पंडित प्रकाश जोशी क्या कहते है आमलकी एकादशी पर विशेष
आमलकी एकादशी पर विशेष आमलकी एकादशी या आंवला एकादशी या रंग भरी एकादशी इस बार पच्चीस मार्च गुरु वार को पड रही है, जो द्वादशी युक्त है, वैष्णव सम्प्रदाय के लोगों की पच्चीस मार्च को है, पद्मपुराण में आंवला एकादशी के उल्लेख में कहा गया है कि इस व्रत को करने से सैकड़ों तीर्थों के दर्शन के समान पुण्य की प्राप्ति होती है, इस व्रत को करने से भगवान विष्णु के साथ साथ माँ लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है, इस व्रत में आंवले का विशेष महत्व है, भगवान विष्णु को आंवला अर्पित करना चाहिए, जो लोग व्रत नहीं रख पाते उन है भी आंवले का सेवन करना चाहिए, प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि कर भगवान विष्णु जी की प्रतिमा के सामने हाथ में तिल कुश मुद्रा और गंगाजल लेकर किसी सुयोग्य ब्राह्मण के द्वारा संकल्प लें कि मैं भगवान विष्णु जी की प्रसन्नता एवं मोक्षकी कामना से आंवला एकादशी व्रत रखता हूँ मेरा यह व्रत सफलता पूर्वक पूरा हो, इसके लिए श्री हरि मुझे अपनी शरण में रखें, मम कायिक वाचिक, मानसिक सांसर्गिक पातको पातकदुरितक्षयपूर्वक श्रूतिस्मृति पुराणोक्त फल प्राप्ते आंवला एकादशी व्रतं करिष्ये , तदुपरांत ब्रहामण पुरोहित जी द्वारा कही हुई कथा श्रवण करें, कथा इस प्रकार है, मांधाता वशिष्ठ संवाद के अनुसार राजा मांधाता वशिष्ठ जी से बोले यदि आप मुझपर कृपा करें तो किसी ऐसे व्रत की कथा कहिए जिससे मेरा कल्याण हो, महर्षि वशिष्ठ बोले हे राजन सब व्रतों से उत्तम और अंत में मोक्ष देने वाले आंवला एकादशी के व्रत का वर्णन करता हूँ, यह एकादशी फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में होती है, इस व्रत को करने से समस्त पाप नष्ट हो जातेहैं, इस व्रत का फल एक हजार गौदान के फल के बराबर होता है, अब मैं एक पौराणिक कथा कहता हूँ, आप ध्यान पूर्वक सुनिए, एक वैदिश नाम का नगर था, जिसमें ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्व व शूद्र चारों वर्ण आनन्द सहित रहते थे, उस नगर में वेद ध्वनि गूंजा करती थी, तथा पापी दुराचारी तथा नास्तिक उस नगर में कोई नहीं था, उस नगर में चैतरथ नाम का चन्द्र वंशी राजा राज्य करते थे वह अत्यंत विद्वान और धार्मिक राजा थे, कोई भी व्यक्ति दरिद्र कंजूस नहीं था, सभी नगर वासी विष्णु भक्त थे, और बाल वृद्ध स्त्री पुरुष एकादशी का व्रत किया करते थे, एक समय फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आंवला एकादशी आयी उस दिन राजा प्रजा तथा बाल वृद्ध आदि सबने व्रत किया राजा अपनी प्रजा के साथ मन्दिर में जाकर पूर्ण कुंभ स्थापित करके धूप दीप आदि से स्तुति करने लगे हे धात्री आप व्रहम स्वरूप हो आप व्रहमा जी द्वारा उत्पन्न हुए हैं और समस्त पापों का नाश करने वाले है, आपको नमस्कार है, अब आप मेरा अर्घ्य स्वीकार करो, आपश्रीराम जी द्वारा सम्मानित हो आपकी प्रार्थना करता हूँ, अत आप मेरे समस्त पापों का नाश कर दो उस मन्दिर में सबने रात्रि जागरण किया, रात्रि के समय वहाँ एक बहेलिया आया, जो अत्यंत पापी और दुराचारी था भूख और प्यास से अत्यंत व्याकुल वह बहेलिया इस जागरण को देखने के लिए मन्दिर के एक कोने में बैठ गया, और विष्णु भगवान तथा एकादशी माहात्म्य की कथा सुनने लगा, इस प्रकार अन्य मनुष्यों की तरह उसने भी सारी रात जागकर वितादी, प्रातः होते ही सब लोग अपने घर चले गए, बहेलिया भी अपने घर चला गया, घर जाकर उसने भोजन किया कुछ समय बीतने के पश्चात उस बहेलिये की मृत्यु हो गई, मगर उस आंवला एकादशी व्रत तथा जागरण से उसने राजा विदुरथ के घर जन्म लिया, और उसका नाम वसुरथ रखा गया, युवा होने पर वह चतुरंगिनी सेना के सहित तथा धन धान्य से युक्त हो कर दश हजार ग्रामों का पालन करने लगा, वह तेज में सूर्य के समान क्रान्ति में चन्द्र के समान वीरता में भगवान विष्णु के समान था, वह अत्यंत धार्मिक सत्य वादी कर्म वीर और विष्णु भक्त था, वह प्रजा का समान भाव से आदर करता था, दान देना उसका नित्य कर्तव्य था, एक दिन राजा शिकार खेलने गया, दैवयोग से वह मार्ग भूल गया, और दिशा ज्ञान न रहने के कारण उसी वन में एक वृक्ष के नीचे सो गया, थोड़ी देर बाद पहाड़ी म्लेच्छ वहाँ पर आगये, राजा को अकेला देखकर मारो मारो शब्द करते हुए राजा की ओर दौडे, म्लेच्छ कहने लगे इसी दुष्ट राजा ने हमारे माता पिता पुत्र पौत्र आदि को मारा है, तथा देश से निकाल दिया है, इसको अवश्य मारना चाहिए, ऐसा कहकर म्लेच्छ उस राजा को मारने दौडे और अनेक प्रकार के शस्त्र उसके ऊपर फैके सब शस्त्र राजा के ऊपर पडते ही नष्ट हो गये, और उसका वार पुष्प के समान होने लगा, म्लेछों के शस्त्र उल्टा उनही पर प्रहार करने लगे, जिससे वे मूर्छित होने लगे, इसी समय राजा के शरीर से एक दिव्य स्त्री उत्पन्न हुई, वह स्त्री अत्यंत सुंदर होते हुए भी उसकी भृकुटि टेडी थी, उसके आंखों से लाल लाल अग्नि निकल रही थी, जिससे वह कालके समान प्रतीत होती थी, वह स्त्री म्लेच्छ को मारने दौडी थोड़ी देर में सारे म्लेछों को काल के गाल पंहुचा दिया, जब राजा सोकर उठा तो उसने म्लेछों को मरा हुआ देखकर कहा इन शत्रुओं को किसने मारा, इस वन में मेरा कौन हितैषी रहता है, वह ऐसा विचार कर ही रहाथा कि आकाश वाणी हुई हे राजन इस संसार में विष्णु भगवान के अतिरिक्त कौन तेरी सहायता कर सकता है, आकाश वाणी सुनकर राजा अपने राज्य में आ गया, और सुख पूर्वक राज्य करने लगा, महर्षि वशिष्ठ बोले यह आंवला एकादशी व्रत का प्रभाव था, जो मनुष्य इस आंवला एकादशी व्रत को करते हैं, वे प्रत्येक कार्य में सफल होते हैं, और अंत में विष्णु लोक को जाते हैं, लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल