‘‘भारतीय परम्परागत चिंतन एवं ज्ञानः राजनीतिक पारिस्थितिकी से सम्भावनाएं’’ दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का विधिवत् किया गया उद्घाटन

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यू0जी0सी0-मालवीय मिशन टीचर ट्रेनिंग सेंटर, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल में उत्तराखण्ड पॉलीटिकल साइंस एसोसिएशन (उपसा), भारतीय राजनीति विज्ञान परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में (इपसा) द्वारा ‘‘भारतीय परम्परागत चिंतन एवं ज्ञानः राजनीतिक पारिस्थितिकी से सम्भावनाएं’’ दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का विधिवत् उद्घाटन प्रो0 डी0 रावत, कुलपति, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, प्रो0 मनोज दीक्षित, कुलपति, महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, राजस्थान, प्रो0 संजीव कुमार शर्मा, पूर्व कुलपति महात्मा गांधी क्रेंद विश्वविघालय, बिहार एवं इपसा के महासचिव, प्रो0 काशीनाथ जेना, कुलपति, स्पर्श विश्वविद्यालय, देहरादून एवं प्रो0 नीता बोरा शर्मा, निदेशक, डी0एस0बी0 परिसर, प्रो0 आर0एस0 भाकुनी, उप-निदेशक, उच्च शिक्षा, उत्तराखण्ड, प्रो0 एम0एम0 सेमवाल, अध्यक्ष इपसा, प्रो0 दिव्या उपाध्याय जोशी, निदेशक, यूजीसी-एमएमटीटीसी एवं डा0 रीतेश साह, सहायक निदेशक, यूजीसी-एमएमटीटीसी द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ राष्ट्रगान एवं दीप प्रज्वलन से प्रारम्भ हुआ।
अपने सम्बोधन में प्रो0 दीवान सिंह रावत, कुलपति, कुमाऊँ विश्वविद्यालय ने कहा कि भारतीय ज्ञान एवं चिंतन में गणित, ज्योतिष, रसायन, आयुर्वेद, योग आदि अनेक विषयों में ज्ञान अनमोल धरोहर के रूप में उपलब्ध है। जिसे वर्तमान में भारतीय दृष्टिकोण के माध्यम से विश्व के सामने वैज्ञानिक तरीके से वैज्ञानिक एवं तार्किक तरीके से रखने की आवश्यकता है तथा पाश्चात्य दृष्टिकोण को त्यागने की आवश्यकता है जो हमारी भारतीय ज्ञान परम्परा को दूषित करती हैं। उन्होंने कहा कि विश्व स्तर पर ग्यारहवीं शताब्दी में भारत की जीडीपी 33.6 प्रतिशत का योगदान रखता था परन्तु आजादी तक उसका योगदान 3.2 प्रतिशत तक रहा जो कि भारतीय ज्ञान परम्परा और चिंतन की अनदेखी का परिणाम है। प्रो रावत ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम पारंपरिक ज्ञान एवं विज्ञान को नए रूप में प्रस्तुत करने के सशक्त माध्यम हैं।
मुख्य अतिथि प्रो0 मनोज दीक्षित, कुलपति महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, राजस्थान ने कहा कि प्राचीन काल में हमारे अनेक ऋषि मुनियों के चिंतन को आधुनिक भारत में विद्वानों ने उसे राजनीतिक व्यवस्था में व्यवहारिक आधार पर लागू करने की पूरी कोशिश की जिसमें प्रमुख पं0 दीन दयाल उपाध्याय तथा वर्तमान भारत की समस्याओं और विश्व की समस्याओं का समाधान हम प्राचीन चिंतन और ज्ञान में देखते हैं। उन्होंने कहा कि ‘मैं कौन हूं‘ ये आत्म ज्ञान मूलक प्रश्न है जो भारतीय सनातन परम्परा का महत्वपूर्ण पक्ष है। उन्होंने विशेष रूप से अल्मोड़ा के लाला बद्रीलाल साह की पुस्तक दैशिक शास्त्र का वर्णन किया जो भारतीय परम्परा को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने हिमालयी क्षेत्र की समस्याओं को इपसा के माध्यम से शोधार्थियों को अपने नवीन ज्ञान से उजागर करने की आवश्यकता है ताकि शासन व्यवस्था को उन सम्भावनाओं और निष्कर्षों को समाज हित में जोड़ा जाय। प्रो मनोज दीक्षित ने भारतीय पारंपरिक ज्ञान एवं चिंतन की महत्ता स्पष्ट करते हुए कहा कि आधुनिक एवं पश्चिमी ज्ञान से हमारी प्राचीन ज्ञान धारा नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई है।
विशिष्ट अतिथि प्रो0 संजीव कुमार शर्मा, पूर्व कुलपति, महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतीहारी, बिहार द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा पर प्रकाश डालते हुए वेदों एवं आधुनिक भारतीय ग्रंथों की प्रासंगिकता भूत, वर्तमान व भविष्य में बनी रहेगी तथा आवश्यकता इस बात की है कि आज हमें आधुनिक ज्ञान को भी भारतीय परिप्रेक्ष्य के संदर्भ में लेते हुए भारतीय राजनीतिक विषय की प्रासंगिकता को शोधपत्रों, सेमीनारों, वाद-विवादों और चर्चाओं के माध्यम से बढ़ाने की आवश्यकता है। भारतीय राजनीति विज्ञान परिषद् इस क्षेत्र में 1938 से अग्रणी भूमिका निभाता आ रहा है। प्रो0 संजीव कुमार शर्मा ने वेदों के दृष्टान्तों द्वारा कहा कि प्राचीन ज्ञान की खूबियों को अपनाने के साथ ही उनमें मौजूद कमियों को भी समझना बेहद जरूरी है।
उपसा के अध्यक्ष संगोष्ठी के समन्वयक प्रो0 एम0एम0 सेमवाल द्वारा उपसा एवं सेमीनार के बारे में प्रतिभागियों को जानकारी दी गई तथा उन्होंने उपसा के द्वारा भविष्य में होने वाले सेमीनारों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि लगभग 150 से ज्यादा शोधपत्रों का वाचन विभिन्न तकनीकी सत्रों मंे किया जायेगा। प्रो0 एम0एम0 सेमवाल, अध्यक्ष इपसा ने राजनीति विज्ञान परिषद् के उद्देश्यों की रूपरेखा विस्तारपूर्वक रखा। भारतीय ज्ञान परम्परा में राजनीति विज्ञान विषय के उपादेयता एवं प्रासंगिकता को शोधार्थियों के माध्यम से विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उत्तराखण्ड के परम्परागत ज्ञान का उदाहरण देते हुए कहा कि यहां लगभग 441 वन क्षेत्र देवी-देवताओं के नाम पर संरक्षित किया जाता रहा है ताकि पर्यावरण की रक्षा सामुदायिक स्तर पर की जा सके। उत्तराखण्ड की जनजातियां परम्परागत रूप से भारतीय ज्ञान में चिकित्सा पद्धति की जानकारियों को अपने दैनिक जीवन में बखूबी निभाते आ रहे है। भारतीय ज्ञान परम्परा में राजनीति विज्ञान दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए गांवों से लेकर केन्द्र सरकार तक पर्यावरण के क्षेत्र में आन्दोलनों एवं चिंतनों ने पर्यावरण की राजनीति को दिशा प्रदान की।
प्रो0 काशीनाथ जेना, स्पर्श विश्वविद्यालय, देहरादून ने कहा कि प्राचीन भारतीय चिंतन और ज्ञान को वर्तमान में शोधार्थियों द्वारा उस पर गहन अध्ययन करके उसे चिन्हित करने की अत्यन्त आवश्यकता है। भारतीय ज्ञान परम्परा आज विश्व की समस्याओं का समाधान करने की पूरी क्षमता रखता है। जिसे नये आयामों के माध्यम से शोधार्थियों तथा विद्वतजनों द्वारा राजनीति विज्ञान की शोध पद्धतियों के माध्यम से रखना अत्यन्त आवश्यक है। प्रो केएम जेना ने कहा कि आधुनिकता एवं पाश्चात्य ज्ञान के दौर में अपने इतिहास और ज्ञान परंपरा को समझना भी आवश्यक है इसका अर्थ पीछे जाना नहीं बल्कि आधुनिकता को प्राचीन से जोड़ना है।
प्रो0 नीता बोरा शर्मा, निदेशक, डी0एस0बी0 परिसर, नैनीताल ने इस अवसर पर अपने स्वागत भाषण में कहा कि सेमीनार में आये प्रतिभागियों द्वारा प्रस्तुत किये जा रहे शोध पत्रों से ‘‘भारतीय परम्परागत चिंतन एवं ज्ञान राजनीतिक पारिस्थितिकी से सम्भावनाएं’’ में राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाएंगी।
प्रो0 दिव्या उपाध्याय जोशी, निदेशक, यूजीसी-एमएमटीटीसी, नैनीताल ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा एवं चिंतन में वर्तमान राजनीति विज्ञान की समस्याओं एवं चुनौतियों को इपसा के माध्यम से शोधार्थियों, गोष्ठियों, परियोजनाओं, चर्चाओं के माध्यम से रखा जायेगा। जिससे राजनीति विज्ञान की प्रासंगिकता को समाज के विभिन्न हितों की पूर्ति की जा सके।उन्होंने प्रस्ताव रखा कि हिमालय स्टडी फोरम की स्थापना किये जाने के माध्यम से हिमालयी क्षेत्रों के विभिन्न पहलुओं पर व्यापक शोध किया जाना सम्भव हो सकेगा। भारतीय राजनीति विज्ञान परिषद् के महासचिव प्रो0 संजीव कुमार शर्मा द्वारा घोषणा की गई कि हिमालय स्टडी फोरम की स्थापना में पूर्ण रूप से सहयोग दिया जायेगा।
डा0 रीतेश साह, आयोजक सचिव राष्ट्रीय संगोष्ठी ने अतिथियों एवं प्रतिभागियों का उनकी उपस्थिति हेतु धन्यवाद ज्ञापित किया गया।
इस अवसर पर डा0 कामना जैन डा0 नीशु भाटी द्वारा लिखित 02 पुस्तकों का विमोचन किया गया जिसका शीर्षक भारत की जी-20 अध्यक्षता एक साझा वैश्विक भविष्य तथा एक राष्ट्र एक चुनावः प्रासंगिकता एवं चुनौतियां हैं।
इस अवसर पर इपसा द्वारा यंग रिसर्चर अवार्ड, व्यस्ट रिसर्चर एवं अर्ली कैरियर रिसर्च अवार्ड से कई शोधार्थियों तथा प्राध्यापकों को दिया गया। जिसमें डा0 रीतेश साह, डा0 राखी पंचोला, डा0 राजेश पालीवाल, डा0 प्रकाश लखेड़ा, डा0 नीशु भाटी, डा0 मनस्वी, डा0 मोहित रौतेला, डा0 अरविन्द सिंह रावत, विदुषी डोभाल, डा0 हरदेश कुमार शर्मा, आदि को दिया गया। दो दिवसीय इस राष्ट्रीय सेमिनार के पहले दिवस में देशभर से अनेक विश्विद्यालयों के प्राध्यापकों एवं शोधार्थीयों ने प्रतिभाग किया। विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्राध्यापका प्रो0 सुमन कुमार, प्रो0 आर0एन0 गहलोत, प्रो0 आशा राना, डा0 कैलाश कलोनी, डा0 लता जोशी, डा0 शिवानी डा0 अजय कुमार, डा0 आलोक रंजन, अमृत लाल परमार, अमित कुमार टम्टा, डा0 अरूण कुमार, डा0 धनन्जय विश्वास, डा0 दिनेश कुमार, डा0 गजानन वसुदेव बोरकर, डा0 गजेन्द्र, शर्मा, डा0 गिरिराज सिंह, डा0 खेम चन्द्र, डा0 मोहित सुखटांकर, डा0 पूनम उसरेथे, डा0 राजवीर सिंह, डा0 रिंकूमोनी गोगोई, डा0 मनमोहन सिंह, आदि रिफ्रैशर प्रोग्राम के प्रतिभागी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजक सचिव डा0 रीतेश साह द्वारा किया गया।

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