अनेकों शुभ संयोग बन रहे हैं इस बार माघ मास के शुक्ल पक्ष के सोम प्रदोष व्रत
अनेकों शुभ संयोग बन रहे हैं इस बार माघ मास के शुक्ल पक्ष के सोम प्रदोष व्रत पर।,,,,,,,, भगवान भोले शंकर जी के व्रतों में सबसे प्रमुख व्रत प्रदोष व्रत ही होता है। प्रदोष व्रत से चाहे कितना ही बड़ा संकट क्यों ना हो उससे मुक्ति पाई जा सकती है। जीवन में आर्थिक तंगी हो या शारीरिक समस्या हो या पारिवारिक समस्या हो या हो संतान की समस्या इन सभी समस्याओं का हल प्रदोष व्रत करने से हो जाता है। प्रिय पाठकों को आज मैं ज्योतिषी संबंधी बहुत ही महत्वपूर्ण बात बताने जा रहा हूं। कि इस बार माघ मास शुक्ल पक्ष में जो प्रदोष व्रत है यह बहुत ही महत्वपूर्ण एवं अत्यंत विशेष है। क्योंकि इस दिन एक नहीं वरन अनेकों शुभ योग बन रहे हैं। ज्योतिष गणना के अनुसार अनेकों शुभ संयोग इस दिन बंन रहे हैं। जिन महत्वपूर्ण संयोग ओं का वर्णन आज मैं अपने इस आलेख के माध्यम से करना चाहता हूं वह निम्न प्रकार से हैं। 14 फरवरी 2022 दिन सोमवार। जैसा कि सभी प्रिय पाठक भली भांति जानते हैं की सोमवार भगवान भोलेनाथ का वार है। इसलिए इस दिन सोम प्रदोष का शुभ संयोग बन रहा है। ठीक इसी दिन नक्षत्रों का राजा कहा जाने वाला और सभी कार्यों में सफलता दिलाने वाला तथा परम पुण्य प्रदान करने वाला पुष्य नक्षत्र भी है। और ठीक इसी दिन आयु में वृद्धि करने वाला आयुष्मान योग भी है। संयोग की बात तो यह भी है कि ठीक इसी दिन सभी कार्यों में सिद्धि प्रदान करने वाला सर्वार्थ सिद्धि योग एवं रवि योग का संगम भी हो रहा है। इन सबके अलावा भी भगवान भोलेनाथ जी का परम प्रिय चंद्रमा की स्थिति यदि देखें तो वह भी ठीक इस दिन अपनी ही राशि कर्क राशि में है। क्योंकि कर्क राशि के स्वामी चंद्रदेव ही हैं। वाह क्या बात है इतने सारे संयोग शायद कम ही आते हैं। इतने सारे संयोग ओं के कारण यह दिन 14 फरवरी 2022 सभी कार्यों में सिद्धि देने वाला और जीवन में बड़े से बड़े संकट को हल करने वाला दिन बन गया है। अब मैं प्रिय पाठकों को विस्तार से ज्योतिष गणना के अनुसार इस दिन के तिथि नक्षत्र योग चंद्रमा की स्थिति आदि की जानकारी देना चाहूंगा। 14 फरवरी 2022 दिन सोमवार को त्रयोदशी तिथि रात्रि 8:29 तक रहेगी अर्थात प्रदोष काल में पूजा करने के लिए भी त्रयोदशी तिथि पूर्ण रूप से मिलेगी। यदि महत्वपूर्ण पुष्य नक्षत्र की बात करें तो इस दिन पुष्य नक्षत्र दिन में 11:55 से प्रारंभ होगा और पूर्ण रात्रि तक रहेगा। इससे भी महत्वपूर्ण आयुष्मान एवं सौभाग्य की बात करें तो इस दिन आयुष्मान योग रात्रि 9:28 तक रहेगा तदुपरांत सौभाग्य नामक योग प्रारंभ हो जाएगा। अब इन सभी में से भी महत्वपूर्ण सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाला सर्वार्थ सिद्धि योग दिन में 11:56 से प्रारंभ होकर अगले दिन प्रातः 6:06 तक रहेगा। इसके साथ ही साथ चंद्रदेव के भी अपनी स्वयं की राशि कर्क राशि में रहना इस दिन का महत्व और बढ़ा देगा क्योंकि सोम प्रदोष व्रत को चंद्र प्रदोष व्रत भी कहा जाता है।
सोम प्रदोष व्रत कथा।, ,,,,,,, सोम प्रदोष व्रत की एक पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था। इसलिए प्रातः होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षा से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी। 1 दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दया वश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा।
एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया। ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्व राज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुनः प्राप्त कर आनंद पूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण पुत्र के दिन फिरे वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं। अत: सोम प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को कथा अवश्य पढ़नी व सुननी चाहिए।
प्रदोष व्रत की पूजा विधि।, ,,,,, प्रिय पाठकों को बताना चाहूंगा की प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव जी की पूजा प्रदोष काल में करनी चाहिए। अर्थात सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक का समय प्रदोष काल माना जाता है। इस दिन समीप के किसी शिव मंदिर में जाकर भगवान भोले शंकर का अभिषेक व बेलपत्र अर्पित करें यदि संभव हो तो 108 बेलपत्र मंत्र उच्चारण सहित भगवान भोले शंकर को अर्पित करें। इसके बाद धूप अगरबत्ती आदि मंत्रों का जाप करते हुए भगवान भोले शंकर की पूजा करें तदुपरांत प्रदोष व्रत कथा सुने। अंत में भगवान भोले शंकर की आरती कर परिवार में प्रसाद बांटे। व्रत का पारण दूसरे दिन फलाहार रहकर करें। माघ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को फलदान त्रयोदशी भी कहते हैं। इस दिन फलों का दान भी किया जाता है।