देवभूमि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद में लगने वाले मेले की क्या है विशेषता
मोष्टामाणू कौतिक पिथौरागढ,,,,,,,, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी यानी ऋषि पंचमी को देवभूमि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद में यह मेला लगता है। यदि भाद्रपद मास के भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष पिथौरागढ़ जनपद मुख्यालय के समीपवर्ती मेलों की बात करें तो यहां भाद्रपद शुक्ल पक्ष में लगातार एक के बाद एक तीन मेले लगते हैं। जिसमें पहला मेला भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि यानी हरतालिका तीज को महाभारत कालीन किरात वेश में रहने वाले भूमि के स्वामी केदार नाम से पूजित भगवान शिव के मंदिर स्थल थल केदार में लगता है। दूसरे दिन भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष चतुर्थी यानी गणेश चतुर्थी के दिन जनपद मुख्यालय के समीप ध्वज नामक पर्वत की चोटी पर देवी मंदिर में मेला लगता है। जिसे ध्वज मेला कहते हैं। फिर तीसरे दिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष पंचमी ऋषि पंचमी यानी आज पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 6 किलोमीटर दूरी पर समुद्र तल से लगभग 6000 फीट ऊंचाई पर जनपद का प्रसिद्ध और दर्शनी मेला संपन्न होता है जिसे मोष्टामाणू कौतिक कहते हैं। मोस्टा का शाब्दिक अर्थ है निंगाल से बनी चटाई। लोग जगत का विश्वास है कि मोष्टा देवता जल बृष्टि करने वाले हैं। क्योंकि वे इंद्र के पुत्र हैं।मोष्टा देवता की माता का नाम कालिका है। वे ब्लॉक में इन्हीं के साथ निवास करती हैं। इंद्रदेव ने इन्हें भूलोक में भूख प्राप्त करने हेतु अपना उत्तराधिकारी बनाया है। एक किवदंती के अनुसार मोष्टा देवता के साथ 64 योगिनी 52 वीर और 8000 मसान रहते हैं। भूटनी बयाल नामक आंधी तूफान उनके वश में है। मोष्टा देवता के रुष्ट हो जाने पर वह सर्वनाश कर देते हैं। मोष्टा देवता 22 प्रकार के बज्रो से सुसज्जित हैं। माता कालिका और भाई और सूर देवता के सहयोग से वह नाना प्रकार के असंभव कार्यों को संपादित करते हैं।मोष्टा और असुर दोनों के सामने बलिदान नहीं होता है। परंतु उनके सेवकों के लिए भैंसे और बकरे का बलिदान किया जाता है। इन सबके अतिरिक्त इस देखता को नाग देवता भी माना जाता है। इनकी आकृति मोष्टा यानि निंगाल की चटाई की तरह मानी गई है। इन्हें विष से युक्त नाग भी माना जाता है। जो लोग नाग पंचमी के दिन किसी कारणवश व्रत नहीं रख पाते हैं वह आज यानी ऋषि पंचमी के दिन यहां मेले में आकर इनका पूजन संपन्न कर लेते हैं। आज मेले के अवसर पर मोष्टा देवता का रथ निकलता है। इससे जमान कहते हैं। लोग इस के दर्शन के लिए बहुत दूर-दूर से यहां आते हैं। मेले में कपड़े दैनिक जीवन में काम आने वाली चीजों के अतिरिक्त निगाल की टोकरिया छापरी सूप चटाई या कृषि यंत्र कुदाल फावड़े हल आदि बर्तन भी यहां मिलते हैं। लोग विभिन्न प्रकार की वस्तुएं यहां से खरीद कर ले जाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण है यहां के लोक गायक और लोक नर्तक भी यहां पहुंचते हैं और हुडके की थाप पर नृत्य की महफिले सजती हैं। नृत्य गीत के बाद धीरे धीरे शाम होते होते मेले का समापन भी हो जाता है।, मोष्टा देवता हम सभी की रक्षा करें । लेखक श्री पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल,