हिन्दू धर्म में क्या है वैसाखी पूर्णिमा का महत्व
वैसाखी पूर्णिमा पर विशेष,,,, हिन्दू धर्म में लगभग हर पूर्णिमा महत्वपूर्ण होती है, जैसे चैत्र पूर्णिमा हनुमान जयंती, वैसाख पूर्णिमा बुद्ध जयंती, श्रावणी पूर्णिमा रक्षा बन्धन कार्तिक पूर्णिमा गुरु नानक जयंती, आदि, इन सब में वैसाख पूर्णिमा सबसे महत्वपूर्ण है, इस पूर्णिमा में स्नान दान का विशेष महत्व है, इस बार तो वैसाख पूर्णिमा कुछ और अधिक महत्वपूर्ण बनने जा रहीहै, क्योंकि इस बार वैसाख पूर्णिमा के दिन चन्द्र ग्रहण जो पड रहा है, क्योंकि ग्रहण काल में स्नान और दान का महत्व और अधिक बढ जाता है, कहा गया है कि- गो कोटि दानम् ग्रहणेतु काशी, मकर: प्रयागे यदकल्पवाशे, अर्थात- ग्रहण काल में काशी और मकर यानि माघ मास में प्रयागराज में स्नान करने से एक करोड़ गोदान के फल बराबर होता है, ऐसा व्यक्ति एक कल्प तक वैकुण्ठ में वाश करता है, परन्तु इस कोरोना काल में काशी में स्नान करना संभव नहीं है अतः घर में ही जल में गंगा जल मिलाकर स्नान करने से वही फल प्राप्त कर सकते हैं, अब मैं सुधि पाठकों को बताना चाहता हूँ वैसाख पूर्णिमा के बारे में, इस पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा, सिद्ध विनायक पूर्णिमा और सत्य विनायक पूर्णिमा भी कहते हैं, इस पूर्णिमा को महात्मा बुद्ध का जन्म भी हुआ था, इसी तिथि को महात्मा बुद्ध को बोधिसत्व की प्राप्ति भी हुईथी, हिन्दू पंचाग के अनुसार इसबार 26 में ई 2021 को वैसाख पूर्णिमा पड रही है, इसीदिन वर्ष 2021 का पहला चन्द्र ग्रहण भी लग रहा है, यह ग्रहण संपूर्ण भारत में तो नहीं दिखाई देगा, जिसके चलते संपूर्ण भारतवर्ष में इसका प्रभाव भी नहीं पडेगा, अब मैं सुधि पाठकों को बताना चाहता हूँ वैसाख पूर्णिमा के महत्व के बारे मे, ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने वैसाख पूर्णिमा का महत्व सुदामा को उस समय बताया था जब वो द्वारिका नगरी में पंहुचे थे, श्री कृष्ण जी के बताये अनुसार सुदामा जी ने व्रत किया इससे उनकी दरिद्रता और दुख दूर हुए, इससे वैसाख पूर्णिमा का महत्व और बढ जाता है, वैसाख पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना का विधान है, इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है, इस दिन व्रत करने से सुख समृद्धि में वृद्धि होती है, अब मैं पाठकों को शुभ मुहूर्त की जानकारी देना चाहुगा इस बार व्रत की पूर्णिमा 25 म ई को ही होगी, क्योंकि 26 को व्रत के समय पूर्णिमा नहीं रहती है प्रतिपदा तिथि शुरू हो जाती है, हमारे पुराणों में इस पूर्णिमा को अत्यंत पवित्र एवं फलदायी माना गया है, इस दिन पिछले एक महिने से चला आ रहा वैसाख स्नान एवं धार्मिक अनुष्ठान की पूर्ण आहुति की जाती है, मंदिर में हवन पूजन के बाद वैसाख महात्म्य का पारायण किया जाता है, भविष्य पुराण आदित्य पुराण में वर्णित है कि इस दिन प्रातः नदियों एवं पवित्र सरोवर में स्नान करने के बाद दान पुण्य का महत्व है, धर्म राज के निमित्त जल से भरा हुआ कलश, पकवान एवं मिष्ठान इस दिन वितरण करना गोदान के समान फलदायी होता है, वैसाखी पूर्णिमा के दिन शक्कर और तिल दान करने से अनजान में हुये पापों का भी क्षय होता है, भक्तों एवं पाठकों को एक बार पुनः बताना चाहता हूँ कि व्रत की पूर्णिमा 25 म ई को ही होगी, इसी दिन भगवान श्री नृसिंह का प्राकट्य उत्सव भी मनाया जायेगा क्युकी इस दिन चतुर्दशी तिथि भी है, इसे नृसिंह चतुर्दशी भी कहते हैं, इसी दिन भगवान नृसिंह खम्भे को फाड़कर भक्त प्रहलाद की रक्षा करने और दुष्ट हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए प्रकट हुए थे, अब भक्त एवं पाठक गण वैसाख पूर्णिमा व्रत की कथा पढ़े, द्वापरयुग में एक समय की बात है, माँ यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण जी से कहा कि हे कृष्ण! तुम सारे संसार के उत्पन्न कृता पोषक हो आज तुम मुझे एक व्रत कहो जिससे स्त्रियों को मृत्यु लोक में विधवा होने का भय नहीं रहे तथा यह व्रत सभी मनुष्यों की मनोकामना पूर्ण करने वालाहो, यह सुनकर श्री कृष्ण ने कहा कि हे माँ! आपने मुझसे बहुत ही सुन्दर सवाल किया है, मैं आपको विस्तार पूर्वक बताता हूँ, सौभाग्य की प्राप्ति के लिए स्त्रियों को 32 पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए इस व्रत करने से स्त्रियों को सौभाग्य संपत्ति आदि की प्राप्ति होती है, संतान की रक्षा होती है, यह व्रत अचल सौभाग्य को देने वाला एवं भगवान शिव के प्रति मनुष्य मात्र की भक्ति को बढाने वाला व्रत है, तब यशोदा जी कहती है कि हे कृष्ण सर्वप्रथम इस व्रत को मृत्यु लोक में किसने किया था, इसके विषय में विस्तार पूर्वक मुझे बताओ तब श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि इस भू मण्डल पर एक अत्यंत प्रसिद्ध राजा चंन्द्र हास्य से पालित अनेक प्रकार के रत्न से परिपूर्ण कातिका नाम की एक सुंदर नगरी थी, वहाँ पर धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण निवास करताथा, उसकी स्त्री अति सुशील रूप वती थी, दोनों ही उस नगरी में बड़े प्रेम के साथ निवास करते थे, घर में धन धान्य आदि की कोई कमी नहीं थी, उनको एक बड़ा दुख था, उनके यहाँ कोई संतान नहीं थी, इस दुख से वो अत्यंत दुखी रहते थे, एक समय एक योगी उस नगरी में आया था, वह योगी इस ब्राह्मण के घर पर छोड़ कर सभी घरों से भिक्षा लेकर भोजन किया करताथा, रूप वती से वह भिक्षा नहीं लेता था, उस योगी ने अन्य घरों से भिक्षा के अन्न को गंगा के किनारे जाकर बडे प्रेम से खा रहा था, तभी धनेश्वर ने योगी को ऐसा करते देख लिया था, अपनी भिक्षा के अनादर से दुखी होकर धनेश्वर योगी से कहते हैं कि हे महात्मा! आप सभी घरों से भिक्षा लेते हैं, लेकिन मेरे घर की भिक्षा कभी नहीं लेते हैं, इसका क्या कारण है❓ तब योगी ने कहा कि निसंतान के घर की भिक्षा पतीतों के अन्न के समान हो जाती है, और जो पतीतों का अन्न खाया है, वह भी पतीत यानि पापी हो जाता है, चूंकि तुम निसंतान हो अत: पतीत हो जाने के भय से तुम्हारे घर की भिक्षा नहीं लेता हूँ, धनेश्वर यह बात सुनकर अपने मन में बडा दुखी हुआ, और हाथ जोड़कर योगी के पैरों पर गिर गया, तथा आतुर भाव से बोला कि हे महाराज ऐसा है तो आप मुझे पुत्र प्राप्ति का उपाय बताऐ, आप सब कुछ जानने वाले है, आप मुझपर अवश्य कृपा करें, धन की मेरे यहाँ कमी नहीं है, लेकिन संतान ना होने के कारण बहुत दुखी हो गया हूँ, मेरे इस दुख का हरण कर लीजिए, आप सामर्थ्य वान है, तब योगी ने यह सुनकर कहने लगे तुम चंडी देवी की आराधना करो, तब ब्राह्मण घर जाकर अपनी पत्नी को पूरा वृतांत कह कर स्वयं वन में चला गया, वहाँ पर उसने चंडी की उपासना की, और उपवास भी किया, चंडी ने सोलहवें दिन उसको दर्शन दिया, और कहा कि हे धनेश्वर! जा तेरे यहाँ पुत्र होगा लेकिन उसकी सोलह वर्ष बाद मृत्यु हो जायेगी, तुम दोनों स्त्री पुरुष 32 पूर्णमासी का व्रत श्रद्धा पूर्वक और विधिपूर्वक करोगे तो वो दीर्घायु हो जायेगा, जितनी तुम्हारी सामर्थ्य हो उतने आटे के दिये बना कर शिव जी का पूजन करना, लेकिन पूर्णमासी को 32 हो जाना चाहिए, और प्रातः इस स्थान के समीप एक आम का वृक्ष दिखाई देगा तुम उस पर चढ़कर फल तोड़ कर सीघ्र अपने घर चले जाना, और अपनी स्त्री को सारा वृतांत बताना, और ऋतु स्नान करने के बाद वह स्वच्छ होकर और शंकर जी का ध्यान करके फल खालेगी तब भगवान शिव की कृपा से गर्भवती हो जायेगी, जब ब्राह्मण प्रातःकाल उठा तो उसने उस स्थान पर आम का वृक्ष देखा जिस पर सुंदर फल लगे हुए थे, उस ब्राह्मण ने पेड में चढकर फल को तोड़ने का प्रयास किया और असफल रहा, तब उसने भगवान गणेश जी की प्रार्थना करने पर उनकी कृपा से धनेश्वर ने फल तोड़ लिए, और अपनी स्त्री को लाकर दे दिया, धनेश्वर की स्त्री कहे अनुसार फल को खा लिया, वह गर्भवती हो गयी, देवी की असीम कृपा से उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई, उनहोंने उसका नाम देवदास रखा, बालक अपने पिता के घर में बढने लगा, भवानी कृपा से बालक पढने में बहुत होशियार था, दुर्गा जी की आज्ञा नुसार उसकी माँ ने 32 पूर्णमासी के व्रत रखने शुरू कर दिया, जिससे बालक दीर्घायु होवे, सोलहवें साल लगते ही पिता को बहुत चिंता हो गयी थी, कि कहीं उसके पुत्र की मृत्यु इस साल न हो जाये, इसलिए उनहोंने अपने मन में विचार किया कि यह दुर्घटना उनके सामने हो गयी तो कैसे सहन कर पायंगे, उनहोंने देवीदास के मामा को बुलाया और कहा कि देवीदास एक वर्ष के लिए काशी जाकर विद्याध्ययन करे और उसको अकेला भी नहीं छोडना चाहिए, इसलिए साथ में तुम चले जाओ और एक वर्ष बाद वापस आना, सारा प्रबंध करके माता पिता ने देवीदास को घोड़े में बैठा कर उसके मामा के साथ भेजा, किन्तु यह बात उसके मामा या किसी और को पता नहीं थी, धनेश्वर ने अपनी स्त्री के साथ माता भगवती के सामने मंगल कामना एवं दीर्घायु के लिए आराधना और पूर्णमासी व्रत किया, एक दिन मामा और भांजे रात्रि विश्राम के लिए एक गाँव में ठहरे वहाँ पर एक ब्राह्मण की सुंदर लड़की का विवाह होने वाला था, वहाँ पर ही देवीदास और उनके मामा ठहरे हुए थे, उसके बाद लड़की ने देवीदास से ही विवाह कर अपना पति मान लेतीहै, लेकिन देवीदास ने अपनी आयू के बारे में बताया, लेकिन लड़की ने कहा कि जो गति आपकी होगी वही मेरी होगी, हे स्वामी! उठते और भोजन कर लीजिए, इसके बाद देवीदास और उसकी पत्नी दोनों ने भोजन किया, सुबह देवीदास ने अपनी पत्नी को तीन नगों से जड़ी एक अंगुठी और एक रुमाल दिया, और कहा मेरा मरण और जीवन देखने के लिए एक पुष्प वाटिका बना लो, जब मेरा प्राण अन्त होगा ये फूल सूख जायंगे, ये फिर से हरे भरे हो जाये तो जान लेना कि मैं जीवित हूँ, भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, कि हे माता! देवीदास विद्याध्ययन के लिए काशी चला गया, कुछ समय बाद एक सर्प देवीदास के पास आता है, और देवीदास को डसने का प्रयास करता है, लेकिन व्रत के प्रभाव से देवीदास को काट नहीं पाया, क्योंकि उसकी माँ 32 व्रत पूरे कर चुकीं थी, इसके बाद काल स्वयं आया और उसने शरीर से प्राणों को निकालने का प्रयास किया जिससे वह मूर्छित होकर गिर पडा, भगवान की कृपा से माता पार्वती और शिव जी वहाँ गये, पार्वती जी ने शिव जी से कहा कि इसकी माता ने 32 पूर्णमासी का व्रत किया है, और आप उसके प्राणदान दें, इस प्रकार शिव जी उनहे प्राणदान देते हैं, और काल को भी पीछे हटना पड़ता है, देवीदास स्वस्थ होकर पुनः बैठ गया, उधर उसकी स्त्री उसके काल की प्रतीक्षा किया करती थी, जब उसने देखा कि पुष्प वाटिका में पुष्प और पत्ते नही रहे, तो उसको अत्यंत आश्चर्य हुआ, लेकिन जब वाटिका हरी भरी हो गई तो वह जान गयी कि उसके पति को कुछ नहीं हुआ है, यह देखकर बहुत प्रसंन्न हुयी, अपने पिता से कहने लगी कि पिता जी मेरे पति जीवित है, आप उनकों खोजो, सोलहवें साल बीत जाने पर देवीदास अपने मामा के साथ काशी से वापस चल दिया, उधर उसके ससुर घर से उन को खोजने जाने ही वाले थे, लेकिन वो मामा भांजे वहाँ पंहुच गए, ससुर उनहे घर में ले गया, नगर निवासी वहाँ एकत्र हो गये, उनहोंने निश्चय किया कि कन्या का विवाह इसी बालक के साथ हुआ था, कन्या ने भी लडके को पहचान लिया, कुछ दिन बाद देवीदास अपनी स्त्री और मामा के साथ बहुत से उपहार लेकर अपने नगर कीओर चल देता है, जब वह अपने गाँव के निकट आगये वहाँ लोगों ने उन्हें देखकर उसके माता पिता को पहले ही खबर दे दी कि तुम्हारा पुत्र अपनी पत्नी और मामा के साथ आरहा है, ऐसा सुनकर उसके माता पिता बहुत ही खुश हुए, पुत्र और पुत्र वधू के आने की खुशी में धनेश्वर ने बहुत बड़ा उत्सव मनाया, तब भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि धनेश्वर 32 पूर्णमासी के प्रभाव से पुत्र वान हुआ, जो व्यक्ति या स्त्री इस व्रत को करते हैं जन्म जन्मान्तर के पापों से छुटकारा प्राप्त कर लेते हैं, लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल