कि शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति पीपल के वृक्ष के नीचे शिवलिंग की स्थापना करता है और रोज वहां पूजा करता है तो उसके जीवन की सभी परेशानियां हल हो सकती हैं। आर्थिक समस्या बहुत जल्दी दूर होती है। पीपल के वृक्ष के नीचे हनुमान चालीसा का पाठ करना चमत्कारी लाभ प्रदान करता है।पर्यावरणविद् ने कहा कि पीपल के पेड़ से पर्यावरण को काफी लाभ पहुंचता है। यह पेड़ हजारों सालों तक जीवित रह सकता है। पीपल का पेड़ धार्मिकता से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि सरकार की गलत नीतियों के कारण आज हमें पीपल के पेड़ों से हाथ धोना पड़ रहा है। इससे धार्मिक आस्थाना को भारी नुकसान पहुंच रहा है। उन्होंने कहा कि पीपल के पेड़ों का कटान भविष्य के लिए सुखद संदेश नहीं है।
लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर का अनुभव प्राप्त हैं, वर्तमान में दून विश्वविद्यालय है.

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