चहज के पांडव मन्दिर में गोदान का महत्व-पंडित प्रकाश जोशी
चहज के पांडव मन्दिर में गोदान का महत्व पांडव मन्दिर चहज माना जाता है कि द्वापर युग मैं स्वर्गारोहण के समय पांडव यहाँ आए थे और उन्होंने कुछ समय यहाँ निवास किया था एक लोक कथा के अनुसार आज से 500 वर्ष पूर्व ड्यूल गाँव के विष्ट लोगों की गाय जब यहाँ चरने के लिए आई तो घर लौट कर उन्होंने दूध नहीं दिया जब प्रति दिन यहाँ चरने के बाद गाय ने दूध देना बंद कर दिया तो ग्वालौ ने आकर एक दिन गाय पर पूरा दिन नजर रखने का निर्णय लिया तब चरवाहों ने देखा कि गाय एक पाषाण शिला को दुग्ध पान करातीं है क्रोध में आकर एक ग्रामीण ने कुल्हाड़ी से पाषाण शिला पर प्रहार किया तो उसमें से रक्त की धारा बहने लगी तभी आकाश वाणी हुई कि यह पांडव द्वारा स्थापित पवित्र शिला है तुम इसको दूध से स्नान कराओ और इसकी पूजा करो जो यहदेवाज्ञा नहीं मानेंगे वह नष्ट हो जायेगा ग्रामीण ने ड्यूल के सभी 22 विष्ट परिवार को यह सूचना दी ग्रामीण के21 परिवार ने आकाशवाणी को मानने से इनकार कर दिया उन्होंने इस आकाशवाणी का मजाक भी उडाया तभी वो21 परिवार म्रत होकर समाप्त हो गये बाइसवे परिवार ने भयभीत होकर आदेश का पालन किया और शिला को दूध से नहला कर उसका पूजन किया तब पुनः आकाशवाणी हुई कि जो एक झांसी से आया हुआ जोशी व्राहमण परिवार है उन्हें यहाँ का पुजारी नियुक्त करो तभी यहाँ सुख शांति आएगी और गांव की उन्नति होगी तब से यहाँ हर तीसरे वर्ष पांडव जागर लगता है पांडव जागर महाभारत का ही कुमाऊंनी रूपान्तर है यह 22 दिनों में पूरा होता है सबसे महत्वपूर्ण यहाँ गोदान का है जो भक्त यहाँ गोदान करताहै पांडव देवता उसकी हर मुराद पूरी करते हैं सच्चे मन से किया गोदान बहुत ही फल दायक होता है यह मंदिर अत्यंत रमणीक स्थान में स्थित है सरयू एवं राम गंगा नदी के बीच एक उच्च पर्वत पर सघन वन में स्थित है पिथौरागढ जनपद मुख्यालय से इसकी दूरी 55 कि.मी है यहाँ पंहुच कर भक्तों पर नव चेतना का संचार होता है और परम आध्यात्मिक शांति का अनुभव होता है ।