(खास खबर)-उत्तराखंड से ठुमक-ठुमक कर सात समंदर पार पहुंचा ‘गुलाबी शरारा’ ने दिलाई देश विदेश में पहचान

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मूल रूप से राज्य के अल्मोड़ा जिले के दन्या के समीप स्थित बागपाली गांव निवासी इंदर ने यही से अपनी प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण की। पहाड़ के एक बेहद गरीब और सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले इंदर ने इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत नौकरी की तलाश में बड़े बड़े शहरों की ओर रुख किया और बतौर शेफ होटल में नौकरी शुरू कर दी। इसी दौरान जब वह अंबाला के एक होटल में शेफ की नौकरी करते थे तो उनके सहकर्मियों ने पहली बार उन्हें गाने के लिए प्रेरित किया। सहकर्मियों के प्रोत्साहन से ही उन्होंने वर्ष 2018 में गायन के क्षेत्र में कदम रखा। जिसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बीते पांच वर्षों में वह अब तक पांच सौ से अधिक गाने गा चुके हैं। जिनमें से उनके 20 गानों को करीब दो करोड़ और लगभग 50 गानों को 10-10 लाख व्यूज मिल चुके हैं। बताते चलें कि अभी तक उनके तेरो लहंगा, मधू, हिट मधुली, हफ्ते मेंसमेत कई गीतों ने भी उत्तराखण्ड संगीत जगत में धूम मचाई थी।उत्तराखण्ड संगीत जगत को क‌ई सुपरहिट गीत देकर देश विदेश के लोगों को भी थिरकने के लिए मजबूर करने वाले युवा गायक इंदर आर्य आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। आज भले ही उनके गीत पहाड़ों से लेकर देश विदेश तक अपनी धूम मचा रहें हों परंतु एक समय वो भी था जब वह गाने की जगह लोगों के लिए खाना बनाया करते थे। अंतराष्ट्रीय जगत में धूम मचाने वाले खूबसूरत कुमाऊनी गीत गुलाबी शरारा को अपनी मधुर आवाज देने वाले युवा गायक इंदर आर्य कभी शेफ थे। अपने संघर्षपूर्ण जीवन के दिनों को याद करते हुए इंदर कहते हैं कि उन्होंने करीब 15 सालों तक राजस्थान, हरियाणा, पंजाब के कई होटलों में बतौर शेफ काम किया था। हालांकि उन्होंने गीत संगीत के गुण बचपन में ही अपनी मां से सीखे थे, जो बहुत सुरीली आवाज में पहाड़ी गीत गुनगुनाती रहती थी। जिस कारण वह भी बचपन से ही गीत गुनगुनाने लगे थे परन्तु उन्होंने संगीत जगत में कैरियर बनाने के बारे में कभी सोचा भी नहीं था।उत्तराखंड के कई कलाकार ऐसे हैं, जिन्हें कम समय में काफी शोहरत मिली है. इस फेहरिस्त में अल्मोड़ा जिले के रहने वाले कुमाऊंनी इंडस्ट्री के गायक इंदर आर्य भी एक नाम हैं. उन्हें कम समय में काफी फेम मिली है. अल्मोड़ा के कुमाऊं महोत्सव में पहुंचे इंदर आर्य ने लोकल 18 से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि वह आज जिस मुकाम पर हैं, इसके पीछे सिर्फ लोगों का प्यार है. माता-पिता और ईष्ट देवता के आशीर्वाद की वजह से वह यहां तक पहुंच पाए हैं. 2018 में उन्होंने अपना पहला गाना गाया था, जो 15 अगस्त के दिन रिकॉर्ड हुआ था. तब से लेकर आज तक वह एक गाना हर 15 अगस्त के दिन जरूर रिकॉर्ड करते हैं. इंदर आर्य ने कहा कि वह जो भी गाने गाते हैं, वो अधिकतर डांस वाले होते हैं, पर उन गानों में भी कुछ न कुछ कहानी छुपी होती है. उनका मकसद है कि वह अपनी कुमाऊंनी संस्कृति को अपने गानों के जरिए दर्शाएं और आगे बढ़ाएं. उनके गाने लहंगा-पिछौड़ा, पहाड़ के खानपान के अलावा यहां की संस्कृति के बारे में होते हैं. वर्ल्ड फेमस हुए गुलाबी शरारा गाने को इंदर आर्य ने गाया था. उन्होंने बताया कि यह गाना चाहें उन्होंने गाया है, पर अब यह गाना सभी का बन चुका है. इस गाने को सभी ने काफी प्यार दिया है. आशा करते हैं कि वह आगे भी इसी तरह से काम करेंगे और अपने कुमाऊंनी कलाकारों के साथ मिलकर कुमाऊंनी इंडस्ट्री को और भी आगे लेकर जाएंगे. ठुमक ठुमक, जब हिट छै तू पहाड़ी बाट्यूं मा.उत्तराखंड का यह कुमाऊंनी गीत गुलाबी शरारा इन दिनों देश ही नहीं विदेश में भी इंटरनेट मीडिया पर धमाल मचा रहा है। यह गाना इतना अधिक प्रसारित हो रहा है कि छोटे बच्चों से लेकर महिलाएं, फिल्मी सितारे व विदेशी तक इस गाने पर ठुमकते हुए देखे जा रहे हैं। तंजानिया के मशहूर सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर किली पाल भी इस पर रील बना चुके हैं। रील बनाने के साथ ही लोग इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म पर शेयर कर रहे हैं। उत्तराखंड की लोक संस्कृति, रीति रिवाज और लोक गायन कई दशकों से देश दुनिया में प्रसिद्ध है. एक जमाना था जब उत्तराखंड का सुप्रिद्ध गीत ‘बेड़ू पाको बारामासा’ देश की राजधानी दिल्ली के सियासी गलियारों तक अपनी धूम मचाता था. आज एक बार फिर उत्तराखंड के एक गीत ने देश-दुनिया में धूम मचा रखी है. बचपन से ही उन्हें गाना गाने का शौक रहा. संगीत उन्होंने अपनी मां से सीखा. उनकी मां की आवाज बहुत सुरीली है. वो बचपन से अपनी मां पहाड़ी गीत गुनगुनाने देखते थे.अपनी मां की तरह गीत गुनगनाते हुए अभ्यास करते थे. लेकिन घर की आर्थिक स्थिति और जिम्मेदारियों के बोझ ने उन्हें संगीत की दुनिया से दूर होटल में नौकरी करने पर मजबूर किया. कई साल शेफ की नौकरी करने के बाद सिंगर ना बनने का मलाल उनको सताता रहा. हालांकि, मां से मिली शिक्षा-दीक्षा के बदौलत उन्होंने गीत गाने का शौक जारी रखा और उनके इसी शौक ने उन्हें पहाड़ी गीतों के प्रति आगे बढ़ने की प्रेरणा दी. आखिर में साल 2018 में उन्होंने गायन के क्षेत्र में कदम रखा. जैसा प्यार जनता ने उन्हें अभी दिया है वैसा ही प्यार आशीर्वाद आगे भी जनता उन्हें देगी और ऐसे ही भविष्य में नए-नए गाने वह लेकर आएंगे. (इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।) डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)।

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