देवभूमि उत्तराखंड में क्या है तुलसी एकादशी का महत्व, आइये जानते हैं
सभी एकादशी व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण है देवशयनी एकादशी व्रत,,,,,,, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी हर शयनी एकादशी पदमा एकादशी आदि नामों से जाना जाता है। देवभूमि उत्तराखंड में इसे तुलसी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन तुलसी वृंदावन में तुलसी के पौधे रोपे जाते हैं और चातुर्मास भर उनकी पूजा की जाती है। जो लोग संपूर्ण वर्ष भर एकादशी व्रत नहीं रख पाते हैं वह सिर्फ आषाढ़ मास के देव शयनी एकादशी व्रत से लेकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात हरि बोधनी एकादशी तक व्रत ले सकते हैं। देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक मास के हरी बोधिनी एकादशी तक तुलसी वृंदावन में प्रत्येक दिन जल चढ़ाया जाता है एवं प्रातः सायं वहां पर प्रतिदिन दिया जलाया जाता है और हरी बोधिनी एकादशी के दिन व्रत उद्यापन किया जाता है।
शुभ मुहूर्त, ,,,,, इस वर्ष सन् 2022 में देवशयनी एकादशी व्रत दिनांक 10 जुलाई 2022 दिन रविवार को है। यदि एकादशी तिथि की बात करें तो इस दिन एकादशी तिथि 22 घड़ी 10 पल अर्थात दोपहर 2:14 बजे तक है। यदि नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन विशाखा नामक नक्षत्र 11 घड़ी 15 पल अर्थात प्रातः 9:52 बजे तक है। बात यदि योग की करें तो इस दिन शुभ योग 48 घड़ी 17 पल अर्थात मध्य रात्रि 12:41 बजे तक है। यदि करण के बारे में जाने तो इस दिन विष्टी नामक करण 22 घड़ी 10 पल अर्थात दोपहर 2:14 बजे तक है इन सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन की चंद्रमा की स्थिति जाने तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण वृश्चिक राशि में विराजमान रहेंगे।
देव शयनी एकादशी व्रत कथा— एक बार पांडु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से कहा हे केशव !आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत के करने की विधि क्या है और किस देवता का पूजन किया जाता है? तब नंदनंदन भगवान श्री कृष्ण कहने लगे की हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा था वही मैं तुमसे कहता हूं। एक समय नारद जी ने ब्रह्मा जी से यही प्रश्न किया था। तब ब्रह्माजी ने उत्तर दिया की हे नारद तुमने कलयुगी जीवो के उद्धार के लिए बहुत उत्तम प्रश्न किया है। क्योंकि देव शयनी एकादशी का व्रत सब व्रतों में उत्तम है। इस व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। और जो मनुष्य इस व्रत को नहीं करते वह नर्क गामी होते हैं। इस व्रत के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। इस एकादशी का नाम पदमा एकादशी भी है। अब मैं तुमसे एक पौराणिक कथा कहता हूं। तुम मन लगाकर सुनो। सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा हुआ है। जो सत्यवादी और महान प्रतापी था। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन किया करता था। उसकी सारी प्रजा धन-धान्य से परिपूर्ण और सुखी थी। उसके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था। एक समय उस राजा के राज्य में 3 वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया। प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यंत दुखी हो गई। अन्न के न होने से राज्य में यज्ञ आदि भी बंद हो गए 1 दिन प्रजा राजा के पास जाकर कहने लगी कि हे राजन !सारी प्रजा त्राहि-त्राहि पुकार रही है। क्योंकि समस्त विश्व की सृष्टि का कारण वर्षा है। वर्षा के अभाव से अकाल पड़ गया है और अकाल से प्रजा मर रही है। इसलिए हे राजन !कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे प्रजा का कष्ट दूर हो। राजा मांधाता कहने लगे कि आप लोग ठीक कह रहे हैं वर्षा से ही अन्न उत्पन्न होता है और आप लोग वर्षा न होने से अत्यंत दुखी हो गए हैं। मैं आप लोगों के दुखों को समझता हूं। ऐसा कहकर राजा कुछ सेना के साथ लेकर वन की तरफ चल दिया। वह अनेक ऋषियों के आश्रम में भ्रमण करता हुआ अंत में ब्रह्मा जी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचा। वहां राजा ने घोड़े से उतर कर अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया। मुनि ने राजा को आशीर्वाद देकर कुशल क्षेम के पश्चात उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से कहा कि हे भगवान सब प्रकार से धर्म पालन करने पर भी मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है। इससे प्रजा अत्यंत दुखी है। राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को कष्ट होता है ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। जब मैं धर्म अनुसार राज्य करता हूं तो मेरे राज्य में अकाल कैसे पड़ गया? इसके कारण का पता मुझको अभी तक नहीं चल सका। अब मैं आपके पास इसी संदेह को निवृत्त कराने के लिए आया हूं कृपा करके मेरे इस संदेह को दूर कीजिए। साथ ही प्रजा के कष्ट को दूर करने का कोई उपाय बताइए। इतनी बात सुनकर ऋषि कहने लगे कि हे राजन यह सतयुग सब युगों में उत्तम है। इसमें धर्म के चारों चरण सम्मिलित हैं अर्थात इस युग में धर्म की सबसे अधिक उन्नति है। लोग ब्रह्म की उपासना करते हैं और केवल ब्राह्मणों को ही वेद पढ़ने का अधिकार है। ब्राह्मण ही तपस्या करने का अधिकार रख सकते हैं परंतु आप के राज्य में एक शुद्र तपस्या कर रहा है। इसी दोष के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। इसलिए यदि आप प्रजा का भला चाहते हो तो उस शूद्र का वध कर दो। इस पर राजा कहने लगा कि महाराज मैं उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को किस तरह मार सकता हूं। आप इस दोष से छूटने का कोई दूसरा उपाय बताइए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन यदि तुम अन्य उपाय जानना चाहते हो तो सुनो। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देव शयनी नाम की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो। व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी और प्रजा सुख प्राप्त करेगी क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है और समस्त पापों का नाश करने वाला है। एकादशी का व्रत तुम प्रजा सेवक तथा मंत्रियों सहित करो। मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आया और उसने विधि पूर्वक देवशयनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और प्रजा को सुख पहुंचा। अतः इस मास की एकादशी का व्रत सभी मनुष्य को करना चाहिए। यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्त को देने वाला है। इसके अतिरिक्त इस कथा को पढ़ने और सुनने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।