सूर्य देव एवं चंद्र देव का अद्भुत संगम पौष पूर्णिमा
सूर्य देव एवं चंद्र देव का अद्भुत संगम पौष पूर्णिमा।
पौष मास की पूर्णिमा व्रत कथा,,,,
पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिका नामक नगरी में चंद्रहास नामक राजा राज्य करता था उसी नगर में धनेश्वर नामक एक ब्राह्मण था और उसकी पत्नी अति सुशील और रूपवती थी। घर में धन-धान्य आदि की कोई कमी नहीं थी। परंतु उसे एक बात का बहुत दुख था कि उसकी कोई संतान नहीं थी एक बार गांव में एक योगी आया और उसने ब्राह्मण का घर छोड़कर आसपास के सभी घरों से भिक्षा मांगी और गंगा किनारे जाकर भोजन करने लगा अपने भिक्षाके अनादर से दुखी होकर धनेश्वर योगी के पास जा पहुंचा और इसका कारण पूछा।
योगी ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा की निसंतान के घर की भीख पतितों के अन्न के समान होती है और जो पतियों के घर के अन्न को खाता है वह भी पतितों के समान हो जाता है। पतित हो जाने के भय से वह उस ब्राह्मण के घर से भिक्षा नहीं लेता था। सुन धनेश्वर बेहद दुखी हुआ और उसने योगी से संतान प्राप्ति का उपाय पूछा।
योगी ने बताया कि तुम मां चंडी की आराधना करो इसे सुन वह चंडी की आराधना करने के लिए वन में चला गया और नियमित रूप से चंडी की आराधना कर उपवास करने लगा। उससे प्रसन्न होकर मां चंडी ने 16वे दिन ब्राह्मण को स्वप्न में दर्शन दिया और पुत्र प्राप्ति का वरदान भी दिया। उन्होंने कहा कि यदि तुम दोनों पति पत्नी लगातार 32 पूर्णिमा व्रत करोगे तो तुम्हारा पुत्र दीर्घायु हो जाएगा। इस प्रकार पूर्णिमा का व्रत करने से सभी की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और विशेष फल की प्राप्ति होती है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार दुर्गम नामक दैत्य ने तीनों लोकों में अपने आतंक से हाहाकार मचा दिया था। इस कारण से करीब 100 वर्षों तक बारिश ना होने के कारण धरती पर अकाल पड़ गया था। लोग जल के अभाव में अपने प्राण त्याग रहे थे। तब मां दुर्गा ने सभी देवी देवताओं की विनती से शाकंभरी के रूप में धरती पर अवतार लिया था। कहा जाता है कि माता की सौ आंखें थी मां ने जन्म लेते ही रोना प्रारंभ कर दिया था। माता के आंसुओं से पूरी धरती जलमग्न हो गई और एक बार फिर पृथ्वी पर जल की पूर्ति हो गई। इसके बाद माता शाकंभरी ने दुर्गम नामक दैत्य का वध कर दिया।
शुभ मुहूर्तइस बार पौष पूर्णिमा दिनांक 6 जनवरी 2023 दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। यदि पूर्णिमा तिथि की बात करें तो इस दिन 53 घड़ी 35 पल अर्थात अगले दिन प्रातः 4:37 बजे तक पूर्णमासी तिथि रहेगी। यदि इस दिन के नक्षत्र की बात करें तो इस दिन आर्द्रा नामक नक्षत्र 42 घड़ी 30 पल अर्थात मध्य रात्रि 12:11 बजे तक रहेगा तदुपरांत पुनर्वसु नामक नक्षत्र उदय होगा। यदि योग की बात करें तो इस दिन ब्रह्मा नामक योग दो घड़ी 17 पल तक रहेगा यदि इस दिन करण की बात करें तो विष्टि नामक करण अर्थात भद्रा 20 घड़ी 36 पल अर्थात शाम 3:25 बजे तक रहेगी इन सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण मिथुन राशि में विराजमान रहेंगे। पौष पूर्णिमा का महत्वपौष मास सूर्यदेव का मास कहलाता है। इस मास में सूर्य देव की आराधना से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए पौष पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान और सूर्यदेव को अर्घ्य देने की परंपरा है। क्योंकि पौष का महीना सूर्य देव का महीना है और पूर्णिमा चंद्रमा की तिथि है। अतः सूर्य और चंद्रमा का यह अद्भुत संगम पौष पूर्णिमा की तिथि को ही होता है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों के पूजन से मनोकामनाएं पूर्ण होती है और जीवन में आने वाली विघ्न बाधाएं दूर होती हैं।
पौष पूर्णिमा पूजन विधि___हमारे धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि पूर्णिमा तिथि को किसी पवित्र नदी सरोवर या जल स्रोत में स्नान करना शुभ होता है अगर आप किसी नदी में स्नान नहीं कर सकते हैं तो अपने स्नान के जल में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर घर पर भी स्नान कर सकते हैं। पूर्णिमा तिथि पर पित्र तर्पण करना भी बहुत शुभ माना जाता है। पूर्णिमा के दिन प्रातः काल स्नान करने के पश्चात हरि ओम विष्णु विष्णु विष्णु आदि मंत्रों सहित पूर्णिमा व्रत का संकल्प लें संकल्प लेकर पूरे विधि विधान से चंद्र देव की पूजा अर्चना करें। चंद्रमा की पूजा करते समय निम्न मंत्र का जाप करें_
ॐ सोम सोमाय नमः।
भगवान शिव को चंद्रमा अत्यंत प्रिय है। चंद्रमा भगवान शिव की जटाओं में विराजमान रहता है। इसलिए पूर्णिमा के दिन सूर्य देव चंद्र देव की पूजा के साथ-साथ भगवान शिवजी की पूजा करने से मनचाहे फलों की प्राप्ति होती है। चंद्रमा एक स्त्री प्रधान ग्रह है इसलिए इसे मां पार्वती का प्रतीक भी माना जाता है। यदि आप पूर्णिमा तिथि के दिन भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती और संपूर्ण शिव परिवार की पूजा विधि विधान के साथ करते हैं तो आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी।
लेखक –पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।