नाग पंचमी व्रत का क्या है विशेष महत्व
नाग पंचमी व्रत।,,,,,,,,,, हमारे देश भारत वर्ष में नाग पंचमी व्रत अलग-अलग भागों में अलग-अलग समय में मनाया जाता है। जैसे राजस्थान में श्रावण कृष्ण पंचमी को मनाई जाती है। कुछ भागों में चैत्र शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी मनाई जाती है। कुछ भागों में वर्ष में दो बार नागपंचमी मनाते हैं। एक सावन शुक्ल पंचमी को तथा दूसरी बार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पंचमी को। यदि बात करें देव भूमि उत्तराखंड के कुमाऊं संभाग की तो कुमाऊं संभाग में सावन शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी मनाते हैं। कुमाऊं संभाग के पिथौरागढ़ एवं बागेश्वर जनपदों के कई क्षेत्रों में तो लगभग सभी इस व्रत को रखते हैं। वहां अनेक नाग मंदिर भी हैं। यहां तक की अनेक स्थानों का नाम भी नागों के नाम से प्रचलित है जैसे बेरीनाग। यह वास्तव में बेडींनाग है । यहां ऐतिहासिक बेडींनाग मन्दिर है, कालांतर में यह फिर बेणीनाग नाम से प्रचलित था फिर अंग्रेजों के शासनकाल से वह बेरीनाग हो गया। खैर जो भी हो प्राचीन समय से ही महिला वर्ग इस व्रत को रखती चली आ रही है। आज समय बदलता जा रहा है और हमारी संस्कृति भी लुप्त होती जा रही है। पहाड़ों में कहीं-कहीं आज भी महिलाएं तोरई आदि के हरे पत्तों के रस से निर्मित प्राकृतिक हरे रंग से सफेद कागज में नाग की आकृति बनाकर व्रत के दिन नागों की पूजा करते हैं। इस व्रत को करने से सर्पदंश का भाई भय नहीं नहीं रहता। एक बहुत महत्वपूर्ण बात पाठकों को और बताना चाहूंगा की जिन जातकों की जन्म कुंडली में कालसर्प योग हो उन्हें नाग पंचमी के दिन चांदी के नाग और नागिन का जोड़ा एक विशेष प्रकार की पूजा के बाद बहते हुए जल में विसर्जन करना होता है। किसी योग्य विद्वान द्वारा यह पूजा करवाई जाती है। शुभ मुहूर्त, ,,,,,, अब यदि बात करें मुहूर्त की तो इस बार 13 अगस्त 2021 दिन शुक्रवार को नाग पंचमी पर्व मनाया जाएगा। पंचमी तिथि प्रारंभ 12 अगस्त की शाम 3:27 से और पंचमी तिथि का समापन 13 अगस्त दोपहर 1:44 तक है। अतः नाग पंचमी व्रत 13 अगस्त को ही मनाया जाएगा। इस दिन हस्त नक्षत्र प्रातः 8:00 बजे तक है तदुपरांत चित्रा नक्षत्र है। 13 अगस्त को सूर्योदय प्रातः 5:38 में होगा और सूर्यास्त शाम 6:54 पर होगा। चंद्रमा की स्थिति इस दिन शाम 7:29 तक कन्या राशि में होगी तदोपरांत चंद्रमा तुला राशि में प्रवेश करेंगे। नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है। और व्रत रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत करने से और व्रत कथा पढ़ने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। नाग पंचमी के विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं। नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है? इसका वर्णन कई तरह से किया गया है। नाग पंचमी व्रत कथा। भविष्य पुराण के अनुसार जब सागर मंथन हुआ तब नागु ने अपनी माता की आज्ञा नहीं मानी थी। इस कारण नागों को श्राप मिला था नागों को कहा गया था कि वह राजा जन्मेजय के यज्ञ में जलकर भस्म हो जाएंगे। इससे नाग बहुत ज्यादा घबरा गए थे। इस शराब से बचने के लिए सभी नाग ब्रह्मा जी की शरण में पहुंचे। उन्होंने ब्रह्मा जी से सारी बात कही और सहायता मांगी। उन्होंने कहा कि जब नागवंश में महात्मा जरत्कारु के पुत्र आस्तिक होंगे तब वह सभी नागों की रक्षा करेंगे। यह उपाय ब्रह्मा जी ने पंचमी तिथि को बताया था। जब महात्मा जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने नागों को यज्ञ में जलने से बचाया था। तब सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी। आस्तिक मुनि ने नागों के ऊपर दूध डालकर उन्हें बचाया था। इसके बाद आस्तिक मुनि ने कहा था कि जो कोई भी पंचमी तिथि पर नागों की पूजा करेगा उसे सर्पदंश का भय नहीं रहेगा। तब से ही सावन की पंचमी तिथि पर नाग पंचमी मनाई जाती है। पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल