मातृभाषा दिवस का विशेष महत्व – पंडित प्रकाश जोशी जानिए
मातृभाषा दिवस पर विशेष आज इक्कीस फरवरी को मातृभाषा दिवस मनाया जाता है,मातृभाषा मातृभूमि से भी जुडी होती है, जैसे जैसे समय बदलता जा रहा है हमारे राज्य उत्तराखण्ड से कुमाऊंनी भाषा लुप्त होती जा रहीं हैं, जहाँ तक मेरा ख्याल है इसके लुप्त होने का कारण यह हो सकता है कि लोग कुमाऊनी बोलने में कतराते है सर्म महसूस करते हैं, यह लोगों की सोच है हिन्दी अंग्रेजी में बोलंगे तो इज्जत बढेगी कुमाऊंनी में बोलंगे तो गंवार समझंगे ऐसे लोग न हिन्दी शुद्ध बोल पाते न ही अंग्रेजी, खैर ठीक है हमै अंग्रेजी भी सीखनी चाहिए, परन्तु अपनी कुमाऊंनी नहीं भूलनी चाहिए, आज हमारा उत्तराखण्ड इक्कीस वर्ष का नौजवान हो गया है, मैं तो उत्तराखण्ड सरकार से अनुरोध करता हूँ कि प्रार्थमिक शिक्षा में भी एक विषय कुमाऊंनी गढवाली का रखना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी भाषा को लुप्त होने से बचा सकें, कुमाऊंनी गढवाली लेख कविताओं गीतौ मुहावरे लोकगीतों लोक गाथाओं को जीवित रखा जा सके, मुझे लगता है इस समय कुमाऊँ के पचास प्रतिशत से कम नौजवान कुमाऊंनी सही से बोल पाते हुंगे, अगर नौजवानों के ये हाल हुये तो नयी पीढ़ी के बच्चे कहाँ से बोल पायंगे, मेरा उत्तराखण्ड के नौजवानों से एक बार फिर से विनम्र निवेदन है कि आप लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में अवश्य पढाओ परन्तु साथ में उत्तराखण्ड राज्य की मातृभाषा का ज्ञान भी दीजिये, अन्यथा हमारी मातृभाषा नष्ट होगी मातृभाषा नष्ट होगी तो संस्कृति नष्ट होगी संस्कृति नष्ट होगी तो आप खुद समझ गये हुंगे क्या होगा❓ मैंने अपने पूर्व प्रकाशित लेख में भी लिखा है कि चाणक्य के अनुसार जिस देश की संस्कृति नष्ट होगी वह देश स्वत;नष्ट हो जाता है, इसलिए सर्व प्रथम हमै हमारी मातृभाषा बचानी चाहिए तब देश बच पायेगा, संस्कृति भी तबही बच पायेगी उदाहरणार्थ हमै कुमाऊंनी गढवाली भाषा नहीं आयेगी तो हम यहाँ की लोकगीत कविता मंगलगीतो को नहीं समझ पायंगे मैं यहाँ पर कुछ गीतौ मुहावरे लोकगीतों की सूक्ष्म जानकारी दे रहा हूं, लोकगीतों में जैसे, न्योली, झोडा चांचरी , छपेली, बैर, फाग, न्योली कुमाऊंनी गीतों की एक गायन पद्धति है, न्योली वस्तुतः एक मादा पक्षी का नाम है, जो कोयल की भांति काले रंग की होती है प्रिय तम के वियोग में वह गहरे वन में निरंतर झुरती रहती है, न्योली दो तर्ज में गायी जाती है, सोरयाली और रीठागाड़ी , इसके अलावा झोडा, झोडा शब्द का मूल शब्द है जोडा कुमाऊंनी में जो ध्वनि झ में आसानी से परिवर्तित हो जाती है, छपेली शब्द संस्कृत भाषा के क्षप उसमें प्रत्यय एली के योग से बना है, बैर से तात्पर्य है द्वन्द फाग फाग कुमाऊँ में विभिन्न संस्कारों के अवसर पर गाये जाने वाले मंगल गीत जिसे सगुन आंखर भी कहते हैं।