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मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने माता सीता के साथ विवाह किया था। इसलिए यह दिन श्री राम विवाह उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
और इस दिन को विवाह पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को चेतना और माता सीता को प्रकृति शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम और सीता का विवाह करवाने का भी बड़ा महत्व है।
इस दिन अपने घर में भगवान राम और सीता की विधिवत पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से अविवाहितओं के लिए विवाह में आ रही अड़चनें समाप्त हो जाएगी। यदि वैवाहिक जीवन मैं कुछ समस्याएं आ रही हूं तो इस दिन व्रत रखने से भगवान श्री राम और सीता का सच्चे मन से ध्यान करने से दांपत्य जीवन में आ रही कठिनाइयां भी समाप्त हो जाती हैं। इस दिन अविवाहित लोगों को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम एवं सीता जी के समान योग्य जीवनसाथी प्राप्त होने की प्रार्थना करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि विवाह पंचमी के दिन घर में अखंड रामायण का आयोजन करना चाहिए यदि इतना संभव ना हो तो कम से कम सुंदरकांड पाठ अवश्य करना चाहिए।
ऐसा माना जाता है कि राजा जनक के राज्य में एक बार बहुत समय तक वर्षा नहीं हुई। बहुत समय बाद एक आकाशवाणी हुई कि यदि राजा जनक स्वयं हल चलाएं तो वर्षा होगी। राजा जनक ने ऐसा ही किया हल चलाते चलाते भूमि में हल का फल एक घड़े से टकरा गया घड़े में से एक सुंदर कन्या निकली। प्रिय पाठकों को बताना चाहूंगा कि हल के फल से जो भूमि में खुदी हुई लकीर बनती है उसे सिया कहते हैं इसलिए उस कन्या का नाम सिया या सीता रखा गया। यह और कोई नहीं माता सीता ही थी। बहुत समय बाद एक बार माता सीता ने मंदिर में रखे विशाल शिव धनुष को यूंही उठा लिया था। इस धनुष को उस समय में भगवान परशुराम जी के अतिरिक्त कोई नहीं उठा सकता था। तब से राजा जनक ने यह घोषणा कर डाली कि जो कोई भी भगवान शिव जी के इस धनुष को उठाएगा उसी के साथ सीता का विवाह होगा।

विवाह पंचमी के दिन मुनि विश्वामित्र राम लक्ष्मण जी को साथ लेकर सीता के स्वयंवर में पधारे। सीता स्वयंवर में राजा जनक जी ने उद्घोषणा की थी कि जो शिव जी के धनुष को भंग कर देगा उसी के साथ सीता का विवाह का संकल्प कर लिया। स्वयंवर में राजा महाराजाओं ने अपनी अपनी वीरता का परिचय दिया परंतु सभी विफल रहे । इधर राजा जनक चिंतित हो गए की यह पृथ्वी वीरों से विहीन हो गई है। तभी मुनि विश्वामित्र ने राम को शिव धनुष भंग करने का आदेश दिया। रामजी ने मुनि विश्वामित्र जी की आज्ञा मानकर भगवान शिव जी की मन ही मन स्तुति कर शिव धनुष को एक बार में ही भंग कर दिया। तदोपरांत राजा जनक ने सीता का विवाह बड़े उत्साह एवं धूमधाम के साथ राम जी से कर दिया। साथ ही साथ दशरथ जी के अन्य तीन पुत्र भरत के साथ माधवी लक्ष्मण के साथ उर्मिला एवं शत्रुघ्न के साथ सुकीर्ति का विवाह बड़े धूमधाम से किया।
देश के अनेक भागों में इस दिन शादी विवाह वर्जित होते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम एवं सीता के दुखद वैवाहिक जीवन के कारण संभवतः लोग यह समझते होंगे की सीता माता की तरह ही उनकी कन्या का वैवाहिक जीवन भी दुख मय होगा।
शुभ मुहूर्त,,,, इस बार विवाह पंचमी का पर्व दिनांक 28 नवंबर 2022 दिन सोमवार को मनाया जाएगा। यदि इस दिन पंचमी तिथि की बात करें तो पंचमी तिथि 16 घड़ी 52 पल अर्थात दिन में 1:35 बजे तक है। यदि इस दिन नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन उत्तराषाढा नामक नक्षत्र 9 घड़ी दो पल अर्थात प्रातः 10:27 बजे तक है तदुपरांत श्रवण नक्षत्र उदय होगा। यदि करण की बात करें तो इस दिन बालव नामक करण 16 घड़ी 52 पल अर्थात दिन में 1:35 बजे तक है। यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण मकर राशि में विराजमान रहेंगे।
विवाह पंचमी की पूजा विधि—विवाह पंचमी के पावन पर्व पर ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहने। तदुपरांत अक्षत पुष्प एवं गंगाजल सहित भगवान श्री राम जी के विवाह का संकल्प लें ।फिर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी एवं जगत जननी सीता माता की प्रतिमा स्थापित करें। मूर्ति स्थापित करने के उपरांत भगवान श्रीराम को पीला वस्त्र एवं माता सीता को लाल वस्त्र अर्पित करें। इसके उपरांत “ओम जानकी वल्लभाय नमः” इस मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें यदि संभव हो तो एक हजार जप करें और भगवान श्री राम एवं माता सीता का गठबंधन करें। तदुपरांत भगवान श्री राम जानकी माता की आरती करें तदुपरांत तीन बार प्रदक्षिणा करें।

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